भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का विश्व आध्यात्मिक महोत्सव में संबोधन (HINDI)

हैदराबाद : 15.03.2024
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इस विश्व आध्यात्मिक महोत्सव में भाग लेकर मुझे आत्मिक प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है।

इस आध्यात्मिक महोत्सव का आयोजन करने के लिए मैं केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय तथा श्रीराम चन्द्र मिशन की टीम के सभी सदस्यों की सराहना करती हूं।

इस विश्व आध्यात्मिक महोत्सव का ‘आंतरिक शांति से विश्व शांति तक’ का संदेश आज के वैश्विक वातावरण में पूरी मानवता के कल्याण हेतु एक अनिवार्य संदेश है।

विभिन्न पंथों और संप्रदायों में आस्था रखने वाले लोगों के बीच मेल-जोल और आपसी समझ बढ़ाने के उद्देश्य से आयोजित यह महोत्सव मानवता के कल्याण की दिशा में अत्यंत सराहनीय प्रयास है। यहां इतने पवित्र उद्देश्य के साथ लोग इतनी बड़ी संख्या में एक साथ एकत्र हुए हैं, यह देखकर मुझे अपने देशवासियों की आध्यात्मिक चेतना पर गर्व होता है। भारत-भूमि लोकतन्त्र की जननी है। भारत-भूमि अध्यात्म-बोध की भी जननी है। अलग-अलग मतों के अनुयायी एक दूसरे का सम्मान करें और परस्पर सहयोग करें, यह विश्व शांति के लिए सहायक ही नहीं बल्कि आवश्यक भी है। एक ही सत्य सर्वत्र व्याप्त है, यह चेतना ही आध्यात्मिक चेतना है। इस चेतना में किसी भी प्रकार के भेद-भाव और विभाजन के लिए तनिक भी स्थान नहीं है। इसलिए, यह कहा जा सकता है कि आध्यात्मिक चेतना का यह महोत्सव पूरी मानवता की एकता का महोत्सव है। वैश्विक एकता की यही आध्यात्मिक भावना, समस्त विश्व-समुदाय को एक ही परिवार मानने के ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के आदर्श वाक्य के मूल में निहित है। हमारे पूर्वजों ने हमारी संस्कृति के बारे में ठीक ही कहा है:

सा प्रथमा संस्कृति: विश्व-वारा

अर्थात

हमारी संस्कृति अग्रणी संस्कृति है और विश्व की रक्षा तथा कल्याण करने के उद्देश्य से प्रेरित है।

अध्यात्म पर आधारित हमारी संस्कृति ने विश्व-बंधुत्व की भावना को केंद्र में रखा है। इसीलिए, किसी एक ही दर्शन को सही और अन्य सभी को गलत सिद्ध करने से हमने परहेज किया है। हमारी परंपरा में, सत्य तक पहुंचने के सभी मार्गों का आदर किया जाता है। ‘सर्वत्र समदर्शन:’ अर्थात सब को समभाव से देखने वाला व्यक्ति ही योगी माना जाता है। समत्व का यह भाव हमारी आध्यात्मिक परंपरा का आधार है।

नैतिकता और अध्यात्म पर आधारित जीवन, व्यक्ति और समाज दोनों स्तरों पर हितकारी है। हमारी परंपरा में आध्यात्मिकता और नैतिकता को दैनिक जीवन का आधार माना गया है। गृहस्थ और व्यापारी अपना काम-काज नैतिकता के आदर्शों और आध्यात्मिक लक्ष्यों के अनुरूप करें, यही हमारे पूर्वजों की विरासत रही है। इस विरासत के आधार पर आधुनिक विकास की दिशा में बढ़ने वाला व्यक्ति सफल भी रहेगा और सुखी भी। बाहर की सफलता और अंदर की शांति दोनों को एक साथ प्राप्त करना सर्वथा संभव है, यही हमारे नीति शास्त्रों और आध्यात्मिक परम्पराओं में बार-बार समझाया गया है।

देवियो और सज्जनो,

भगवान महावीर, भगवान बुद्ध, जगद्गुरु शंकराचार्य, संत कबीर, संत रविदास और गुरु नानक से लेकर स्वामी विवेकानन्द तक, भारत की आध्यात्मिक विभूतियों ने विश्व समुदाय को आध्यात्मिकता की संजीवनी प्रदान की है। राजनीति में भी आध्यात्मिक मूल्यों को आधार बनाने के कारण राष्ट्रपिता महात्मा गांधी साबरमती के संत कहलाए।

श्रीराम चन्द्र मिशन द्वारा राजयोग की प्राचीन पद्धति को आधुनिक युग में जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है। यह पद्धति भी सदैव कल्याणकारी रही है और बनी रहेगी। व्यक्ति और समाज के कल्याण हेतु इस पद्धति को प्रसारित करने के लिए मैं श्रीराम चन्द्र मिशन की सराहना करती हूं। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि इस मिशन के संस्थापक, पूज्य श्रीराम चन्द्र जी महाराज की 125वीं जयंती मनाई जा रही है। आप सब के साथ मैं उस महान आध्यात्मिक विभूति को सादर नमन करती हूं। इस संस्थान द्वारा, लगभग 8 दशकों से, व्यक्तिगत और सामूहिक उत्थान के लिए निरंतर योगदान दिया गया है। इसके लिए मैं श्रीराम चन्द्र मिशन से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति को साधुवाद देती हूं।

श्रीराम चन्द्र मिशन के कार्यों को पूरी ऊर्जा के साथ विश्व-स्तर पर आगे बढ़ाने के लिए दाजी कमलेश पटेल जी विशेष सराहना के पात्र हैं। उन्होंने Heartfulness Movement को आज 160 से अधिक देशों में प्रसारित किया है। दाजी को वर्ष 2023 में पद्म भूषण से सम्मानित करने का अवसर मुझे मिला, यह मेरे लिए भी प्रसन्नता की बात है।

Heartfulness Movement के माध्यम से दाजी भारतीय परंपरा के चिर- स्थाई सिद्धांतों को आधुनिक शब्दावली में, आज के बदलते हुए समाज में लोकप्रिय बना रहे हैं। इस Movement के सिद्धान्त सकारात्मक हैं तथा आशा का संचार करते हैं। आपके मुख्य सिद्धांतों के बारे में जानकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है।

मनुष्य अपनी नियति अथवा भाग्य का निर्माण स्वयं कर सकता है और यह निर्माण कार्य वर्तमान में ही संभव है, अतीत में नहीं। वर्तमान में किया गया सत्कर्म ही अच्छे भविष्य का स्वरूप निर्धारित करता है। हमारी सोच ही हमारी नियति का निर्माण करती है। हमारे राग-द्वेष हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं। अपनी नियति का निर्माण करने के लिए हमें अपने मनो- मस्तिष्क पर नियंत्रण रखना होगा और इसके लिए ध्यान-साधना का सहारा लेना होगा। मैंने स्वयं अपने जीवन में ध्यान-साधना के अच्छे प्रभाव का अनुभव किया है। ध्यान के द्वारा ही हम अपने अन्तःकरण में प्रवेश कर पाते हैं, स्वयं को गहराई से समझ पाते हैं तथा मन की गतिशीलता को अंतर्दृष्टि की सहायता से देख पाते हैं। आंखों की सहायता से हम स्थूल जगत को देख सकते हैं। ध्यान-साधना से हम सूक्ष्मता का अनुभव कर सकते हैं।

ध्यान-साधना के द्वारा स्वयं को देखना और बदलना संभव हो पाता है। हमें चाहिए कि हम पहले स्वयं अपने-आप में बदलाव लाएं और उसके बाद ही दूसरे लोगों में परिवर्तन लाने का प्रयास करें। प्रत्येक व्यक्ति एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। यदि सभी लोग अपने-अपने सुधार को सुनिश्चित करें और परहित में कार्य करें तो एक दिन ऐसा आएगा जब हम सब मिलकर पूरी मानवता को सही दिशा में ले जा सकेंगे।

श्रीराम चन्द्र मिशन की सहज मार्ग साधना तथा Heartfulness के सिद्धांतों में अध्यात्म परंपरा के महान आदर्शों के अनुरूप व्यक्ति, समाज और विश्व के कल्याण के प्रभावी माध्यम उपलब्ध हैं। उनको जीवन में ढालने से मंगलकारी परिवर्तन होना सुनिश्चित है। यह पद्धति जटिलता के स्थान पर सरलता, स्वार्थ के स्थान पर परोपकार, अहंकार के स्थान पर विनम्रता, भय के स्थान पर साहस तथा तनाव को दूर करके शांति की ओर जाने का मार्ग प्रशस्त करती है।

देवियो और सज्जनो,

हमारी भारत-भूमि भोग-भूमि नहीं है। इसे कर्म-भूमि और पुण्य-भूमि माना गया है। परोपकार करने को सर्वाधिक पुण्य कार्य माना गया है। नर सेवा को ही नारायण सेवा कहा गया है। ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामया:’ की सर्वमंगल-कामना हमारी प्रार्थनाओं का अभिन्न अंग हैं। अहिंसा और करुणा हमारे व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन के मूलभूत सिद्धान्त हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि इस आध्यात्मिक महोत्सव के सभी प्रतिभागी, ऐसे मूल्यों और आदर्शों के प्रति और अधिक निष्ठा के साथ जीवन में आगे बढ़ेंगे।

पूरी मानवता को प्रबुद्ध बनाने के आप सब के इस प्रयास की जितनी भी सराहना की जाए वह कम है। आध्यात्मिक विकास और मानवीय सौहार्द के आदर्शों को आप सब शक्ति प्रदान कर रहे हैं। मैं इस अति विशिष्ट आयोजन की सफलता की मंगल-कामना करती हूं और भारत-भूमि सहित, समस्त विश्व के कल्याण हेतु प्रार्थना करती हूं।

धन्यवाद, 
जय हिन्द! 
जय भारत!

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