राष्ट्रपति भवन : 20.09.2013
भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (20 सितम्बर, 2013) विज्ञान भवन, नई दिल्ली में एक समारोह में वर्ष 2011 और 2012 के लिए राष्ट्रीय सांप्रदायिक सद्भावना पुरस्कार प्रदान किए।
इस अवसर पर बोलते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे संविधान में हर एक नागरिक का यह नैतिक कर्तव्य निर्धारित किया गया है कि वह ‘धर्म, भाषा तथा क्षेत्रीय अथवा वर्गीय विविधताओं से परे भारत के सभी लोगों के बीच सद्भावना तथा आम भाइचारे के जज्बे को बढ़ावा देगा।’ उन्होंने पूछा कि इस पावन दायित्व के बावजूद, राज्य नीति के नीति निर्धारक सिद्धांतों के बावजूद तथा हमारी प्रशासनिक मशीनरी द्वारा उठाए गए सभी कदमों के बावजूद, आखिर यह सांप्रदायिकता हमारे समाज से दूर क्यों नहीं हो पाती। उन्होंने कहा कि हमारी कोई भी संस्था घृणा नहीं सिखाती। कोई भी धर्म, विद्वेष नहीं सिखाता।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय समाज की ताकत तथा इसका लचीलापन इसकी बहुलता तथा विविधता में निहित है। यह विशिष्ट गुण हमारे समाज में न तो कहीं से लाया गया और न ही यह अचानक आया बल्कि इसे भारतीय चेतना की सहनशीलता तथा विवेक ने सुविचारिता रूप से पाला और पोषा है। ये सिद्धांत हमारे पंथनिरपेक्ष ताने-बाने की बुनियाद हैं और भले ही सामाजिक शांति तथा सद्भावना बनाए रखना सरकार का कार्य हो परंतु इस जिम्मेदारी को हर एक व्यक्ति के दायित्वों से अलग नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि जिन विशिष्ट पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं को आज सम्मानित किया गया है उनका अनुकरण होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें उनकी उपलब्धियों में अपने निजी तथा सामूहिक प्रयासों के योगदान को जोड़ना होगा।
इस अवसर पर उपस्थित व्यक्तियों में भारत के उपराष्ट्रपति, भारत के प्रधानमंत्री तथा केन्द्रीय गृह मंत्री शामिल थे।
यह विज्ञप्ति 1430 बजे जारी की गई।