राष्ट्रपति भवन : 10.08.2015
भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (10 अगस्त 2015) राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क का प्रयोग करते हुए राष्ट्रपति भवन से उच्च शिक्षा संस्थानों के विद्यार्थियों और संकाय सदस्यों को संबोधित किया। संबोधन का विषय ‘भारत में उच्च शिक्षा संस्थानों का सशक्तीकरण’ था।
विद्यार्थियों और संकाय सदस्यों को संबोधित करते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि वह डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के निधन से हुई अपूरणीय क्षति के साये में संबोधित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनके दो प्रख्यात पूर्ववर्तियों, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, एक दार्शनिक शिक्षक तथा डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, एक वैज्ञानिक शिक्षक, ने शिक्षा के क्षेत्र में उनके विचारों पर गहरा प्रभाव डाला है।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे आकर्षक और जीवंत लोकतंत्र को और उच्च शिखर पर ले जाने के लिए हमें उच्च शिक्षित और कुशल युवा पुरुषों और महिलाओं की आवश्यकता है। यह हमारी उच्च शिक्षा प्रणाली के समक्ष चुनौती है। सूचना को ज्ञान में और ज्ञान को प्रज्ञा में बदलने के लिए असाधारण कौशल की आवश्यकता होती है जिसे हमें अपने विद्यार्थियों को प्रदान करना चाहिए। उन्हें आजीवन शिक्षण के लिए तत्पर रहना चाहिए जो अब डिजीटल प्रौद्योगिकी के कारण और सरल हो गया है। हमारे विद्यार्थियों में एक जिज्ञासु प्रवृत्ति तथा अनुसंधान उन्मुख दृष्टिकोण पैदा करनी होगी।
राष्ट्रपति ने कहा कि विद्यार्थियों को ज्ञान का सामूहिक रूप से प्रबंधन सीखना चाहिए। युवा पीढ़ी के लिए यह सीखना जरूरी है कि अपनी शिक्षण प्रक्रिया में मदद के लिए नवीनतम प्रौद्योगिकियों का प्रयोग कैसे किया जाए। विश्वविद्यालयों को समुचित हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर युक्त माहौल तैयार करना चाहिए,जहां ‘प्रेरित शिक्षक’ ज्ञान के प्रचार-प्रसार का प्रभावी प्रयोग कर सकें। उद्यमशीलता एक अन्य गुण है जिसका हमें बचपन से अपने विद्यार्थियों में समावेश करना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि नेतृत्व कौशल निर्मित करने के लिए लोकतांत्रिक शासन ढांचों और प्रणालियों की गहरी समझ से युक्त मूल्यपरक शिक्षा आवश्यक है। हमारी भावी युवा पीढ़ी में ‘हम कर सकते हैं’ की भावना का समावेशन करना होगा। उनका स्वभाव ‘सही कार्य करने’ और ‘कार्य को सही ढंग से करने’ का होना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि उच्च स्तरीय संस्थानों के शैक्षिक प्रबंधन को सुधारने के लिए तात्कालिक उपाय किए जाने जरूरी हैं। विश्वविद्यालयों की दो प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय वरीयताओं के अंतर्गत, सर्वोच्च 200संस्थानों में भारत की एक भी प्रविष्टि नहीं है। वरीयता प्रक्रिया को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। उच्च स्थान प्राप्त होने से शैक्षिक समुदाय का मनोबल तथा विद्यार्थियों की प्रगति और रोजगार के और अधिक अवसर बढ़ सकते हैं। समवेत प्रयासों के परिणामस्वरूप आज भारत के 9 संस्थान ब्रिक्स क्षेत्र के सर्वोच्च 50 में शामिल हैं जिसमें से भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलूरू पांचवें स्थान पर है। उन्होंने आशा व्यक्ति की कि ब्रिक्स वरीयता जैसी ही सफलता अन्य अंतरराष्ट्रीयता वरीयताओं में भी मिलेगी।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे विद्यालयों तथा इंजीनियरी और अनुसंधान संस्थानों द्वारा भारत को प्रौद्योगिकी आधारित उत्पाद का केन्द्र बनाया जाना चाहिए। उन्हें अनुसंधान की संस्कृति का निर्माण करना चाहिए तथा सभी स्तर पर अनुसंधान कार्यकलाप को प्रोत्साहित करना चाहिए। हमारे उच्च शिक्षण संस्थानों को प्रमुख भागीदारों के साथ अपने संबंधों को बढ़ाना चाहिए। भारत के शिक्षा संस्थानों को प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ साझीदारियां करनी चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि संस्थान शासी निकाय के माध्यम से शैक्षिक प्रबंधन के लिए अपने कुछ प्रतिष्ठित पूर्व विद्यार्थियों की दक्षता और विशेषज्ञता प्राप्त कर सकते हैं। उच्च शिक्षा संस्थान को समग्र रूप से समाज के साथ संवाद करना चाहिए। समग्र परिवर्तन के लिए आसपास के गांवों को गोद लेना तथा उन्हें आदर्श गांव में रूपांतरित करना एक अच्छी शुरुआत हो सकती है।
राष्ट्रपति ने विद्यार्थियों से बातचीत की जिन्होंने उनसे अनेक प्रश्न किए। बाद में, अपनी समापन टिप्पणी में राष्ट्रपति ने कहा कि, शिक्षकों को कुम्हार के हल्के और दक्ष हाथों के समान ही विद्यार्थियों का भविष्य गढ़ना चाहिए जिससे राष्ट्र का भाग्य संवारा जा सके। उनके विचार में एक प्रेरित शिक्षक, मूल्यपरक, मिशन संचालित, आत्म प्रेरित तथा परिणामोन्मुख व्यक्ति होता है।
वह अपने कार्यों द्वारा तथा विद्यार्थियों को उनकी क्षमता को साकार करने में मदद के लिए उन्हें ज्ञान प्रदान करके एक सकारात्मक वातावरण तैयार करता है। एक प्रेरित शिक्षक विद्यार्थियों के व्यक्तिगत लक्ष्यों को समाज और राष्ट्रीय लक्ष्यों से जोड़ता है। उन्होंने कहा कि हमें प्रतिभाओं को शैक्षिक पेशे की ओर आकर्षित करना चाहिए। एक पेशे के तौर पर अध्ययन को सम्मान तथा पहचान मिलनी चाहिए जिसका वह हकदार है। हमारा वातावरण ऐसा होना चाहिए जो रचनात्मकता को बढ़ावा दे तथा गुणों का सम्मान करे।
उच्च शिक्षण संस्थानों के विद्यार्थियों और संकाय को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए वर्ष में दो बार संबोधित करना ऐसी परंपरा है जिसे राष्ट्रपति ने जनवरी 2014 में आरंभ किया। इस ई-मंच के माध्यम से,जिसकी क्षमता को बढ़ाकर अब दुगुना कर दिया गया है, राष्ट्रपति के लिए कश्मीर से कन्याकुमारी, पश्चिम से पूर्व तथा पूर्वोत्तर के और व्यापक श्रोताओं से संवाद करना संभव हो गया है।
यह विज्ञप्ति 15:00बजे जारी की गई।