राष्ट्रपति जी ने भारतीय विदेश सेवा के परिवीक्षाधीनों से कहा कि वे विदेशों में भारत की प्रतिष्ठा और मान बढ़ाएं
राष्ट्रपति भवन : 12.06.2013

भारतीय विदेश सेवा (2011 बैच) के 34 परिवीक्षाधीनों के एक दल ने आज (12 जून, 2013) राष्ट्रपति भवन में भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी से भेंट की।

 
Enhance India’s Prestige And Honour Abroad The President Says To Probationers Of Indian Foreign Service

इन परिवीक्षाधीनों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि विश्व एक बड़े परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। विश्व अर्थव्यवस्था अभी कमजोर है तथा उसे अभी वित्तीय संकट से उबरना है। पश्चिम एशिया, अफ्रीका तथा भारत के पड़ोस में बड़े राजनीतिक बदलाव आए हैं। विदेश सेवा के युवा अधिकारियों को सौंपे गए कार्य और उत्तरदायित्व महत्त्वपूर्ण हैं परंतु उन्हें अपनी प्रतिभा और पहल को दर्शाने का मौका मिलेगा। भारत की विदेश नीति को, बदलते विश्व के अनुरूप लगातार स्वयं को ढालना होगा। विश्व इस बात को स्वीकार करता है कि अधिकांश वैश्विक प्रगति, उभरती अर्थव्यवस्थाओं, खासकर, चीन और भारत से आ रही है तथा भारत का जी-20 जैसे प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आज महत्त्वपूर्ण स्थान है।

 
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भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में बात करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि यद्यपि चिंता का कारण विद्यमान है परंतु निराशा का नहीं। भारतीय अर्थव्यवस्था ने पिछले दस वर्षों में 7.9 प्रतिशत विकास दर प्राप्त की है जो कि 1951 के बाद किसी भी दशक से कहीं अधिक है।

 
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राष्ट्रपति ने भारतीय विदेश सेवा के परिवीक्षाधीनों से आग्रह किया कि वे खुद को आर्थिक कूटनीति में तथा ऊर्जा सुरक्षा और खाद्य सुरक्षा जैसे मुद्दों पर प्रशिक्षित करें। उन्होंने आह्वान किया कि वे इन क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल करें तथा मातृभाषा की समर्पित सेवा के द्वारा विदेशों में भारत की प्रतिष्ठा और मान बढ़ाएं।

यह विज्ञप्ति 1430 बजे जारी की गई।

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