राष्ट्रपति भवन : 05.08.2014
भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (5 अगस्त, 2014) राष्ट्रपति भवन से शैक्षणिक वर्ष की शुरुआत में राष्ट्रपति ज्ञान नेटवर्क के द्वारा 1172 केंद्रीय विश्वविद्यालयों/संस्थानों के संकाय सदस्यों और विद्यार्थियों को संबोधित किया।
विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि मजबूत शिक्षा प्रणाली किसी भी जागरूक समाज की आधारशिला होती है। उच्च शिक्षा के हमारे संस्थान भावी प्रशासकों तथा नीति निर्माताओं के पोषक हैं। प्रगतिशील चिंतन के बीज यहीं पर बोए और पोषित किए जाते हैं। इन संस्थानों द्वारा मातृभूमि के लिए प्रेम; दायित्वों का निर्वाह; सभी के प्रति करुणा; बहुलवाद के प्रति सहनशीलता;महिलाओं के लिए सम्मान; जीवन में ईमानदारी;आचरण में आत्मसंयम; कार्यों में जिम्मेदारी तथा अनुशासन का समावेश किया जाना होगा।
‘लोकतंत्र और शासन’ विषय पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि हमारा संविधान एक ऐसा जीवंत दस्तावेज है जिसका समय के साथ उद्विकास हुआ है तथा इसने अपने वृहत प्रावधानों के तहत विकसित होते लोकतंत्र की बदलती जरूरतों को आत्मसात् किया है। यह हमें उन सभ्यतागत मूल्यों की लगातार याद दिलाता है जिन्हें हम भूलते जा रहे हैं। यह उचित होगा कि हम यह याद रखें, भले ही यदाकदा ही सही, कि ये मूल्य हमारे लोकतंत्र के संचालन के लिए परमपावन हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि सुशासन किसी प्रणाली में स्वत: निहित नहीं होता। इसे, लोकतंत्र द्वारा संस्थाओं को सावधानीपूर्वक विकसित करते हुए पोषित करना होता है। व्यवधान तब आते हैं जब कोई संस्था उस ढंग से कार्य नहीं करती जैसी उससे अपेक्षा की जाती है और इससे दूसरी संस्थाओं का हस्तक्षेप बढ़ता है। इसलिए इन संस्थाओं को समय की जरूरतों को पूरा करने के लिए मजबूत, पुन:स्फूर्त तथा नया स्वरूप दिए जाने की जरूरत है। इसके लिए सिविल समाज की अधिक सहभागिता जरूरी है। इसके लिए जरूरी है जनता द्वारा राजनीतिक प्रक्रिया में स्वतंत्र तथा खुली सहभागिता। इसके लिए जरूरी है लोकतंत्र की संस्थाओं तथा प्रक्रियाओं में युवाओं की निरंतर बढ़ती भागीदारी। इसके लिए जरूरी है मीडिया की ओर से जिम्मेदार व्यवहार। सुशासन जिन अत्यावश्यक पूर्व शर्तों पर निर्भर है वह है कानून के शासन का अपरिहार्य पालन, सहभागितापूर्ण निर्णय ढांचे की मौजूदगी,पारदर्शिता, जवाबदेही, भ्रष्टाचार रहित समाज, समता तथा समावेशिता। संक्षेप में सुशासन का अर्थ है एक ऐसा ढांचा जिसके केंद्र में जनता की खुशहाली हो। प्रगतिशील कानून अनुकूल पर्यावरण प्रदान करते हैं तथा नागरिकों को अपने हक प्राप्त करने की शक्ति प्रदान करते हैं। इसके कुछ उदाहरण हैं सूचना का अधिकार, शिक्षा,भोजन तथा रोजगार।
राष्ट्रपति जी ने कहा कि नवीन कानूनों का कार्यान्वयन केवल मजबूत सुपुर्दगी तंत्रों के द्वारा ही हो सकता है। भ्रष्टाचार के कारण विभिन्न लाभों के एक समान वितरण में व्यवधान आता है। नियमों और प्रक्रियाओं की जटिलता तथा अपारदर्शिता, शक्तियों को प्रयोग में विवेकाधिकार तथा कानूनी प्रावधानों का कमजोर पालन जैसे कारक भ्रष्टाचार में योगदान देते हैं। जहां हमें भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई के लिए कुछ नई संस्थाओं की जरूरत हो सकती है वहीं इसका समाधान केवल अधिक संस्थाएं खड़ी करने में नहीं है वरन् मौजूदा संस्थाओं में ऐती मजबूती तथा सुधार लाने में है जिससे वे परिणाम दे सकें।
राष्ट्रपति ने विद्यार्थियों का आह्वान किया कि वे एक स्वस्थ लोकतांत्रिक समाज के निर्माण तथा इसके कार्य-व्यवहार के सभी क्षेत्रों में सुशासन परिपाटियों की दिशा में योगदान दें। कोई भी लोकतंत्र सुविज्ञ सहभागिता के बिना स्वस्थ नहीं हो सकता। समाज ने उनमें निवेश किया है तथा बदले में उन्हें भी समाज को कुछ लौटाना है। उन पर लोगों की उम्मीदें तथा अपेक्षाएं टिकी हैं। राष्ट्रपति ने कहा, पढ़ो, सीखो तथा राष्ट्रीय मुद्दों पर अपना नजरिया बनाओ। इस देश के शासन को अपना जुनून बनाओ। हमारे सुंदर और कभी-कभार शोरगुल युक्त लोकतंत्र में सहभागिता को चुनो। शासन के भावी प्रयोक्ताओं के रूप में आपको यह सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय तथा सकारात्मक भूमिका निभानी है कि ये संस्थाएं अपना दायित्व जिम्मेदारी के साथ निभाएं।
यह विज्ञप्ति 1425 बजे जारी की गई।