Convocation Address And Acceptance Speech By The President Of India, Shri Pranab Mukherjee At The Ceremony Conference The Doctor Of Laws Honoris Causa On Him By The University Of Dhaka
Dhaka, Bangladesh : 04-03-2013
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मुझे आज इस ऐतिहासिक स्थल पर आपके बीच आकर बहुत खुशी हो रही है। आपने मेरा शानदार स्वागत किया है। मैं आपके द्वारा दिखाए गए प्यार और स्नेह तथा इस शानदार स्वागत से अभिभूत हूं।
बांग्लादेश ऐसा पहला देश है जहां मैं भारत के राष्ट्रपति के रूप में सबसे पहली यात्रा पर आया हूं। किसी भारतीय राष्ट्रपति की पिछली बांग्लादेश-यात्रा लगभग 40 वर्ष पूर्व 1974 में राष्ट्रपति वी.वी. गिरि ने की थी।
मेरे स्वयं के लिए, यह एक भावपूर्ण यात्रा है। मेरी जड़ें बंगाल की भूमि में हैं और मुझ में इसकी भाषा, परंपरा तथा संस्कृति समाहित है। मेरी पत्नी नारैल में जन्मी तथा उन्होंने यहीं अपनी शिक्षा प्रारंभ की। मैं भी उन्हीं कवियों की रचनाएं पढ़कर बड़ा हुआ हूं जिनकी कविताएं आपने पढ़ी हैं, मैंने उन्हीं गीतों को सुना है जो हमारे दोनों देशों के लोग सुनते आए हैं तथा उन्हीं नदियों के तटों पर घूमा हूं जिनसे वे गीत निकलते हैं जो हम सभी को एक समान रूप से मंत्रमुग्ध कर देते हैं। जब मैं छोटा था, मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन मैं अपने देश के राष्ट्रपति के रूप में यहां आऊंगा।
जब मैं भारत का राष्ट्रपति बना, तो बांग्लादेश की जनता से मुझे जो सहज समर्थन तथा सद्भावना मिली मैं उससे अत्यंत अभिभूत हुआ। मुझे इस देश के सभी वर्गों तथा सभी हिस्सों से लोगों के बहुत से शुभकामना संदेश मिले। मैं उस दिन शुभकामनाएं देने के लिए, बांग्लादेश की जनता के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं।
आज, मैं उस महान ढाका विश्वविद्यालय के गौरवशाली प्रांगण में खड़ा हूं, जो शीघ्र ही अपनी शताब्दी मनाएगा। यह उपलब्धिपूर्ण सदी रही है तथा दीक्षांत समारोह के इस मौके पर मैं इस विश्वविद्यालय के उन सभी विद्यार्थियों का अभिनंदन करता हूं जिन्होंने अपने-अपने विषयों में सफल होकर उपाधियां प्राप्त की हैं। ढाका विश्वविद्यालय, बांग्लादेश का सबसे पुराना और सबसे बड़ा विश्वविद्यालय है। आज जब हम ‘पूर्व के आक्सफोर्ड’ के रूप में इसकी पुरानी प्रसिद्धि को याद करते हैं तो हम वर्तमान एशिया में सबसे अच्छे संस्थानों में इसका स्थान होने पर गौरव महसूस करते हैं। जो विद्यार्थी आज उपाधि प्राप्त कर रहे हैं, वे अपने से पिछली पीढ़ी में इस महान संस्थान से पढ़कर निकलने वाली महान सख्शियतों का अनुसरण कर रहे हैं। इनमें से कुछ नाम हैं, बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान, ताजुद्दीन अहमद, सत्येन्द्रनाथ बोस, आर.सी. मजूमदार, हुमायूं अहमद, बुद्धदेव बासु तथा शम्सुर रहमान। वे पिछली सदी के सबसे प्रबुद्ध लोगों में से थे जिन्होंने अपनी शैक्षणिक उपलब्धियों से प्रसिद्धि पाई थी।
जो भी यहां आता है, वह यह कभी नहीं भूल सकता कि यह विश्वविद्यालय आपकी राष्ट्रीयता की पहचान है। इस महान संस्थान के हॉल बांग्लादेश के निर्माण की भट्टी और कर्मभूमि रहे। इस परिसर में अनगिनत मुक्ति युद्ध के योद्धाओं ने और उससे पहले अग्रणी लोगों ने अपना जीवन बलिदान दिया। 21 फरवरी, 1952 का दिन कौन भूल सकता है जब ढाका विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने तत्कालीन सरकार द्वारा जनता की रैलियों पर प्रतिबंध को तोड़ा था। भाषा आंदोलन के शहीदों द्वारा दिए गए बलिदानों को संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता प्रदान की गई है और 21 फरवरी को ‘अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस’ घोषित किया गया है।
ये ढाका विश्वविद्यालय की विद्यार्थी ही थे जिन्होंने 25 मार्च, 1971 की रात्रि को अमानुषिक आक्रमण का प्रतिरोध किया था, जिसमें उनके तीन सौ से अधिक साथियों, संकाय सदस्यों तथा प्रबुद्ध व्यक्तियों की हत्या कर दी गई थी। वे तथा बहुत से अन्य लोग, इस धरती पर फैली असहनशीलता तथा घृणा के खिलाफ प्रतिरोध का आधार बने और उन्होंने मुक्ति के बाद देश के सामाजिक-राजनीतिक रूपांतरण का नेतृत्व किया।
आज, जब बांग्लादेश स्वतंत्र है, मुक्त है तथा खुशी-खुशी अपने विकास में जुटा हुआ है, इसके शहीदों का बलिदान सार्थक हुआ है। यह उनके ही कारण संभव हुआ कि आज बांग्लादेश के युवा इस भूमि को अपनी भूमि कह सकते हैं। आप जैसे युवक एवं युवतियां हमारे इस क्षेत्र के विकास के चालक हैं। बांग्लादेश का भविष्य आपके हाथों में है। आपको यह पता होना चाहिए कि आपका इतिहास गौरवमय है और भविष्य सुनहरा है। मैं राष्ट्र निर्माण के कार्य में बांग्लादेश के युवाओं की परिपक्वता, जागरूकता तथा उनके जुड़ाव से बहुत प्रभावित हुआ हूं। यही उनका प्रेम है—इस देश के राष्ट्रपिता-बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान ने अपनी प्रेरणा का उल्लेख इस तरह किया था : ‘‘एक आदमी के रूप में जो कुछ मानवता से जुड़ा है, मुझे वही उद्वेलित करता है। बंगाली के रूप में मैं उससे बहुत अधिक संबद्ध हूं जो बंगालियों के हित में है। यह चिरस्थाई प्रतिबद्धता प्रेम, स्थाई प्रेम से पैदा हुई है और उसी में पोषित हुई है और यही मेरी राजनीति तथा मेरे अस्तित्व को सार्थक बनाती है।’’
मानवता तथा विश्वास की यही असाधारण भावना बांग्लादेश की तेज गति से प्रगति में सहायक रही है। बांग्लादेश दक्षिण एशिया की सबसे तेजी से विकसित अर्थव्यवस्थाओं में से हैं। यह प्रशंसनीय है। मैं प्रधानमत्री शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार तथा बांग्लादेश की जनता को मानवीय विकास के सभी पहलुओं में उपलब्धि प्राप्त करने के लिए बधाई देना चाहूंगा। बहुत से सामाजिक सेक्टरों में बांग्लादेश ने अनुकरणीय प्रदर्शन किया है। यह देखा गया है कि बांग्लादेश के 15 से 24 वर्ष के बीच के युवाओं में साक्षरता दर अब 77 प्रतिशत है और जन्म के समय दीर्घजीविता लगभग 69 वर्ष है। आपने अच्छी प्रगति की है तथा गरीबी उन्मूलन, भूख मिटाने तथा शिक्षा को सर्वजनीन करने के क्षेत्र में नए मानदंड स्थापित किए हैं। बांग्लादेश के स्कूली पाठ्य पुस्तक कार्यक्रम को पूरी दुनिया में सबसे बड़े कार्यक्रम के रूप मं जाना जाता है तथा अब माध्यमिक स्कूल स्तर पर सकल नामांकन का अनुपात 51 प्रतिशत है। जहां बांग्लादेश में निर्धनता का अनुपात 31 प्रतिशत है वहीं आपके पास ऐसी विश्वस्तरीय उपलब्धियां हैं जिन पर एक समृद्ध और विकसित बांग्लादेश का निर्माण होगा। मुझे विश्वास है कि आप, बांग्लादेश के युवाओं के सहयोग से इस महान कार्य को पूर्ण समर्पण से आगे बढ़ाएंगे।
आज, अगर बांग्लादेश ने लोकतंत्र को अपनाया है तो वह मुख्यत: उन मूल्यों और सिद्धांतों के कारण है जो इनके लोगों को उस समय प्रिय थे जब उन्होंने 1971 में अपनी आजादी के लिए लड़ाई लड़ी थी। आप इन पर अविचलित रहे हैं। आप किसी दूसरे से भी बेहतर ढंग से जानते हैं कि लोकतंत्र का मतलब है मतांतरों का सम्मान करना तथा सभी की भलाई के लिए जनता की इच्छा को सर्वोच्च मानना। आप जानते हैं कि इसका मतलब है कानून के शान का सम्मान करना, तथा बोलने की आजादी तथा जीवंत मीडिया सहित मजबूत संस्थाओं का निर्माण करना। मुझे विश्वास है कि बांग्लादेश में लोकतांत्रिक परंपराएं समय के साथ-साथ मजबूत होंगी तथा आप निरंतर जागरूक रहकर लोकतंत्र की रक्षा करेंगे।
भारत और बांग्लादेश विश्व के किसी भी अन्य देश से, कहीं अधिक पारस्परिक ढंग से जुड़े हुए हैं। हमारे इतिहास तथा भूगोल के समान ही, हमारा भविष्य भी एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। अपने संसाधनों के तहत, भारत बांग्लादेश के व्यापक विकास तथा इसकी जनता की आकांक्षाओं को समर्थन देने के लिए प्रतिबद्ध है। हम यह मानते हैं कि भारत और बांग्लादेश को मिल-जुलकर विकास तथा प्रगति करनी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे विकास से दोनों देशों के लोगों को अधिक अवसर प्राप्त हों। हम दोनों के सामने समान चुनौतियां हैं तथा जैसा कि महामान्या प्रधानमंत्री, शेख हसीना ने कहा है हमारा समान शत्रु है—गरीबी। हमें अपने आर्थिक सहयोग की क्षमताओं का अधिक से अधिक उपयोग करना होगा। बांग्लादेश की अवस्थिति ऐसी है कि वह अपने प्राकृतिक तथा मानव संसाधनों का उपयोग एक तेजी से विकसित होती आधुनिक अर्थव्यवस्था के रूप में उभरने में कर सकता है। भूमि तथा समुद्र पर अपने संसाधनों की क्षमता के अलावा, बांग्लादेश की भौगोलिक अवस्थति अच्छी है जिसका पूरा शोधन और उपयोग होना चाहिए। बांग्लादेश दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के मार्गों के संगम पर पड़ता है। दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग का विचार बांग्लादेश में ही पैदा हुआ था। बांग्लादेश ने उप-क्षेत्रीय सहयोग की ओर बढ़ने की दिशा में एक बार फिर से नेतृत्व ग्रहण किया है। इससे बेहतर जल-प्रबंधन, अधिक बिजली तथा ग्रिड संयोजन, अधिक व्यापार तथा सामान और लोगों के अधिक बहु-देशीय आवागमन के रूप में व्यावहारिक परिणाम प्राप्त होंगे। भारत और बांग्लादेश हमारे क्षेत्र तथा उससे आगे दक्षिण-पूर्व एशिया में अधिक एकीकरण की दिशा में नेतृत्व प्रेदान कर सकते हैं।
जनवरी, 2010 में महामान्या प्रधानमंत्री, शेख हसीना की भारत यात्रा तथा सितंबर, 2011 में हमारे प्रधानमंत्री की बांग्लादेश यात्रा से भारत और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय संबंधों को भारी प्रोत्साहन मिला। अब हम हमारे पास ‘विकास के लिए सहयोग पर ढांचागत करार’ मौजूद है जिसमें आने वाले वर्षों में हमारे सहयोग के लिए दिशा निर्धारित है। मुझे यह उल्लेख करते हुए खुशी हो रही है कि दोनों देशों ने इन ऐतिहासिक यात्राओं के दौरान लिए गए दूरगामी निर्णयों के कार्यान्वयन की दिशा में काफी प्रगति की है। मैं आपको यह विश्वास दिलाता हूं कि भारत इनमें लिए गए निर्णयों के कार्यान्वयन के प्रति प्रतिबद्ध है।
भारत और बांग्लादेश के पास द्विपक्षीय व्यापार तथा वाणिज्य में वृद्धि के व्यापक अवसर हैं। भारत सरकार ने केवल 25 शुल्क लाइनों को छोड़कर, बांग्लादेश से सभी श्रेणी के आयातों को कोटा तथा शुल्क से मुक्त कर दिया है। बांग्लादेश अब हमारे विस्तृत बाजार में शुल्क रहित प्रवेश बना सकता है। मैं बांग्लादेश के उद्योग को इस अवसर का पूरा फायदा उठाने के लिए आमंत्रित करता हूं। हम शेष गैर-शुल्क प्रतिबंधों को समाप्त करने तथा अधिक सीमा-हाटों को खोलने तथा अपने-अपने मानदंडों को समरूप बनाने पर बांग्लादेश की सरकार के साथ कार्य कर रहे हैं।
भारत और बांग्लादेश के बीच संशोधित यात्रा व्यवस्थाओं पर हाल ही में हस्ताक्षर होने से, दोनों देशों के बीच वीजा व्यवस्थाओं में उदारीकरण होगा। इससे विशेषकर, व्यापारियों, विद्यार्थियों, पत्रकारों, पर्यटकों तथा चिकित्सा के लिए यात्रा करने वालों को लाभ होगा। लोगों के बीच अधिक मेल-जोल तथा आवागमन से हम दोनों देश अधिक निकट आएंगे।
मेरी सरकार द्वारा बांग्लादेश को दिए गए ऋण सुविधा के कार्यान्वयन में हुई प्रगति पर मुझे प्रसन्नता हो रही है। कई विकास परियोजनाएं, खासकर रेलवे सेक्टर से संबंधित, अब शुरू होने जा रही हैं। मुझे, ऋण सुविधा के तहत खरीदी गई डबल डैकर बसों को सड़कों पर चलते देख खुशी हुई। शीघ्र ही बहुत से भारतीय रेल इंजन तथा वैगन बांग्लादेश की रेल पटरियों पर दौड़ेंगे। हमने बांग्लादेश को 200 मिलियन अमरीकी डॉलर के अनुदान की पेशकश की है जिसका बांग्लादेश अपनी प्राथमिक परियोजनाओं में उपयोग कर सकता है। इस अनुदान में से, 50 मिलियन अमरीकी डॉलर की पहली किश्त कुछ सप्ताह पहले सौंप दी गई है।
पिछले वर्षों के दौरान, हमारे देशों ने विद्युत के क्षेत्र में भी काफी सहयोग बढ़ाया है। हमारे देशों के पावर ग्रिड, आजादी के बाद पहली बार, इस वर्ष के मध्य तक एक दूसरे से जुड़ जाएंगे। इससे भारत से बांग्लादेश को 500 मेगावाट विद्युत भेजी जा सकेगी। भारत बांग्लादेश मैत्री कंपनी द्वारा बांग्लादेश की ऊर्जा जरूरत पूरा करने के लिए मोंगला के नजदीक रामपाल में 1320 मेगावाट का अत्याधुनिक सुपर थर्मल विद्युत स्टेशन लगाया जा रहा है।
मेरी सरकार का बांग्लादेश के साथ भूमि सीमा करार के प्रावधानों तथा इसके 2011 प्रोटोकोल को प्रवृत्त करने के लिए संसद में संवैधानिक संशोधन विधेयक प्रस्तुत करने का प्रस्ताव है। हम अपनी सीमाओं पर अप्रिय घटनाओं से बचने के लिए बांग्लादेश के साथ मिलकर कार्य करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम मिलकर इसे शांति तथा परस्पर लाभदायक सहयोग का द्वार बना सकते हैं।
हमारी साझा नदियों के जल का मिल-जुलकर उपयोग हमारी उच्च प्राथमिकता है। हमने भूतकाल में सफलता से करार किए हैं तथा तीस्ता के जल के बंटवारे पर भी शीघ्र ही समझौता होने की उम्मीद करते हैं।
इसी बीच, कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिसमें हमें काफी सहयोग बढ़ाना होगा जैसे कि सूचना प्रौद्योगिकी, कौशल विकास, कृषि अनुसंधान, पर्यावरण संरक्षण, जलवायु परिवर्तन तथा सुंदरबन की संरक्षा और परंपरागत तथा नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से ऊर्जा का उपयोग।
हमें शिक्षा के क्षेत्र में अधिक निवेश करना होगा। हमारे विद्यार्थियों, संकाय, अनुसंधानकर्ताओं तथा विद्वानों के बीच अधिक आदान-प्रदान होना चाहिए। भारत सरकार बांग्लादेश के विद्यार्थियों और पेशेवरों को बहुत सी छात्रवृत्तियां देती है। अब बांग्लादेश से और अधिक विद्यार्थी अपने खर्च पर उच्च शिक्षा के लिए भारत आ रहे हैं। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद ने ढाका विश्वविद्यालय में एक टैगोर पीठ तथा एक हिंदी पीठ स्थापित की है। इन्होंने भारत और बांग्लादेश के बीच शैक्षिक आदान-प्रदान बढ़ाने में योगदान दिया है।
पिछले वर्ष मुझे बांग्लादेश से पहली बार भारत गए 100 युवाओं के शिष्टमंडल से मिलकर बहुत खुशी हुई थी। इनमें से कई विद्यार्थी ढाका विश्वविद्यालय से थे। मुझे यह उल्लेख करते हुए खुशी हो रही है कि इस वर्ष भी ऐसा ही एक शिष्टमंडल भारत जाएगा।
विश्व में ऐसे कुछ ही देश हैं जिनकी अन्त:करण में बांग्लादेश के समान संगीत, कविता, कला तथा नाट्य-कला गहराई तक समावेशित हैं। भारत में, हम आपसे काफी कुछ सीख सकते हैं। मुझे यह घोषणा करते हुए प्रसन्नता हो रही है कि शांतिनिकेतन में विश्वभारती विश्वविद्यालय द्वारा अपने परिसर में बांग्लादेश को ‘बांग्लादेश भवन’ बनाने के लिए भूमि प्रदान की जाएगी। यह भवन विश्वभारती के ‘बांग्लादेश अध्ययन कार्यक्रम’ के तहत अनुसंधान तथा प्रलेखन के केंद्र के रूप में कार्य करेगा।
आपको देखकर, मुझे यह भरोसा होता है कि बांग्लादेश का भविष्य उज्ज्वल है। मैं सोनार बांग्ला के आपके स्वप्न को सच्चाई में बदलने में आपकी सफलता की कामना करता हूं। आप जब अपने देश का भविष्य संवारेंगे तो भारत आपके साथ खड़ा रहगा।
इन्हीं शब्दों के साथ, मैं अत्यंत विनम्रता के साथ ढाका विश्वविद्यालय से डॉक्टर ऑफ लॉ की मानद उपाधि स्वीकार करता हूं।
मुझे आपके बीच आमंत्रित करने के लिए, मैं एक बार फिर से ढाका विश्वविद्यालय का धन्यवाद करता हूं। मैं इस अवसर पर आपके माध्यम से बांग्लादेश की मैत्रीपूर्ण जनता को भारत की जनता की ओर से शुभकामनाएं देता हूं।
भारत-बांग्लादेश मैत्री अमर रहे,
धन्यवाद।