राष्ट्रपति का प्रोफाइल
श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने 25 जुलाई, 2022 को भारत की 15वीं राष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण की। इससे पहले, वे, 2015 से 2021 तक झारखंड की राज्यपाल रहीं। उन्होंने अपना जीवन वंचित, पिछड़े और कमजोर वर्गों को सशक्त बनाने और लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने के लिए समर्पित किया है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
20 जून, 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले के उपरबेड़ा गांव में एक संथाली आदिवासी परिवार में जन्मी श्रीमती मुर्मु का प्रारंभिक जीवन कठिनाइयों और संघर्षों से भरा रहा। गाँव के स्कूल से प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद, वे, अपनी आगे की पढ़ाई के लिए अपनी ही पहल पर भुवनेश्वर गईं। उन्होंने रमादेवी महिला महाविद्यालय, भुवनेश्वर से कला स्नातक की उपाधि प्राप्त की। वे अपने गांव से कॉलेज जाने वाली प्रथम बालिका बनीं।
करियर
श्रीमती मुर्मु ने 1979 से 1983 तक ओडिशा सरकार के सिंचाई और बिजली विभाग में कनिष्ठ सहायक के रूप में कार्य किया। बाद में, 1994 से 1997 तक उन्होंने, श्री अरबिंद इंटीग्रल एजुकेशन सेंटर, रायरंगपुर में मानद शिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं दीं।
सार्वजनिक जीवन
वर्ष 2000 में, श्रीमती मुर्मु रायरंगपुर निर्वाचन क्षेत्र से ओडिशा विधान सभा की सदस्य के रूप में चुनी गईं और 2009 तक, दो कार्यकालों के लिए विधायक रहीं। इस अवधि के दौरान, उन्होंने 6 मार्च, 2000 से 6 अगस्त, 2002 तक ओडिशा सरकार के वाणिज्य और परिवहन विभाग की राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के रूप में तथा 6 अगस्त, 2002 से 16 मई, 2004 तक मत्स्य पालन और पशु संसाधन विभाग की राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के रूप में कार्य किया। दोनों ही दायित्वों के निर्वहन में, उन्होंने अभिनव निर्णय लिए और लोकहितकारी कदम उठाए।
उन्हें ओडिशा विधान सभा की विभिन्न समितियों व सदन समितियों और स्थायी समितियों का सदस्य नियुक्त किया गया। इनमें से कुछ समितियों की वे अध्यक्ष भी रहीं।
अपने गहन प्रशासनिक अनुभव और आदिवासी समाज के उत्थान हेतु, विशेषकर शिक्षा के क्षेत्र में किए गए प्रयासों के बल पर, उन्होंने अपनी एक विशेष पहचान बनाई। विधायक के रूप में उनकी विशिष्ट सेवाओं को ध्यान में रखते हुए, 2007 में उन्हें ओडिशा विधान सभा द्वारा ‘पंडित नीलकंठ दास - सर्वश्रेष्ठ विधायक सम्मान’ से विभूषित किया गया।
झारखंड के राज्यपाल
श्रीमती मुर्मु को, 18 मई, 2015 के दिन झारखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया। वे, उस आदिवासी बहुल राज्य की पहली महिला आदिवासी राज्यपाल बनीं। संविधान की गरिमा को अक्षुण्ण रखने तथा जनजातीय समुदायों के अधिकारों का समर्थन करने के लिए व्यापक रूप से उनकी सराहना की गई। उन्होंने राज्य विश्वविद्यालयों की परीक्षा और भर्ती प्रक्रियाओं में अनेक सुधार किए। राजनीतिक शुचिता और लोकतांत्रिक मूल्यों में अपनी निष्ठा के बल पर सभी राजनीतिक दलों के नेताओं का आदर उन्होंने अर्जित किया।
अन्य अभिरूचियां
श्रीमती मुर्मु, ओडिशा के आदिवासी सामाजिक-शैक्षिक और सांस्कृतिक क्षेत्र के अनेक संगठनों से जुड़ी रहीं।
स्वाध्याय में उनकी विशेष रूचि है और अध्यात्म में उनकी गहरी आस्था है।
व्यक्तिगत जीवन
श्रीमती मुर्मु का विवाह वर्ष 1981 में (स्वर्गीय) श्री श्याम चरण मुर्मु से हुआ जो एक बैंक अधिकारी थे। उनकी एक सुपुत्री है जिनका नाम इतिश्री मुर्मु है। उनके जामाता, श्री गणेश हेम्ब्रम एक रग्बी खिलाड़ी हैं।
देश एवं विदेश की यात्राएं
भारत की राष्ट्रपति के रूप में, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने देश की व्यापक रूप से यात्राएं की हैं। उन्होंने विश्व स्तर पर भारत की पहुँच और प्रभाव को बढ़ाने के लिए विदेश की यात्राएं भी की हैं। उन्होंने 2022 में यूनाइटेड किंगडम का दौरा किया, और सूरीनाम, सर्बिया, मॉरीशस, फिजी, न्यूजीलैंड और तिमोर-लेस्ते की राजकीय यात्राएं की। अपनी यात्राओं के दौरान उन्होंने प्रवासी भारतीयों से विशेष रूप से सम्पर्क बनाया और भारत के द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने में उनकी महत्ती भूमिका को स्वीकार किया। उन्हें सूरीनाम के "ग्रैंड ऑर्डर ऑफ द चेन ऑफ द येलो स्टार", फिजी के “कम्पैनियन ऑफ द आर्डर ऑफ फिजी”, और “ग्रैंड कोलर ऑफ द आर्डर ऑफ तिमोर-लेस्ते” से सम्मानित किया गया है। मॉरीशस गणराज्य की राजकीय यात्रा के दौरान उन्हें मॉरीशस विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टर ऑफ सिविल लॉ की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया है।