राष्ट्रपति भवन : 04.09.2014
भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (04 सितंबर 2014) विज्ञान भवन, नई दिल्ली में ‘डॉ. अंबेडकर द्वारा परिकल्पित 21वीं सदी का भारत’ विषय पर पांचवां डॉ. अंबेडकर स्मारक व्याख्यान दिया।
इस अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि डॉ. अंबेडकर ने एक ऐसे भारत का सपना देखा था जिसमें समाज के सभी वर्ग सामाजिक,आर्थिक, तथा राजनीतिक रूप से सक्षम हों;एक ऐसा भारत जिसमें हमारी जनता के हर वर्ग को यह भरोसा हो कि देश तथा उसके भविष्य में उनका भी बराबर का ही हिस्सा है तथा ऐसा भारत जिसमें सामाजिक हैसियत जाति के पायदान अथवा आर्थिक धन-दौलत के आकलन से नहीं बल्कि व्यक्तिगत गुणों से तय हो। डॉ. अंबेडकर की परिकल्पना एक ऐसे भारत की थी जिसमें सामाजिक प्रणाली तथा अर्थव्यवस्था, मानवीय क्षमताओं के पूर्ण विकास का अवसर प्रदान करे तथा यह सुनिश्चित करे कि हमारे नागरिक सम्मानित जीवन जी सकें। हममें से हर एक की यह जिम्मेदारी है कि हम डॉ. अंबेडकर के सपनों को साकार करने के लिए अत्यधिक प्रयास करें। हमें अपने लोकतंत्र की संरक्षा तथा उसकी मजबूती के लिए हर संभव प्रयास करने होंगे। हमें गरीबी तथा पूर्वाग्रहों को दूर भगाने के लिए मिल-जुलकर तथा समर्पित होकर प्रयास करने होंगे। हमें देश में उभरने वाली विभाजनकारी ताकतों के खिलाफ निरंतर सतर्क रहना होगा। हमें कुपोषण, अज्ञान, बेरोजगारी तथा अवसंरचना की चुनौतियों का बहुत तेज गति से समाधान करना होगा। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि छुआछूत अथवा जाति, पंथ, धर्म अथवा लिंग के आधार पर किसी भी प्रकार का अहित देश के किसी भी कोने में न हो। केवल इन प्रयासों के द्वारा ही हम प्रमुख राष्ट्रों के समुदाय में अपना वाजिब स्थान पा सकते हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि डॉ. अंबेडकर का संदेश,उनके कार्य और उनका जीवन हमें हमारे राष्ट्र निर्माताओं से प्राप्त शानदार संविधान, मजबूत लोकतंत्र तथा कारगर स्वतंत्र संस्थाओं की लगातर स्मरण दिलाते रहते हैं। इसी के साथ, यह हमें एक ऐसा समतामूलक समाज निर्मित करने की दिशा में आगे तय की जाने वाली यात्रा का भी स्मरण कराता है जिसमें मानव से मानव के बीच कोई भेद न हो।
राष्ट्रपति जी ने डॉ. अंबेडकर द्वारा 25नवम्बर 1949 को संविधान सभा को संबोधित करते हुए कहे गए इन शब्दों से अपनी बात समाप्त की ‘‘जाति एवं पंथ के रूप में हमारे पुराने शत्रुओं के साथ ही, अब हमारे यहां विभिन्न तथा विरोधी राजनीतिक दल होंगे। क्या भारतीय देश को अपने पंथ से ऊपर रखेंगे अथवा पंथ को देश से ऊपर रखेंगे? मुझे नहीं पता। परंतु यह तय है कि यदि दल पंथ को देश से ऊपर रखते हैं तो हमारी स्वतंत्रता खतरे में पड़ जाएगी और शायद हम सदा के लिए इसे खो दें। हम सभी को इस स्थिति से दृढ़ संकल्प होकर बचना होगा। हमें अपने खून की आखिरी बूंद के साथ अपनी आजादी की रक्षा का संकल्प लेना होगा।’’
यह विज्ञप्ति 1445 बजे जारी की गई।