राष्ट्रपति जी ने कहा कि वे संसद एवं विधानमंडलों में व्यवधान पर खिन्न एवं चिंतित हैं और राजनीतिक दलों के नेताओं को इस समस्या का समाधान ढूंढ़ना चाहिए
राष्ट्रपति भवन : 24.05.2013

Sad And Anxious About Disruptions To Parliament And Legislatures, Leaders Of Political Parties Must Solve The Problem, Says President

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (24 मई, 2013) हिमाचल प्रदेश विधान सभा के स्वर्ण जयंती समारोहों के अवसर पर 12वीं विधानसभा के सदस्यों को संबोधित किया।

इस अवसर पर बोलते हुए, राष्ट्रपति ने संसद तथा राज्य विधानमंडलों की कार्यवाहियों में बार-बार व्यवधान पर खिन्नता और चिंता व्यक्त की।

राष्ट्रपति ने कहा कि हर एक विधायक जनता से मत मांगकर और उनका विश्वास प्राप्त करके पद प्राप्त करता है। यदि वह अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाते तो यह उचित नहीं होगा। असहमति एक मान्य लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति है। किसी भी लोकतांत्रिक प्रणाली के कारगर ढंग से संचालन का मौलिक सिद्धांत है कि बहुसंख्यक शासन करेंगे और अल्पसंख्यक विरोध करेंगे, पर्दाफाश करेंगे और अगर संभव हो तो अपदस्त करेंगे। परंतु यह सब कुछ खुद विधानमंडलों द्वारा बनाए गए नियमों के ढांचे के तहत ही होना चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि किसी विधानसभा की भूमिका और उसके कार्य, परिचर्चा, असहमति तथा निर्णय नामक तीन तत्त्वों पर आधारित होते हैं। चौथा तत्त्व है ‘व्यवधान’ और उससे भरसक बचा जाना चाहिए। व्यवधान की संसदीय लोकतंत्र में कोई भूमिका नहीं है। यह केवल थोड़े से अल्पसंख्यकों द्वारा बहुसंख्यकों पर अपनी इच्छा को थोपने के समान है। वे न तो अपना कार्य करते हैं और न ही दूसरों को अपना कार्य करने देते हैं। उन्होंने राजनीतिक दलों के नेताओं से अनुरोध किया कि वे इस समस्या पर चर्चा करें और इसका समाधान ढूंढ़ें। उन्होंने यह उम्मीद व्यक्त की कि भारतीय राजनीतिक प्रणाली इसका समाधान ढूंढ़ने के लिए सक्षम है।

राष्ट्रपति ने हिमाचल प्रदेश विधान सभा को व्यवधान रहित सत्रों के संचालन के लिए बधाई देते हुए कहा कि यह हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली की खूबी है।

राष्ट्रपति ने कहा कि विधान सभा इस मायने में कार्यपालिका की स्वामी है कि मुख्यमंत्री और उसकी मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से विधान सभा के प्रति जवाबदेह होते हैं। राज्य विधान सभा में साधारण बहुमत से अविश्वास मत पारित करके कार्यपालिका को कभी भी अपदस्त किया जा सकता है। इसके अलावा, शासन के अधिकांश उपादानों को विधानमंडल द्वारा उपयुक्त कानूनों को पारित करके कार्यान्वित किया जाता है।

राष्ट्रपति ने कहा कि चुने गए प्रतिनिधियों का धन और वित्त पर संपूर्ण नियंत्रण होता है। बिना विधानमंडल के अनुमोदन के कार्यपालिका द्वारा कोई व्यय नहीं किया जा सकता, विधानमंडल द्वारा कानून पारित किए बिना कोई भी कर नहीं लगाए जा सकते तथा विधानमंडल के अनुमोदन के बिना राज्य की समेकित निधि से कोई भी धनराशि नहीं निकाली जा सकती। इसलिए, विधानमंडलों को किसी भी कानून को पारित करने से पहले उस पर समुचित परिचर्चा और जांच सुनिश्चित करनी चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि हिमाचल प्रदेश विधान सभा के 50 वर्ष पूर्ण होना, इस विशिष्ट संस्था के इतिहास में स्वर्ण अवसर है। उन्होंने उम्मीद व्यक्त की कि हिमाचल प्रदेश विधान सभा लोकतांत्रिक परिपाटियों और संसदीय परंपराओं के उच्चतम मानदंडों में अग्रणी रहेगी और इन्हें बनाए रखेगी।

यह विज्ञप्ति 1325 बजे जारी की गई।

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