राष्ट्रपति भवन : 30.11.2013
भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (30 नवंबर, 2013) अरुणाचल प्रदेश के दोईमुख में राजीव गांधी विश्वविद्यालय के 12वें दीक्षात समारोह में भाग लिया।
इस अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे देश की उच्च शिक्षा के स्तर में गिरावट को उच्च प्राथमिकता देकर सुधारने की तात्कालिक जरूरत है। उन्होंने कहा कि यदि भारत को एक विश्व शक्ति बनना है तो हमें इसके लिए विश्व स्तरीय शिक्षा प्रणाली की स्थापना करके खुद को साबित करना होगा।
इस बात का उल्लेख करते हुए कि समाज के ज्ञान की सीमा के विस्तार में अनुसंधान की अहम भूमिका है, राष्ट्रपति ने कहा कि समाज के समक्ष उपस्थित विभिन्न चुनौतियों के समाधान के लिए उच्च शिक्षा के क्षेत्र में नव-चिंतन तथा बेहतर समन्वय की जरूरत है। उन्होंने कहा कि बेहतरीन प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए अनुसंधान सुविधाओं को अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप उच्चीकृत करना होगा। विद्यार्थियों की अनुसंधान अभिरुचि का विकास करना होगा तथा युवा प्रतिभाओं में नवान्वेषण का ज़ज़्बा पैदा करना होगा। उन्होंने विश्वविद्यालयों का आह्वान किया कि वे जिज्ञासा तथा सृजनात्मकता के महत्त्वपूर्ण मंच बनें।
राष्ट्रपति ने कहा कि राजीव गांधी विश्वविद्यालय को किसी एक ऐसे अनुसंधान क्षेत्र को अपनी प्राथमिकता बनाना होगा जिसमें यह अनुसंधान करना चाहता है। प्राकृतिक संसाधनों तथा जैव विविधता से भरपूर, पूर्वोत्तर भारत में नवान्वेषी अनुसंधान करने के काफी अवसर हैं। प्राकृतिक संसाधनों के अति दोहन से पर्यावरण को क्षति पहुंचती है तथा इससे दीर्घकालीन अस्थिरता फैलती है। उन पर ऐसे वैकल्पिक विकास मॉडल तैयार करने की जिम्मेदारी है जो सतत् हों। उन्होंने विश्वविद्यालय का आह्वान किया कि वे प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन पर अन्तर-विधात्मक अनुसंधानों का संचालन करें। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय को पर्वतीय अर्थव्यवस्था की चुनौतियों, परंपरागत एवं आधुनिक संस्थाओं के बीच संघर्ष, सीमा व्यापार संभावनाओं तथा देश और दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं के साथ पूर्वोत्तर की अर्थव्यवस्था के एकीकरण पर अनुसंधान करने चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय सभ्यता की एक बहुत प्राचीन ज्ञान परंपरा है। तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, वल्लभी, सोमापुरा तथा ओदांतपुरी जैसे हमारे प्राचीन विश्वविद्यालय ज्ञान के प्रख्यात केंद्र थे तथा इनमें बाहर से विद्यार्थी आते थे। आज हमारे विश्वविद्यालय, विश्व के सर्वोत्तम विश्वविद्यालयों से पिछड़े हुए हैं। एक अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार एक भी भारतीय विश्वविद्यालय अथवा संस्थान सर्वोत्तम दो सौ स्थानों में शामिल नहीं है। हम ऐसी शिक्षा प्रणाली जारी रखने का जोखिम नहीं उठा सकते जो कि वैश्विक स्तर से नीची हो। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आदि के क्षेत्रों में हमारा नेतृत्व हमारे वैज्ञानिकों, शिक्षकों, इंजीनियरों तथा चिकित्सकों की दक्षता के स्तर पर निर्भर है।
यह विज्ञप्ति 1300 बजे जारी की गई।