राष्ट्रपति भवन : 30.03.2014
भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (30 मार्च, 2014) नई दिल्ली में भारतीय लोक प्रशासन संस्थान के हीरक जयंती समारोह का उद्घाटन किया।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र हमारे राष्ट्र निर्माण की आत्मा और मूल है। कोई भी सार्थक विकास अथवा शासन हमारे शासनतंत्र के इस प्रमुख रीढ़रज्जू के संरक्षण और पोषण के बिना नहीं किया जा सकता। शासन के तीनों ढांचों विंधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका द्वारा लोकतांत्रिक नींव को मजबूत करने का निरंतर प्रयास होना चाहिए। इस प्रयास में लोक सेवा की गुणवत्ता एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है और जो एक ऐसी सिविल सेवा द्वारा दी जा सकती है जो इस वास्तविकता से परिचित हो। लोगों का कल्याण उनका सघन लक्ष्य होना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि समावेशी प्रगति और विकास के लिए लोक सेवा की गुणवत्तापूर्ण और कुशल सुपुर्दगी बहुत महत्त्वपूर्ण है। लोग बेहतर तथा अधिक कुशल प्रशासन की मांग कर रहे हैं। वे अब अपारदर्शी और निष्क्रिय प्रशासन को सहन नहीं करेंगे। वे उम्मीद करते हैं कल्याणकारी उपायों के लाभ उन तक सही प्रकार पहुंचे। लोगों की बढ़ती अपेक्षा को जन कल्याण पर आधारित सुशासन परिपाटियों में सुधार लाकर पूरा किया जा सकता है क्योंकि इसी पर जनकल्याण आधारित है।
राष्ट्रपति ने कहा कि यद्यपि सुशासन शब्द विकास के शब्दकोश में लगभग दो दशक से अधिक प्रचलित हुआ है, लेकिन इसका महत्त्व प्राचीन काल से ही ज्ञात था। जैसा कि कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में बल दिया है, ‘‘प्रजा की खुशहाली राजा की खुशहाली है; उनका हित ही उसका हित है, उसका व्यक्तिगत हित सच्चा हित नहीं है; उसकी प्रजा का हित ही सच्चा हित है; इसलिए राजा को अपनी प्रजा की समृद्धि और कल्याण के लिए कार्य करने में सक्रिय होना चाहिए’’। महात्मा गांधी के पूर्ण स्वराज की अवधारणा अथवा सुदृढ़ और समृद्ध भारत का विचार सुशासन की बुनियाद पर आधारित है। सुशासन का महत्त्व, सामाजिक कल्याण और जनहित के साथ अपने अभिन्न सम्बन्ध के कारण अधिकाधिक स्वीकार और पहचाना जा रहा है। यह एहसास बढ़ रहा है क्योंकि सुशासन के अभाव की बहुत सी सामाजिक कमियों का मूल कारण माना जा रहा है। इससे उनकी सुरक्षा, सामाजिक और आर्थिक अधिकार बुरी तरह प्रभावित होते हैं जबकि विडंबना यह है कि शासन तंत्र उनके कल्याण और सामूहिक हित के लिए स्थापित किया जाता है। सुशासन मानव जीवन के सभी पहलुओं में शामिल है। यह स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तरों पर जरूरी है। इसकी शुरुआत निर्णय करने में सहभागिता से होती है और यह उनके कार्यान्वयन के सभी पहलुओं तक व्याप्त है। इसमें विधि का शासन, सहभागितापूर्ण निर्णय का ढांचा, पारदर्शिता, जवाबदेही, प्रतिसंवेदना, समता और समावेशन शामिल है। देश के प्रशासन का संचालन इन सिद्धांतों पर होना चाहिए। इसके लिए हमारे लोक प्रशासन के नजरिए को पुन: अभिमुख करना जरूरी है।
राष्ट्रपति ने कहा कि लोगों तक विकास कार्यक्रमों के ठोस लाभ पहुंचाने के लिए सरकारी तंत्र के सम्पूर्ण क्षेत्र में सुशासन अपनाना आवश्यक है। इसके लिए लोकतांत्रिक संस्थानों का कुशल कामकाज जरूरी है। हमारे जैसे विशाल और जटिलता वाले देश में किसी काल्पनिक विचार से नहीं बल्कि एक व्यावहारिक आवश्यकता द्वारा प्रशासन को शक्ति और निर्णय के विकेंद्रीकरण के जरिए जमीनी स्तर के नजदीक ले जाना होगा। लोगों के भविष्य को संवारने वाली विकास योजनाओं के निर्माण और कार्यान्वयन में उन्हें वास्तविक रूप से शामिल करने के लिए आवश्यक है कि पंचायती राज का काम विधिवत् होता रहे।
राष्ट्रपति ने कहा कि यदि हमें विकास की तीव्र गति हासिल करनी है तो निर्णय में भी उतनी ही तेजी लानी होगी। परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि निर्णय जल्दबाजी या पर्याप्त चर्चा और विचार-विमर्श के बिना लिए जाएं। इसका अर्थ यह है कि निर्णय और सेवा सुपुर्दगी में अनुचित विलंब नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें अपने लोक प्रशासन को एक गतिशील और परिणामपरक ढांचे में बदलना है। भारत को वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए लोकसेवा अत्यंत आवश्यक है। इस संदर्भ में भारतीय लोक प्रशासन संस्थान तथा ऐसे ही अन्य संस्थानों की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है।
राष्ट्रपति ने कहा कि व्यापक नजरिया विकसित करने और उसे जन सेवकों को प्रदान करने की आवश्यकता है। यह जानकर संतुष्टि हुई है कि भारतीय लोक प्रशासन संस्थान ने अपने पाठ्यक्रम में सामाजिक क्षेत्र के मुद्दों, व्यवहार विज्ञान, नैतिक प्रशासन, शहरी पर्यावास प्रबंधन, पर्यावरणीय और जलवायु अध्ययन, लैंगिक नीति तथा बजट निर्धारण, ज्ञान प्रबंधन और ई-शासन को महत्त्व प्रदान किया है। यद्यपि भारतीय लोक प्रशासन ने सराहनीय कार्य किया है परंतु लोक प्रशासन में परिवर्तन के उत्प्रेरक के रूप में इसका महत्त्व बढ़ाने के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है। इसे अपने प्रशिक्षण कार्यक्रम में नैतिकतापूर्ण शासन को प्रमुख स्थान देना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत को भविष्य का सामना करना है। हमारे देश के लोग ऐसी ईंट के समान हैं जो एक महान समाज का निर्माण कर सकते हैं। आत्मतुष्टि के लिए कोई स्थान नहीं है। उन्होंने जोर देकर कहा कि हम में से प्रत्येक को अपना योगदान देना होगा।
इस अवसर पर, भारतीय लोक प्रशासन संस्थान के दो स्मारक प्रकाशन ‘भारतीय शासन रिपोर्ट 2012’ तथा ‘जवाहर लाल नेहरू और भारतीय प्रशासन’ का लोकार्पण किया गया तथा उनकी प्रथम प्रतियां राष्ट्रपति को भेंट की गई।
यह विज्ञप्ति 1355 बजे जारी की गई।