स्वच्छ और स्वस्थ समाज के लिए आध्यात्मिक सशक्तीकरण कार्यक्रम के शुभारंभ के अवसर पर सम्बोधन (HINDI)
नई दिल्ली : 27.05.2024
‘स्वच्छ और स्वस्थ समाज के लिए आध्यात्मिक सशक्तीकरण’ के विषय पर यह कार्यक्रम आयोजित करने के लिए मैं ब्रह्माकुमारी संस्थान की सराहना करती हूं।
ब्रह्माकुमारी संस्थान आध्यात्मिक बंधुता के विस्तृत और सुदृढ़ आधार पर खड़ा है जो पंथ और धर्म की परिभाषाओं से सीमित नहीं होता है। इस संस्था द्वारा अक्तूबर 2023 में राष्ट्रपति भवन में Interfaith Meet का आयोजन किया गया था। उस आयोजन का उद्देश्य था प्रेम, करुणा, शांति, पवित्रता, सत्य और अहिंसा जैसे उन आध्यात्मिक मूल्यों पर प्रकाश डालना जो सभी धर्मों में विद्यमान हैं।
‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना के अनुरूप, ब्रह्माकुमारी संस्थान ने ‘एक ईश्वर; एक विश्व परिवार’ की चेतना को विभिन्न देशों और संस्कृतियों में प्रसारित किया है। ईश्वर एक है और मानवता भी एक ही है। एकता की यह आध्यात्मिक चेतना, स्वच्छ और स्वस्थ समाज की पहचान होती है।
एक-एक व्यक्ति से मिलकर परिवार बनता है, परिवारों से समाज बनता है और सभी समाजों से मिलकर विश्व समुदाय का निर्माण होता है। विचार और कार्यों की व्यक्तिगत शुचिता से परिवार में पवित्रता रहेगी। पारिवारिक शुचिता से समाज स्वच्छ रहेगा। समाजों की शुचिता से मानवता स्वच्छ एवं स्वस्थ होगी। ऐसे व्यक्ति, समाज एवं विश्व-समुदाय के निर्माण के लिए आध्यात्मिक सशक्तीकरण ही प्रभावी माध्यम है। इसलिए आज के कार्यक्रम का विषय अत्यंत प्रासंगिक और उपयोगी है। स्वार्थ से ऊपर उठकर लोक-कल्याण की भावना से कार्य करना, आंतरिक आध्यात्मिकता की सामाजिक अभिव्यक्ति है। लोक-हित यानी परोपकार करना सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक मूल्यों में से एक है।
अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् ।
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ॥
अर्थात्
महर्षि वेदव्यास ने 18 पुराणों में दो महत्वपूर्ण बातें कही हैं। पहली बात यह है कि यदि पुण्य कमाना है तो परोपकार करना चाहिए। दूसरी बात यह है कि अन्य लोगों को कष्ट पहुंचाने से व्यक्ति पाप का भागी बनता है। यानी दूसरों की भलाई करना ही पुण्य है और दूसरों को तकलीफ पहुंचाना पाप-कर्म है। नैतिकता की इस सरल व्याख्या को अपने आचरण में ढालना, आध्यात्मिक सशक्तीकरण का सबसे आसान और प्रभावी तरीका है।
वेदव्यास की यह आध्यात्मिक शिक्षा, भारतीय चेतना के मूल में है और संतों ने इसे बार-बार दोहराया भी है। महर्षि व्यास के कथन के कई सदियों बाद गोस्वामी तुलसीदास ने भी कहा:
परहित सरिस धरम नहिं भाई ।
परपीड़ा सम नहिं अधमाई ॥
अर्थात्
दूसरों के हित में कार्य करने के समान कोई धर्म नहीं है और दूसरोंको दुःख पहुंचाने के समान कोई अधम पाप नहीं है।
देवियो और सज्जनो,
भय, आतंक और युद्ध को बढ़ावा देने वाली शक्तियां विश्व के कई हिस्सों में बहुत सक्रिय हैं। ऐसे वातावरण में ब्रह्माकुमारी संस्थान ने 100 से अधिक देशों में अनेक केन्द्रों के माध्यम से मानवता के सशक्तीकरण का प्रभावी मंच उपलब्ध कराया है। यह आध्यात्मिक मूल्यों के प्रचार-प्रसार द्वारा विश्व बंधुत्व को शक्ति प्रदान करने का अमूल्य प्रयास है।
नकारात्मक विचारों पर सकारात्मक सोच की विजय, निराशा पर आशा की विजय का संकल्प लेकर ब्रह्माकुमारी संस्थान द्वारा देश-विदेश के कोने- कोने में आध्यात्मिक सशक्तीकरण के लक्ष्य को सिद्ध किया जाता है। मैंने ब्रह्माकुमारी संस्थान द्वारा आध्यात्मिक सशक्तीकरण के इस अभियान से अपने व्यक्तिगत जीवन में प्रभावी परिवर्तन का अनुभव किया है। व्यक्तिगत पीड़ा के दौर से मेरे बाहर निकलने तथा सक्रियता और समाज सेवा के मार्ग पर आगे बढ़ने में ब्रह्माकुमारी संस्थान की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
देवियो और सज्जनो,
मुझे यह जानकर विशेष प्रसन्नता हुई है कि युवा पीढ़ी को आध्यात्मिक मूल्यों से जोड़ने के लिए ब्रह्माकुमारी संस्थान द्वारा विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जिनमें देश-विदेश के युवाओं की भागीदारी रहती है।
आध्यात्मिक सशक्तीकरण ही वास्तविक सशक्तीकरण होता है। जब किसी धर्म और पंथ के मानने वाले अध्यात्म के आधार से हट जाते हैं तो वे धर्मान्धता का शिकार हो जाते हैं, अस्वस्थ मानसिकता से ग्रस्त हो जाते हैं। आध्यात्मिक मूल्य सभी धर्मों के लोगों को एक-दूसरे से जोड़ते हैं।
भारत की धरती अध्यात्म-भूमि रही है। प्रभु श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण के आदर्श, भगवान महावीर और भगवान बुद्ध की शिक्षाएं, संत कबीर और गुरु नानक देव जी के संदेश, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद और श्री ऑरोबिंदो के दार्शनिक सिद्धान्त, ये सभी आध्यात्मिक सशक्तीकरण के अक्षय स्रोत हैं।
प्रजापिता ब्रह्मा बाबा ने ब्रह्माकुमारी संस्थान की स्थापना करके आध्यात्मिक सशक्तीकरण के अभियान को तो आगे बढ़ाया ही, उन्होंने महिला सशक्तीकरण को भी अनुपम योगदान दिया है। ब्रह्माकुमारी संस्थान, महिलाओं द्वारा संचालित किया जाने वाला विश्व का संभवतः सबसे बड़ा आध्यात्मिक संस्थान है। इस संस्थान में ब्रह्माकुमारी बहनें आगे रहती हैं तथा उनके सहयोगी ब्रह्माकुमार भाई नेपथ्य में कार्यरत रहते हैं। ऐसे अनूठे सामंजस्य के साथ, यह संस्थान निरंतर आगे बढ़ रहा है। ऐसा करके, आप सबने विश्व समुदाय के सम्मुख आध्यात्मिक प्रगति और महिला सशक्तीकरण का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया है।
देवियो और सज्जनो,
ऑरोबिंदो इंटीग्रल स्कूल में एक शिक्षक के रूप में मेरा अनुभव इस बात को पुष्ट करता है कि शिक्षा में आध्यात्मिकता का समावेश करना स्वस्थ पीढ़ी के निर्माण के लिए अनिवार्य है। बच्चों में सादगी, सत्य-निष्ठा और सेवा-भाव के प्रति रुझान पैदा करना प्राथमिक शिक्षा का अंग होना चाहिए।
महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा में ‘आत्मिक शिक्षा’ नामक एक अध्याय लिखा है। वह छोटा सा अध्याय पढ़ने और आचरण में लाने योग्य है। गांधीजी ने लिखा है कि आत्मिक ज्ञान पोथियों द्वारा नहीं दिया जा सकता। शरीर की शिक्षा, शरीर के व्यायाम द्वारा दी जा सकती है। बुद्धि की शिक्षा, बुद्धि के व्यायाम द्वारा दी जा सकती है। वैसे ही आत्मा की शिक्षा आत्मा के व्यायाम द्वारा दी जा सकती है जिसका आधार होता है शिक्षक का आचरण। यदि शिक्षक सदा सच नहीं बोलते तो विद्यार्थियों को सत्य बोलने की शिक्षा देने में वे सफल नहीं हो सकेंगे। ऐसे आध्यात्मिक मूल्यों को बच्चे किताबों से नहीं, बल्कि माता-पिता और शिक्षकों के आचरण से सीखते हैं।
देवियो और सज्जनो,
विश्व इतिहास के तथा राष्ट्रों के इतिहास के स्वर्णिम अध्याय सदैव आध्यात्मिक मूल्यों पर आधारित रहे हैं। विश्व इतिहास साक्षी है कि आध्यात्मिक मूल्यों का तिरस्कार करके केवल भौतिक प्रगति का मार्ग अपनाना अंततः विनाशकारी ही सिद्ध हुआ है। स्वच्छ मानसिकता के आधार पर ही समग्र स्वास्थ्य संभव होता है। सही अर्थों में स्वस्थ व्यक्ति शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक तीनों आयामों पर खरा उतरता है। ऐसे व्यक्ति स्वस्थ समाज, राष्ट्र और विश्व समुदाय का निर्माण करते हैं।
मुझे पूरा विश्वास है कि ब्रह्माकुमारी परिवार द्वारा विश्व-कुटुंब को आध्यात्मिक सशक्तीकरण द्वारा शुचिता और स्वास्थ्य के मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ाया जाएगा। ऐसे उदात्त लक्ष्य को प्राप्त करने के प्रयासों में आप सब सफलता प्राप्त करें, यही मेरी शुभकामना है।
ओम् शांति:!
धन्यवाद!
जय हिन्द!
जय भारत!