राष्ट्रपति जी ने कहा कि विधिक शिक्षा द्वारा एक सामाजिक रूप से संवेदनशील और विवेकशील अधिवक्ता का निर्माण किया जाना चाहिए।
राष्ट्रपति भवन : 22.10.2013

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (22 अक्तूबर 2013) गुवाहाटी में ‘सतत् विधिक शिक्षा’ और ‘बच्चे तथा यौन अपराधों से बच्चों का बचाव अधिनियम 2012’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन किया। यह संगोष्ठी असम, नागालैंड, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश तथा सिक्किम की बार काउंसिल के स्वर्ण जयंती समारोहों के समापन के अवसर पर आयोजित की गई थी।

इस अवसर पर बोलते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि ऐतिहासिक रूप से न्यायिक सुधार के केन्द्र में न्यायपालिका ही रही है। न्यायिक प्रणाली के बुनियादी स्तंभ अधिवक्ता की प्राय: अनदेखी की गई है। विधिक शिक्षा तथा सतत् पेशेवर विकास द्वारा सामाजिक रूप से संवेदनशील और विवेकशील अधिवक्ता का निर्माण होना चाहिए, जिसको न्याय में देरी कोई वाणिज्यिक अवसर नहीं बल्कि उसके पेशेवर जीवन पर एक धब्बा तथा उस प्रणाली की निष्फलता लगनी चाहिए जिसका वह अभिन्न अंग है। एक आदर्श भारतीय अधिवक्ता के पास न केवल विधिक दक्षता होनी चाहिए बल्कि उसमें सामाजिक उत्तरदायित्व तथा सुदृढ़ पेशेवर नैतिकता का भी समावेश भी होना चाहिए। कानून की सत्ता की कारगरता काफी हद तक अधिवक्ताओं की निष्ठा पर निर्भर करती है जो नागरिक तथा न्याय प्रणाली के बीच की कड़ी हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे देश में न्यायिक सुधारों की पहली पीढ़ी में राष्ट्रीय विधि विद्यालयों की स्थापना की गई थी तथा इससे पता चलता है कि भारत द्वारा ऐसे संस्थान स्थापित किए जा सकते हैं जो वहनीय और विश्वस्तरीय विधि शिक्षा प्रदान करते हों। सुधारों की दूसरी पीढ़ी अब अधिवक्ताओं, न्यायाधीशों, न्यायिक अधिकारियों, नौकरशाहों तथा शिक्षाविदों की सतत् विधिक शिक्षा पर केंद्रित की जा रही है। अब जरूरत है कि संगोष्ठियों, सम्मेलनों, व्याख्यानों आदि को व्यवस्थित ढंग से संचालित किया जाए, पहले सतत् विधि शिक्षा को सभी के लिए सुलभ कराया जाए तथा संभवत: इसके बाद इसे विश्व के बहुत से अन्य देशों के समान अनिवार्य किया जाए। सतत् विधिक शिक्षा के लिए एक व्यापक प्रणाली स्थापित होने से पेशेवर दक्षता, जवाबदेही तथा लोगों के बीच अधिवक्ताओं का सम्मान बढ़ेगा। राजीव गांधी अधिवक्ता प्रशिक्षण योजना जैसी प्रशिक्षण योजनाओं का विस्तार किया जाना चाहिए, जिससे वे अधिवक्ता उसका लाभ उठा सकें जिन्होंने हाल ही में वकालत का पेशा अपनाया है। यह भी उपयोगी रहेगा कि भारत की बार काउंसिल ऐसा विश्व स्तरीय संस्थान स्थापित करने पर विचार करे जो राष्ट्रीय विधि विद्यालयों की तर्ज पर सतत् विधि शिक्षा प्रदान कर सके।

राष्ट्रपति ने कहा कि वर्तमान में हम बाल अपराध न्याय व्यवस्था से संबंधित बहुत से मुद्दों पर चर्चा तथा विचार कर रहे हैं जिनमें उन बाल अपराधियों से बर्ताव भी शामिल है जिनमें अपने कृत्यों के बारे में निर्णय लेने की मानसिक क्षमता मौजूद है। बाल अपराध न्याय व्यवस्था कानून के सुधारात्मक नजरिए पर सवाल खड़े हो रहे हैं तथा अब ऐसे कानून की मांग की जा रही है जिसका अलग प्रभाव हो, जहां अपराधी को उसके द्वारा किए गए अपराध की प्रकृति के अनुसार दंडित किया जाए न कि उसकी आयु के अनुसार। यह चर्चा केवल भारत में ही नहीं हो रही है और पूरी दुनिया में बाल अपराध न्याय व्यवस्था के बारे में समझ अब विकासात्मक चरण पर है। भारत में हमें शीघ्रता से इस समस्या पर विचार करते हुए ऐसे सिद्धांत तय करने के लिए सहमति बनानी होगी जो हमारी बाल अपराध न्याय प्रणाली का आधार होंगे।

राष्ट्रपति ने कहा कि ‘बच्चे तथा यौन अपराधों से बच्चों का बचाव अधिनियम 2012’ बच्चों को किसी भी प्रकार के यौन अपराधों से बचाव के लिए शुरू किए गए नवीनतम् प्रयासों में से एक है। इस तरह के कानूनों की जरूरत महसूस की जा रही थी क्योंकि आंकड़े बताते हैं कि बच्चों के विरुद्ध यौन अपराधों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। यह अधिनियम एक वर्ष से मौजूद है तथा इसी छोटी अवधि में इसे कार्यान्वित करने में कई चुनौतियां सामने आई हैं। इस कानून को वास्तविक रूप से कारगर बनाने के लिए इनका तत्काल समाधान जरूरी है। इस अधिनियम के बारे में वयस्कों, माता-पिता, सेवा देने वालों, शिक्षा तथा प्राधिकार प्राप्त व्यक्तियों को अधिक जानकारी होना जरूरी है। सेवा प्रदाताओं को भी हर स्तर पर इस मुद्दे पर जागरूक बनाकर उनकी क्षमता में वृद्धि करनी होगी। बार काउंसिलों द्वारा कानून के कार्यान्वयन में मजबूती लाने में बहुत योगदान दिया जा सकता है तथा वह एक कारगर, न्यायपूर्ण, बाल संवेदनशील, बाल अपराध न्यायप्रणाली का संचालन सुनिश्चत कर सकती हैं।

इस अवसर पर उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों में श्री जानकी वल्लभ पटनायक, असम के राज्यपाल, न्यायमूर्ति श्री अभय मनोहर सप्रे, गुवाहाटी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, श्री निबाम टुकी, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री, मनन कुमार मिश्रा, भारत की बार काउंसिल के अध्यक्ष तथा श्री गजानंद साहेवाल, असम, नागालैंड, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम की बार काउंसिल के अध्यक्ष उपस्थित थे।

यह विज्ञप्ति 1750 बजे जारी की गई।

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