राष्ट्रपति भवन : 30.09.2015
भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (30सितम्बर2015)ग्रामीण एवं औद्योगिक विकास केंद्र, चंडीगढ़ द्वारा ‘को ऑपरेटिव डेवेलेपमेंट पीस एंड सेक्यूरिटी इन साउथ एंड सेंट्रल एशिया’ पर आयोजित कार्यक्रम के समापन सम्मेलन का उद्घाटन किया।
इस अवसर पर बोलते हुए, राष्ट्रपति जी ने कहा कि भारत के बाह्य संबंधों का प्रमुख लक्ष्य शांति तथा स्थिरता की स्थापना करना है जो हमारे देश के बहुआयामी विकास संबंधी अपेक्षाओं पर आगे बढ़ने के लिए सहायक परिवेश प्रदान करे। आर्थिक प्रगति और विकास के लिए विदेश नीति-संबंधी यह नजरिया, दक्षिण एशियाई देशों और मध्य एशिया सहित विस्तारित पड़ोस में, जितना प्रासंगिक है उतना और कहीं नहीं। दक्षिण तथा मध्य एशिया दोनों ही के सामने विकास और सुरक्षा संबंधी भारी चुनौतियां हैं। इनमें आर्थिक प्रगति तथा स्थिरता सुनिश्चित करने से लेकर नशीली दवाओं की तस्करी तथा आतंकवाद जैसी अन्तरदेशीय सुरक्षा चुनौतियों का सामना करना शामिल है। इन दोनों क्षेत्रों के बारे में हमारा नजरिया मित्रता के सेतुओं का निर्माण करना,अधिकाधिक भौतिक तथा जनता के बीच संयोजकता स्थापित करना और समग्र प्रगति और खुशहाली के लिए प्रगाढ़ मेलजोल बढ़ाना रहा है।
राष्ट्रपति जी ने कहा कि ‘पड़ोसी पहले’ की भारत की नीति के अनुसार दक्षिण एशियाई देश भारत की उच्चतम प्राथमिकता हैं। दक्षिण एशिया में हमारा नजरिया सदैव साझा समृद्धि तथा सुरक्षा को बढ़ावा देना रहा है। हमारे दक्षिण एशियाई पड़ोसी सबसे अपरिहार्य साझीदार हैं। भारत सरकार ने बेहतर संयोजकता, प्रगाढ़ सहयोग तथा व्यापक संबंधों की नीति के अनुपालन की इच्छा जताई है। इसने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि भारत पूरे उपमहाद्वीप को प्रगति और विकास के मार्ग पर अपने साथ ले जाने के लिए अपने आकार तथा विपुलता का प्रयोग करने का इच्छुक है।
राष्ट्रपति जी ने कहा कि दक्षिण एशिया का भू-भाग तथा इसकी भू-राजनीतिक स्थिति की अपनी कुछ चुनौतियां हैं। भौगोलिक सन्निकटता के बावजूद क्षेत्रीय एकीकरण की संभावना ने हमें हमारे हाथ से फिसलती रही है तथा इससे दक्षेस के उन लक्ष्यों को पूर्ण नहीं होने दिया है, जिन्हें शिखर स्तरीय बैठकों में सत्यनिष्ठा के साथ अंगीकार किया गया था। इसलिए भारत को बीबीआईएन विकास चतुर्भुज के माध्यम से उपक्षेत्रीय सहयोग पर आगे बढ़ना चाहिए तथा सड़क परिवहन, ऊर्जा तथा जल संसाधन जैसे क्षेत्रों में, इस क्षेत्र के समान विचार वाले देशों के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाना चाहिए।
राष्ट्रपति जी ने कहा कि भारत को हाल ही में ईरानी परमाणु करार से प्राप्त अवसरों का पूर्ण उपयोग करना चाहिए, जिसने ईरान के चाहबहार बंदरगाह के विकास के माध्यम से इस क्षेत्र के साथ संयोजकता स्थापित करने की संभावना खोली है। इसने भारत से यूरेशिया के स्पर्धात्मक तथा त्वरित मार्ग के लिए अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण कोरीडोर के कार्यान्वयन की संभावनाओं को भी खोला है। आयातित ऊर्जा, मुख्यत: तेल एवं गैस पर, भारत की भावी निर्भरता एक ऐसी कड़वी सच्चाई है जिसके लिए आपूर्ति के रचनात्मक तथा विविधीकृत संसाधन जरूरी होंगे। मध्य एशियाई राज्यों के पास पर्याप्त अधिभंडार है तथा तापी पाइपलाइन परियोजना को ऊर्जा आपूर्ति के संसाधन तथा इसके संबद्ध भू-सामरिक लाभों के लिए आगे बढ़ाना उचित होगा। ईरान-पाकिस्तान-भारत गैस पाइपलाइन को भी पुनर्जीवित किया जा सकता है क्योंकि ईरान पहले ही अपनी भूमि पर इसका हिस्सा निर्मित कर चुका है। इस तरह की ऊर्जा परियोजनाएं भू-सामरिक स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण बदलाव सिद्ध हो सकती हैं।
यह विज्ञप्ति 18:10 बजे जारी की गई।