राष्ट्रपति जी ने दुर्गा पूजा के अवसर पर, लोगों से संप्रदायवाद, असहिष्णुता तथा मानव निर्मित भेद-भाव से ऊपर उठने का आह्वान किया।
राष्ट्रपति भवन : 12.10.2013

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने शरदोत्सव के नाम से भी जाने वाले दुर्गा पूजा के अवसर पर लोगों से संप्रदायवाद, असहिष्णुता तथा मानवनिर्मित भेद-भाव से ऊपर उठने का आह्वान किया। कल (11 अक्तूबर 2013) बीरभूम जिले के किर्णाहार में मीडिया कर्मियों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि दुर्गा पूजा केवल धार्मिक त्योहार नहीं है बल्कि यह सामाजिक उत्सव के रूप में रूपांतरित हो चुका है। उन्होंने सभी लोगों का आह्वान किया कि वे दुर्गा-पूजा में भाग लेते हुए पारस्परिक सद्भावना अपनाएं तथा उसको बढ़ावा दें। उन्होंने कहा कि भारत के सभी धार्मिक त्योहारों को मनाने में सभी धर्मों की एकता में विश्वास और पंथनिरपेक्षता तथा सांप्रदायिक सौहार्द के प्रति प्रतिबद्धता बुनियादी संदेश होता है, चाहे वह दुर्गा-पूजा हो, ईद-उल-जुहा हो अथवा क्रिसमस।

चिंट फंडों द्वारा धोखधड़ी के बारे में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में राष्ट्रपति ने कहा कि ऐसे संगठनों से निपटने के लिए पहले ही अधिनियम मौजूद हैं। यह समस्या कानून के अभाव की नहीं है बल्कि लालच तथा लोगों में जागरूकता की कमी के कारण है। राष्ट्रपति ने मीडिया द्वारा सभी संबंधितों में इसके बारे में जागरूकता पैदा करने की जरूरत पर बल दिया।

सीमापारीय आतंकवाद के बारे में अपनी टिप्पणी पर राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने तुर्की के समाचारपत्र से जो कुछ कहा है वह भारत सरकार की घोषित नीति है। उन्होंने यही बात तब भी कही कि जब वे रक्षा, विदेश और वित्त मंत्रालयों के प्रभारी मंत्री थे और इसमें नया कुछ भी नहीं है।

इससे पहले इस दिन, उन्होंने विश्व-भारती, शांति निकेतन में रवीन्द्रनाथ टैगोर को एशिया का प्रथम नोबेल मिलने संबंधी समारोह में भाग लिया। उन्होंने दीप जलाकर इस कार्यक्रम का उद्घाटन किया। ‘एशिया का प्रथम नोबेल-गीतांजलि से कुछ गीतों का अर्पण’ कार्यक्रम विश्व-भारती के कुलपति, प्रोफेसर-सुशांत दासगुप्ता द्वारा संगीत भवन के सहयोग से आयोजित किया गया।

यह विज्ञप्ति 1200 बजे जारी की गई।

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