राष्ट्रपति जी ने कहा कि विदेश नीति को हमारी राष्ट्रीय नीति का विस्तार होना चाहिए
राष्ट्रपति भवन : 06.11.2013

मिशन प्रमुखों के पांचवें वार्षिक सम्मेलन के प्रतिभागियों ने आज (6 नवंबर, 2013) राष्ट्रपति भवन में भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी से भेंट की।

इस अवसर पर बोलते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि सम्मेलन का विषय ‘बदलती विश्व व्यवस्था में भारत का स्थान’ अत्यधिक प्रासंगिक है। हमारी विदेश नीति को हमारी राष्ट्रीय नीति का विस्तार होना चाहिए। हमारी विदेश नीति में कुछ ऐसे बुनियादी सिद्धांत हैं जो हमने अपनी मूलभूत सभ्यतागत मूल्यों तथा अपने स्वतंत्रता संग्राम से विरासत में प्राप्त किए हैं। हमारे पड़ोसियों के साथ हमारे रिश्तों में इनसे हमें मार्गदर्शन लेते रहना चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि भारत सदैव विश्व शांति के लिए प्रतिबद्ध रहा है परंतु उसे इस तथ्य का अहसास है कि इसके लिए प्रयास हमारे पड़ोस से शुरू होने चाहिए। हम मित्र बदल सकते हैं पड़ोसी नहीं। बदलाव निरंतर होते हैं तथा भारत की विदेश नीति को विश्व में बदलते परिदृश्यों के अनुरूप ढलना होगा।

राष्ट्रपति ने कहा कि आतंकवाद एक प्रमुख चुनौती बना हुआ है। भारत वह पहला देश था जिसने भारी वैयक्तिक हानि उठाकर आतंकवाद द्वारा खड़े किए गए खतरे को पहचाना और विश्व को इस बारे में चेतावनी दी। भारतीय उपमहाद्वीप में बहुत से देश आतंकवाद के शिकार रहे हैं। इसने सबसे अधिक संख्या में अपने नेताओं की राजनीतिक हत्याएं देखी हैं। आतंकवाद की इस चुनौती का समाधान और अधिक सामूहिक प्रयासों से करने की आवश्यकता है। कोई भी देश खुद को इस बुराई से अलग नहीं रख सकता।

राष्ट्रपति ने कहा कि भारत को राष्ट्रों के समुदाय में अपना न्यायसंगत स्थान प्राप्त करने का हक है तथा मिशन प्रमुखों का आह्वान किया कि वे इस लक्ष्य की दिशा में प्रयास करें।

यह विज्ञप्ति 1730 बजे जारी की गई।

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