राष्ट्रपति जी ने कहा कि आतंकवाद के मुद्दे से निपटने के लिए सुव्यवस्थित प्रयास आवश्यक हैं
राष्ट्रपति भवन : 27.05.2015

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज कहा कि गंभीर रूप धारण कर चुके तथा अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए खतरा बन चुके आतंकवाद के मुद्दे से निपटने के लिए सुव्यवस्थित प्रयास आवश्यक हैं।

राष्ट्रपति जी ने ये विचार भारतीय विदेश सेवा के 2013 बैच के उन अधिकारी प्रशिक्षणार्थियों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए जिन्होंने आज (27 मई 2015)राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति जी से भेंट की।

राष्ट्रपति ने कहा कि ऐसा लगता है कि उग्रवादियों की पहुंच मादक पदार्थों की अवैध तस्करी और अन्य आपराधिक गतिविधियों के माध्यम से प्रचुर हथियार और संसाधनों तक हो चुकी है। विश्व में अशांत स्थान तेजी से बढ़ रहे हैं और बहुत से महत्वपूर्ण शहर खतरे में हैं। न केवल इन शहरों के ऐतिहासिक और सभ्यतागत अवशेषों को खतरा है बल्कि उनका विध्वंस राजनीतिक अस्थिरता के प्रतीक भी बन गए हैं। शीतयुद्ध के समाप्त हो जाने के बावजूद अपेक्षित अमन और चैन विश्व के लोगों की पहुंच से अभी भी दूर है।

वर्तमान वैश्विक हालात को अत्यंत जटिल बताते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि एकांगी दृष्टिकोण वर्तमान प्रवृतियों को समझने के लिए पर्याप्त नहीं होंगे। भारतीय राजनयिकों को पूर्ण तत्परता के साथ विश्व घटनाक्रमों पर नज़र रखनी चाहिए। उन्हें, इनको समझने और विश्लेषण करने के लिए योग्यता और विशेषज्ञता विकसित करनी चाहिए।

सिविल सेवा को राष्ट्र और लोगों की सेवा का महान अवसर बताते हुए, राष्ट्रपति ने यह याद दिलाया कि किस प्रकार भारतीय विदेश सेवा के अधिकारियों ने, लेबनान और हाल ही में यमन में, जहां भारतीय नागरिकों को सुरक्षित निकालना पड़ा, जैसे हालात में अपनी हिफाजत और सुरक्षा को गंभीर जोखिम होते हुए उत्कृष्ट कार्य किया है। उन्होंने कहा कि अनेक सेवाओं और संगठनों के सहयोग से चलाए गए ये अभियान विदेश सेवा के कौशल और क्षमता के साक्षी हैं।

राष्ट्रपति ने युवा राजनयिकों से अनिवासी भारतीयों पर विशेष ध्यान देने का आग्रह किया, जिन्हें उन्होंने भारत की कूटनीति में एक महत्वपूर्ण कारक बताया। उन्होंने कहा कि अनिवासी भारतीय जिन देशों में रहते हैं वहां भारत के मूल्यों, संस्कृति और सभ्यता का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा हमारी सौम्य शक्ति का भी प्रदर्शन करते हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि विदेश नीति मौजूदा परिस्थिति के अनुरूप जागरूकतापूर्ण राष्ट्रीय हित का विस्तार है। राजनयिकों को न केवल राष्ट्रीय हित की रक्षा करनी चाहिए बल्कि उनमें वृद्धि भी करनी चाहिए। अंत में उन्होंने युवा राजनयिकों का आह्वान किया कि वे समर्पण और निष्ठा के साथ देश और इसके लोगों की सेवा करें।

यह विज्ञप्ति 1820 बजे जारी की गई।

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