राष्ट्रपति भवन : 10.08.2015
भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (10 अगस्त, 2015) नई दिल्ली में डॉ. एम. वीरप्पा मोइली,संसद सदस्य (लोक सभा) को वर्ष 2014 का 24वां सरस्वती सम्मान प्रदान किया। उन्होंने यह पुरस्कार कन्नड़ में लिखित महाकाव्य ‘श्री रामायण महानवेशणम्’ के लिए प्राप्त किया।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें अपने साथी सांसद तथा कई दशक पुराने मित्र डॉ. एम. वीरप्पा मोइली को प्रतिष्ठित सरस्वती सम्मान प्रदान करने का सौभाग्य मिलने पर विशेष प्रसन्नता हो रही है। उन्होंने डॉ. मोइली को सफल राजनीतिक जीवन के साथ-साथ प्रखर लेखन के द्वारा साहित्य में योगदान के लिए बधाई दी।
राष्ट्रपति ने कहा कि मूल काव्य से प्रेरित 43000 पंक्तियों की अपनी विशाल कृति में डॉ. मोईली ने हमें समसामयिक परिस्थितियों के बारे में अपनी विशिष्ट अंतदृष्टि की जानकारी दी है। इसके बाद उन्होंने उन पर सुशासन, उच्च नैतिकता तथा सदाचार जैसे शाश्वत सिद्धांतों की दृष्टि से विचार किया है। उन्होंने अपना यह विश्वास व्यक्त किया है कि वर्तमान भारत को रामायण से बहुत कुछ सीखना है, विशेष कर यह कि हमारे राष्ट्र निर्माण के प्रयासों का आधार सहिष्णुता, बहुलता तथा समावेशिता की मजबूत नींव होना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि जैसे रामायण में बुराई पर अच्छाई की जीत होती है—और गांधी जी के शब्द ‘सत्यमेव जयते’ हमें यह याद दिलाते हैं कि अंतत: सत्य की ही जीत होती है, उसी प्रकार मोइली जी का महाकाव्य हमारे समक्ष अपने विचारों और कार्यों में करुणा, आत्मशुद्धि तथा अनुशासन के शाश्वत मूल्यों को प्रस्तुत करता है। डॉ. मोइली के संदेश में उन्हें अपने खुद के विचारों की प्रतिध्वनि सुनाई देती है कि हमारा लोकतंत्र तभी फल-फूल सकता है जब संसद सक्रिय हो,जनता के प्रतिनिधियों की परिकल्पना सुस्पष्ट हो और उनके प्रयासों को मेहनती सरकार तथा स्वतंत्र न्यायपालिका का सहयोग मिले। इसके अलावा, यह प्रणाली जिम्मेदार मीडिया तथा सतर्क समाज पर निर्भर है। यह कृति सही मायने में न केवल भारतीय साहित्य में वरन् रामायण की परंपरा में एक मील का पत्थर कही जा सकती है।
यह विज्ञप्ति 19:30 बजे जारी की गई।