राष्ट्रपति भवन : 01.11.2016
56वें राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज पाठ्यक्रम के सदस्यों तथा संकाय ने आज (01 नवंबर, 2016) राष्ट्रपति भवन में भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी से भेंट की।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि वर्तमान संदर्भ में, वैश्विक वातावरण के बदलते पहलुओं के कारण दुनिया के समक्ष अनेक चुनौतियां पैदा हो रही है। जिस तेज गति से ये घटनाएं हाल ही में हुई हैं वैसी एक दशक पहले नहीं देखी जा सकती थी। प्रत्येक देश अपने राष्ट्रीय हितों और उद्देश्यों के अनुसार कार्रवाई करता है। संबंध निरंतर बदल रहे हैं तथा जब तक कोई देश विश्व में हो रहे बदलावों को नहीं समझता है या उनके प्रति स्वयं को नहीं ढालता है तो उसकी अपनी सुरक्षा गंभीर रूप से खतरे में पड़ सकती है।
राष्ट्रपति ने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों के मूल्यवान होने के कारण राष्ट्रों के बीच इन संसाधनों को अपने नियंत्रण में लेने की विकट स्पर्द्धा होगी। बदलते शक्ति समीकरणों के द्वारा ये चुनौतियां और बढ़ जाएंगी। सुरक्षा की संकल्पना में भी प्रमुख बदलाव आया है। अब सुरक्षा क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा तक ही सीमित नहीं हैं। इसमें आर्थिक ऊर्जा, खाद्य, स्वास्थ्य, पर्यावरणीय तथा राष्ट्रीय बेहतरी के अन्य आयाम भी शामिल हो गए हैं। इस प्रकार यह राष्ट्रीय शक्ति के सभी तत्वों सहित एक व्यापक संकल्पना बन गई है। सभी क्षेत्रों और विधाओं में गहन अनुसंधान और गुणवत्ता विश्लेषण एक प्रमुख जरूरत बन गई है जिसके लिए विविध विधाओं में अध्ययन का समग्र दृष्टिकोण आवश्यक है। विभिन्न अवयवों को मजबूत करने और उन्हें विभाजित न करने के विचारपूर्ण प्रयास होने चाहिए। ऐसा समेकित दृष्टिकोण अपनाना बड़े लाभ प्राप्त करने और उभरती हुई चुनौतियों का सामना करने का एकमात्र विकल्प है। ऐसा करते हुए विशाल परिदृश्य से दृष्टि नहीं हटानी होगी और प्रमुख राष्ट्रीय उद्देश्यों को सदैव ध्यान में रखना होगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत जैसी बहुदलीय लोकतांत्रिक प्रणाली में राष्ट्र के प्रत्येक विभाग को इन अवयवों की विशेषता और कमियों को समझना होगा। राष्ट्र के सभी अंगों, राजनीतिक नेतृत्व, नागरिक नेतृत्व और सैन्य बलों को इस प्रकार की कार्यनीति बनानी चाहिए जिससे हमारी रक्षा क्षमताएं बढ़ें और हमारी विशेषताएं प्रभावी रूप से सामने आएं।
राष्ट्रपति ने कहा कि किसी भी राष्ट्र की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह कितने प्रभावी ढंग से उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग करता है और इन संसाधनों में मानव संसाधन सबसे प्रमुख है। भारत के राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए मानव संसाधन का विकास एक महत्वपूर्ण कार्य है जिसके अंतर्गत ना केवल सशस्त्र बलों बल्कि नागरिक सेवाओं तथा मित्र देशों के वरिष्ठ अधिकारियों को राष्ट्रीय उद्देश्य और लक्ष्यों से संबंधित समझदारीपूर्ण नीतिगत निर्णय लेने का पार्श्व ज्ञान प्रदान किया जाता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज ने वर्षों के दौरान प्रतिष्ठा अर्जित की है। उन्होंने कहा कि उन्हें ज्ञात है कि कुल छः अध्ययन राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज पाठ्यक्रम में शामिल हैं। सामाजिक राजनीतिक अध्ययन सदस्यों को भारतीय समाज और शासनतंत्र के प्रमुख पहलुओं की जानकारी देता है तथा उन मुद्दों के आकलन का ज्ञान देता है जिनका राष्ट्रीय सामाजिक संरचना पर प्रभाव पड़ता है। आर्थिक सुरक्षा अध्ययन आर्थिक प्रवृत्तियों का आकार देने वाले सिद्धांतों और परिपाटियों तथा व्यापक सुरक्षा पर इनके प्रभावों की जानकारी सदस्यों को देता है। इसी प्रकार अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा वातावरण, विश्व मुद्दे, विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा भारत के रणनीतिक पड़ोस पर अध्ययन अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा वातावरण और भारत की विदेश नीति पर इसके प्रभाव पर केंद्रित है। राष्ट्रीय सुरक्षा की कार्यनीतियों और ढांचों पर अंतिम अध्ययन में उन सभी चीजों का मिश्रण है जो उन्होंने वर्ष के दौरान सीखी और अनुभव की हैं।
राष्ट्रपति ने आशा व्यक्त की कि इस जानकारी से सदस्य और अधिक जागरूक और सुविचारित बनेंगे और वे देश के सुरक्षा परिप्रेक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए तर्कसंगत निर्णय ले सकेंगे। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा की समस्याओं के प्रति बहुविधात्मक नजरिए को ‘अर्थशास्त्र’ के लेखक चाणक्य जैसे प्राचीन दार्शनिकों और राजनीतिक विचारकों ने भी महत्व दिया था। आधुनिक भारत के निर्माता और प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी 1960 में राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज का उद्घाटन करते हुए स्पष्ट रूप से कहा था कि ‘रक्षा एक पृथक विषय नहीं है। यह देश के आर्थिक, औद्योगिक और बहुत से अन्य पहलुओं के साथ बारीकी से साथ जुड़ा हुआ है तथा इसमें सभी कुछ शामिल है।’
राष्ट्रपति ने कहा कि सैन्य मामलों और वैश्वीकरण में परिवर्तनों से सशस्त्र सेनाओं की भूमिका पारंपरिक सैन्य मामलों से आगे बढ़ गई है। यह स्पष्ट है कि जटिल रक्षा और सुरक्षा वातावरण के भावी संघर्षों के लिए एक अधिक समेकित बहुराष्ट्रीय और बहुएजेंसी दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी। इसलिए यह पाठ्यक्रम भविष्य के जटिल सुरक्षा वातावरण से पूरी तरह निपटने के लिए सैन्य मुखियाओं, पुलिस अधिकारियों और सिविल सेवकों को तैयार करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि एशिया के नए आर्थिक शक्ति केंद्र के रूप में उभरने से विश्व वित्तीय शक्ति का केंद्र पश्चिम से पूरब की ओर धीरे-धीरे अंतरित हो गया है। आतंकवाद पर विश्व युद्ध और राष्ट्रों को आतंकवादियों से खतरा एक अन्य संभावित पहलू है जिसमें विश्व समुदाय का समय और ऊर्जा लगेगी। भारत द्वारा सम्मुख राष्ट्रों की श्रेणी में अपना औचित्यपूर्ण स्थान बनाने की गति के दौरान देश के भीतर और बाहर अनेक चुनौतियों का सामना करना होगा।
यह विज्ञप्ति1915 बजे जारी की गई।