राष्ट्रपति भवन : 07.12.2013
भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (7 दिसंबर, 2013) शांतिनिकेतन में विश्व भारती विश्वविद्यालय के 48वें दीक्षांत समारोह में भाग लिया।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि विश्व भारती इसके संस्थापक, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा शिक्षा प्रणाली पर एक मौलिक प्रयोग का परम प्रतिफल है।
ठाकुर शिक्षा को मुक्त परिवेश और प्रकृति के निकट लेकर आए। ठाकुर जानते थे कि मनुष्य का प्रकृति से दूर जाना ही उसके दु:ख का कारण है। आज भी प्रकृति से व्यक्ति का यह विलगाव जारी है। भारत की आधुनिक शिक्षा में ठाकुर की ‘प्राकृतिक शिक्षा’ में निहित सुन्दर विचारों को समाहित किया जाना चाहिए। इसे ठाकुर की संकल्पना के अनुरूप जीवन के पूर्ण विकास के लिए शिक्षा होना चाहिए।
विश्व भारती के उद्गम के बारे में बताते हुए, राष्ट्रपति जी ने रवीन्द्रनाथ ठाकुर का उद्धरण दिया, ‘‘यह मेरे लिए एक निरंतर शिक्षा थी और यह संस्था मेरे मस्तिष्क और जीवन के साथ बढ़ती गई। इसकी जनसंख्या बढ़ने तथा विषयों के विस्तार से ऐसे तत्त्वों का लगातार हस्तक्षेप बढ़ गया है जो स्वतंत्रता और सहजता की भावना के विरुद्ध हैं। परिणामस्वरूप, संघर्ष हमारे आश्रम के मूल में स्थित मौलिक सत्य को प्रबल बनाने और उसका अनुभव कराने में सहायक रहा है। परंतु जिस सच्चाई ने मेरे उत्साह को कायम रखा है, वह यह है कि हम अभी किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंचे हैं और इसलिए हमारा कार्य केवल एक बार में ही सुव्यवस्थित श्रेष्ठ योजना को अनवरत दोहराते रहना नहीं है। इस संस्था को शिक्षकों और विद्यार्थियों के सामूहिक उत्साह द्वारा एक सतत् निर्माण होना चाहिए।’’ उनके यह भविष्य-सूचक शब्द हमें उस दीर्घ संघर्ष के लिए प्रोत्साहित और प्रेरित करना जारी रखे हैं जो किसी संस्था के निर्माण—‘अनवरत सृजन’ की प्रक्रिया के लिए जरूरी हैं।
यह विज्ञप्ति 1430 बजे जारी की गई।