भारत के राष्ट्रपति ने ‘21वीं शताब्दी में बौद्ध धर्म—विश्व चुनौतियां और संकट के परिप्रेक्ष्य और प्रत्युत्तर’ पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के समापन समारोह को संबोधित किया
राष्ट्रपति भवन : 19.03.2017

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (19 मार्च, 2017) राजगीर, नालंदा, बिहार में ‘21वीं शताब्दी में बौद्ध धर्म—विश्व चुनौतियां और संकट के परिप्रेक्ष्य और प्रत्युत्तर’ पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के समापन समारोह को संबोधित किया।

इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि आज विश्व का कोई भाग हिंसा की बुराई से मुक्त नहीं है। यह संकट सर्वव्यापक हो गया है। अब यह मूल प्रश्न उठाया जा रहा है कि इस अनियंत्रित विध्वंस को कैसे रोका जाए और पुन: शांति स्थापित की जाए। उन्होंने कहा कि बौद्ध दर्शन आज भी पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है, विशेषकर ऐसे समय में जबकि विश्व दु:साध्य प्रतीत होने वाली जटिल समस्याओं से जूझ रहा है। बौद्ध धर्म का मानव सभ्यता पर एक गहरा प्रभाव है। शक्तिशाली सम्राट अशोक भी जिसकी आकांक्षा अपने साम्राज्य का विस्तार करने की थी, प्रचारक बन गए। धम्म अशोक को इतिहास में योद्धा अशोक से अधिक याद किया जाता है।

राष्ट्रपति ने कहा कि नालंदा हमारी प्राचीन शिक्षा प्रणाली को प्रतिबिम्बित करता है जिसने प्राचीन भारत के प्रतिभावापन विद्यार्थियों और शिक्षकों को आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि शिक्षा का अर्थ मस्तिष्क का विकास करना है और उसके लिए ऐसे वातवरण की आवश्यकता है जो विचारों के उन्मुक्त आदान-प्रदान के अनुकूल हो। उन्होंने गांधीजी का उद्धरण दिया जिन्होंने बुद्ध के बारे में कहा था ‘‘वह हिन्दू धर्म की सर्वोत्तम विशेषताओं से युक्त थे और उन्होंने वेदों की कुछ ऐसी शिक्षाओं को जीवित किया जो विस्मृत कर दी गई थीं। उनकी महान हिन्दूवादी भावना ने उन निरर्थक शब्दों के जंगल में से अपना रास्ता बनाया जिन्होंने वेदों के स्वर्णिम सत्य को आवृत्त कर दिया था।’’

उपस्थित प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि अपने-अपने कार्य और प्रभाव क्षेत्रों में वापस लौटने पर वे सरल सत्यों तथा बुद्ध के उस पथ को बढ़ावा देने के प्रयास दुगुने कर दे जो यह बताता है कि हम बेहतर नागरिक बन सकते हैं और अपने देश को रहने का एक बेहतर स्थान बनाने में योगदान कर सकते हैं।

राष्ट्रपति ने प्रसन्नता व्यक्त की कि नव नालंदा महाविहार ने संपूर्ण पालि त्रिपिटक (बुद्ध के मूल ग्रंथ और शिक्षाएं) को देवनागरी लिपि में 41 खण्डों में प्रकाशित किया है। उन्होंने इस महान उपलब्धि और विश्व का सर्वप्रथम बौद्ध विज्ञान विभाग खोलने के लिए नव नालंदा महाविहार विश्वविद्यालय को बधाई दी। उन्होंने कहा कि वह यह प्रोत्साहित करना चाहेंगे कि इन ग्रंथों को बौद्ध अध्ययन संस्थानों और हमारे क्षेत्रों से दूर शैक्षिक विशिष्टता से इतर विश्व के समस्त भागों के विश्वविद्यालयों में इस प्रकार फैला देना चाहिए जिस प्रकार प्रवासी पक्षी बदज फैलाते हैं। उन्होंने कहा कि इन पहलों से बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को अत्यंत लोकप्रिय बनाया जा सकता है। इनमें भावी पीढ़ियां मानवता, सहिष्णुता, अनुशासन और करुणा के सर्वोच्च आदर्शों के साथ आसानी से जुड़ सकेंगे। वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, उद्यमियों और नेताओं द्वारा इन मूल्यों को इनकी मूल भावना के साथ अपनाने से निस्संदेह वे शंकावाद और निराशावाद के समाधान के लिए तैयार होने के लिए कार्य करेंगे।

यह विज्ञप्ति 1700 बजे जारी की गई

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