राष्ट्रपति जी ने 45वां राज्यपाल सम्मेलन का शुभारंभ किया, उन्होंने राज्यपालों से कहा कि वे राज्य में केंद्र का तथा केंद्र में राज्यों का प्रतिनिधित्व करें
राष्ट्रपति भवन : 13.02.2014

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (13 फरवरी, 2014) राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली में 45वें राज्यपाल सम्मेलन का शुभारंभ किया। इस सम्मेलन में छब्बीस राज्यपालों तथा तीन उप-राज्यपालों द्वारा भाग लिया जा रहा है।

इस दो दिवसीय राज्यपाल सम्मेलन की कार्यसूची में बाह्य एवं आतरिक सुरक्षा वातावरण, अनुसूचित क्षेत्र तथा पूर्वोतर क्षेत्र के विकास मुद्दे, उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार तथा आपदा प्रबंधन को और अधिक प्रभावी बनाना शामिल है।

सम्मेलन के आरंभिक भाषण में, राष्ट्रपति ने कहा कि राज्यपालों की भूमिका राज्यों और संघ के बीच एक सेतु की है। राज्यपालों को यह सुनिश्चित करना होता है कि राज्य सरकारें राज्य के हितों का ध्यान रखते हुए, संविधान के अनुरूप कार्य करें। यह राज्यपाल की विशिष्ट जिम्मेदारी है क्योंकि वह राज्य में केंद्र का तथा केंद्र में राज्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। राष्ट्रपति ने राज्यपालों का आह्वान किया कि वे सतर्क रहें और यह सुनिश्चित करें कि 16वीं लोक सभा के आगामी चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से संचालित हों तथा जनता की इच्छा की स्वतंत्र अभिव्यक्ति के लिए अनुकूल हों। राष्ट्रपति ने कहा कि राज्यपालों को यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे देश का बहुलवाद स्वरूप किसी भी तरीके से मलिन न हो।

राष्ट्रपति ने कहा कि 25 जुलाई, 2013 को वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए राज्यपालों और उप-राज्यपालों को उनके संबोधन के दौरान यह सुझाव आया था कि राज्यों और केंद्रों के बीच खाई को पाटने में राज्यपालों की भूमिका, संविधान की छठी अनुसूची के अधीन क्षेत्र, पूर्वोत्तर परिषद तथा संबंधित मुद्दों; संविधान की पांचवीं अनुसूची के अधीन क्षेत्र, शिक्षण संस्थाओं के कुलाधिपति के रूप में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने में राज्यपालों की भूमिका तथा आपदा प्रबंधन से संबंधित विषयों पर विचार करने के लिए राज्यपालों का समूह गठित होना चाहिए। राज्यपालों के समूहों ने बहुमूल्य सुझावों के साथ अपनी रिपोर्टें दे दी हैं। ये सुझाव नीति निर्माण में उपयोगी सुझावों के रूप में काम आएंगे।

राष्ट्रपति ने राज्यपालों को सलाह दी कि वे राज्य के अंदर अधिक यात्रा करें तथा अनुसूचित क्षेत्र की जनजातियों तक लाभ पहुंचाने के लिए परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों को मान्यता) अधिनियम 2006 पर नजदीक से नजर रखें। स्वायत्त जिला परिषदों के सशक्तीकरण तथा पंचायती राज संस्थाओं के कुछ प्रावधानों को इनमें शामिल करने पर भी विचार होना चाहिए। राष्ट्रपति ने राज्यपालों का आह्वान किया कि वे राज्य के संस्थानों में उत्कृष्टता लाने के लिए कुलाधिपति के रूप में उच्च शिक्षा के मामले पर सक्रिय होकर पहल करें।

आपदा प्रबंधन पर चर्चा करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि भारत विश्व का सबसे अधिक आपदा संभावित देशों में से है। इसका 58.6 प्रतिशत के लगभग क्षेत्र भूकंप संभावित है; 40 मिलियन हैक्टेयर (कुल भूमिका का 12 प्रतिशत) बाढ़ संभावित है; 68 प्रतिशत खेती योग्य क्षेत्र सूखा संभावित है; तथा 7516 कि.मी. के तटीय क्षेत्र में से 5700 कि.मी. चक्रवात संभावित है। आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 आपदा प्रबंधन के प्रति नजरिए में बदलाव लेकर आया है तथा अब यह राहत केंद्रित न होकर समग्र तथा एकीकृत नजरिए के रूप में है जिसमें बचाव, न्यूनीकरण, तैयारी, प्रतिक्रिया, राहत, पुनर्निर्माण तथा पुनर्वास शामिल है। इस अधिनियम के कारगर कार्यान्वयन की जरूरत है।

इस सम्मेलन में भाग लेने वाले गणमान्य व्यक्तियों में भारत के उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केन्द्रीय रक्षा, वित्त, गृह, विधि एवं न्याय, जनजातीय कार्य, मानव संसाधन विकास, उपाध्यक्ष, योजना आयोग तथा पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभाव) शामिल थे।

यह विज्ञप्ति 1225 बजे जारी की गई।

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