राष्ट्रपति जी ने भारतीय फिल्म उद्योग से अपने सिनेमा मे सार्वभौमिक मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने का आह्वान किया
राष्ट्रपति भवन : 03.05.2015

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (03 मई 2015) नई दिल्ली में 62वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्रदान किए।

इस अवसर पर, राष्ट्रपति ने कहा कि सिनेमा 1913 में दादा साहेब फाल्के की भारत में निर्मित प्रथम फिल्म के समय से भारतीय संस्कृति और मनोरंजन का एक अभिन्न हिस्सा रहा है। भारतीय सिनेमा ने राष्ट्रीय सीमाओं को लांघा है और यह लाखों लोगों की चेतना को प्रभावित करने वाले विचारों और मूल्यों का सशक्त माध्यम है। भारतीय फिल्में न केवल देश की बहु-सांस्कृतिक विविधता को प्रदर्शित करती हैं बल्कि ये इसकी भाषायी समृद्धि का सम्मान भी हैं। वे राष्ट्रीय निधि हैं और अंतरराष्ट्रीय संबंध स्थापित करने और सहजता से विश्व क्षितिज पर विस्तार पाने के लिए सच्चे अर्थों में हमारे देश की ‘सौम्य शक्ति’ हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि भारत में सिनेमा ने प्रांत, जाति, वर्ग और धर्म की सभी सीमाएं लांघी हैं। यह हमारे राष्ट्र की अपार विविधता को प्रदर्शित करता है जो विभिन्न संस्कृतियों धर्मों और भाषाओं का घर है। यह आधुनिकता और परंपरा का तथा हमारे अतीत का और भविष्य के लिए करोड़ों उम्मीदों का संगम है। डिजीटाइजेशन तथा आधुनिक प्रौद्योगिकियों के आगमन का अर्थ यह नहीं है कि हम बुनियादों से दूर हो जाएं। हमारी विषय-वस्तु हमारी ताकत होनी चाहिए क्योंकि यह हमारे जीवंत सांस्कृतिक वातावरण में गहनता से रची-बसी हुई है।

राष्ट्रपति ने फिल्म उद्योग से बाजार से परे देखने तथा अनेकता पर गर्व करने तथा समावेशिता को पोषित करने वाली हमारी समृद्ध सभ्यतागत विरासत से प्राप्त सार्वभौमिक मानव मूल्यों को प्रोत्साहित करने में मदद के लिए मिलकर कार्य करने का आग्रह किया। उन्होंने महान फिल्म निर्माता ऋत्विक घटक को उद्धृत किया, ‘सिनेमा मेरे लिए कोई कला नहीं है, यह अपने लोगों की सेवा करने का एक साधन मात्र है।’

यह विज्ञप्ति 1940 बजे जारी की गई।

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