भारत के राष्ट्रपति ने आज राष्ट्रपति भवन में ‘शिक्षक बनें’ कार्यक्रम का उद्घाटन किया
राष्ट्रपति भवन : 04.09.2015

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (4सितम्बर, 2015) राष्ट्रपति भवन में शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर दिल्ली सरकार के कार्यक्रम ‘शिक्षक बनें’ का उद्घाटन किया। राष्ट्रपति जी ने राष्ट्रपति संपदा के डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सर्वोदय विद्यालय की कक्षा11और 12 के विद्यार्थियों को भारत का राजनीतिक इतिहास पढ़ाया।

विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए, राष्ट्रपति जी ने कहा कि वह प्रेजिडेंसी कॉलेज कोलकाता में राजनीतिक विज्ञान के शिक्षक रह चुके हैं। उन्हें शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर बहुत वर्षों के बाद शिक्षक की अपनी भूमिका फिर से निभाने पर प्रसन्नता हो रही है। उन्होंने विद्यार्थी के रूप में अपने प्रिय दिनों को याद किया। उन्होंने कहा कि इतने वर्षों के दौरान शिक्षा प्रणाली में भारी बदलाव आए हैं। उन्होंने बहुदलीय लोकतंत्र के विकास का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने अपनी आंखों के सामने बहुत से घटनाक्रमों को घटित होते हुए देखा है तथा उन्हें भारतीय लोकतंत्र पर अचंभा होता है। लोकतंत्र आम आदमी को अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने का अवसर प्रदान करता है। लोकतंत्र के कारण ही वह रायसीना हिल्स तक पहुंच सके हैं। बच्चे अपने संरचना काल में जो कुछ सीखते हैं वह उनके मस्तिष्क पर स्थाई प्रभाव डालता है। संभवत: उनकी मां ही उनकी सर्वोत्तम शिक्षिका थी जिन्होंने उनमें प्राचीन सभ्यतागत मूल्यों के महत्व का समावेश किया था।

राष्ट्रपति जी ने इस अवसर पर दिल्ली सरकार के शिक्षकों को भी संबोधित किया। उन्होंने शिक्षक समुदाय को हार्दिक बधाई देते हुए डॉ. सर्वपल्ली राधकृष्णन को याद किया जिन्होंने आधुनिक भारत में शिक्षा क्षेत्र को दिशा प्रदान करने में असाधारण योगदान दिया।

राष्ट्रपति जी ने कहा कि भारत को गुरुओं की भूमि कहा जाता है। गुरु शिष्य परंपरा सभ्यतागत मूल्यों के सिद्धांतों में से एक है। शिक्षा वह रसायन विद्या है जो भारत को उसके अगले स्वर्णयुग में ले जा सकती है। डॉ. राधाकृष्णन को उद्धृत करते हुए राष्ट्रपति जी ने कहा, ‘शिक्षा इस बात को ध्यान में रखकर दी जानी चाहिए कि हम किस तरह के समाज का निर्माण करना चाहते हैं। हम मानवीय गरिमा और समानता के मूल्यों पर निर्मित आधुनिक लोकतंत्र के लिए प्रयासरत हैं। यह केवल आदर्श हैं और हमें इनको जीती जागती शक्ति बनाना होगा।’

राष्ट्रपति जी ने कहा कि शिक्षक कुम्हार के नर्म तथा दक्ष हाथों के समान होते हैं। वह हजारों विद्यार्थियों के भाग्य की रचना करते हैं और परिणामस्वरूप देश के भविष्य का निर्माण करते हैं। उन्हें ऐसे बहुत से प्रेरित शिक्षक मिले हैं जो अपने विद्यार्थियों के जीवन को प्रभावित कर रहे हैं, राष्ट्रपति जी ने कहा कि एक पेशे के तौर पर अध्यापन को वह आदर और सम्मान मिलना चाहिए जिसका वह हकदार है। उन्होंने इस बात पर दुख व्यक्त किया कि बहुत से विश्वविद्यालयों में योग्य शिक्षकों की कमी है तथा उन्होंने कहा कि अध्यापन के पेशे में सर्वोत्तम मेधाओं को आकर्षित करने की जरूरत है।

राष्ट्रपति जी ने शिक्षकों का आह्वान किया कि वे शिक्षक दिवस के अवसर पर समाज के पुननिर्माण के प्रति खुद को पुन: समर्पित करें।

दिल्ली सरकार के ‘शिक्षक बनें’ कार्यक्रम के तहत न्यायपालिका,सिविल सेवाओं,मीडिया, चिकित्सा, उद्यमिता इत्यादि विभिन्न क्षेत्रों के उच्च पदस्थ व्यक्ति स्वेच्छा से सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों के साथ अपने अनुभवों को बांटने के लिए कुछ गुणवत्तापूर्ण समय देंगे। यह अपेक्षा है कि इस प्रयास से न केवल शिक्षकों को प्रेरणा मिलेगी बल्कि युवाओं को एक पेशे के रूप में अध्यापन को अपनाने की भी प्रेरणा मिलेगी।

यह विज्ञप्ति 17:56 बजे जारी की गई।

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