भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का Art Exhibition ‘Silent Conversation: From Margins to the Centre’ के उद्घाटन के अवसर पर सम्बोधन (HINDI)

नई दिल्ली : 03.11.2023
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Project Tiger के 50 वर्ष पूरे होने के अवसर पर आयोजित इस  Exhibition में शामिल होकर मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है। देश के दूर-  सुदूर हिस्सों से आए अपने जनजातीय भाइयों-बहनों को यहां देखकर मुझे  हर्ष हो रहा है।

यह प्रसन्नता की बात है कि इस आयोजन द्वारा Tiger Reserves के  आस-पास रहने वाले लोगों तथा वनों और वन्य-जीवों के बीच के सम्बन्धों  को कलाकृतियों के माध्यम से दर्शाया जा रहा है। इस पहल के लिए मैं  National Tiger Conservation Authority और Sankala Foundation  की सराहना करती हूं।

Project Tiger से जुड़े सभी पूर्व और वर्तमान भागीदारों को मैं बधाई देती  हूं। Project Tiger के प्रथम director और पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित  श्री कैलाश सांखला जी ने इस project के माध्यम से पर्यावरण के क्षेत्र में  अपना अमूल्य योगदान दिया था। आज विश्व के कुल बाघों की 70 प्रतिशत  आबादी भारत में पायी जाती है। इस उपलब्धि में Tiger Reserves और  National Parks के आस-पास रहने वाले समुदायों का भी महत्वपूर्ण  योगदान है।

कॉर्बेट, सुंदरबन एवं काजीरंगा से लेकर सत्यमंगलम और मुदुमलइ तक  अनेक Tiger Reserves में बड़ी संख्या में बाघ पाए जाते हैं। ओडिशा में  मेरे जिले में स्थित Simlipaal Tiger Reserve में भी बाघों की अच्छी  संख्या है। अनेक जीव-जंतुओं, विशेषकर बाघों तथा हरी-भरी वन-सम्पदा से  आकर्षित हो कर देश-विदेश से प्रकृति-प्रेमी पर्यटक एवं researchers वहां  पहुँचते हैं। सिमलीपाल जैसे स्थानों पर उपलब्ध समृद्ध जैव-विविधता और  वन-सम्पदा के संरक्षण और संवर्धन के लिए समाज और सरकार दोनों को  मिलकर कार्य करते रहना है।

देवियो और सज्जनो,

जलवायु परिवर्तन की विकराल समस्या को देखते हुए एक समग्र और  सामूहिक प्रयास की जरूरत है। न केवल पर्यावरण संरक्षण, बल्कि मानवता  के अस्तित्व के संरक्षण के लिए भी, हमें जनजातीय समुदायों के जीवन-  मूल्यों को अपनाना होगा। हमें उनसे सीखना होगा कि कैसे प्रकृति के साथ  सामंजस्य बनाकर रहते हुए भी समृद्ध एवं खुशहाल जीवन संभव है।

अरुणाचल प्रदेश की ‘आदि’ जनजाति बाघ को अपने परिवार का सदस्य  मानती है। उनकी इस मान्यता ने वन्य-जीव संरक्षण और अवैध शिकार पर  काबू पाने में अहम भूमिका निभायी है। कर्नाटक की ‘सोलिगा’ जनजाति के  लोग शहद निकालते समय, शहद का कुछ हिस्सा वहीं छोड़ देते हैं – बाघों  और भालुओं के लिए। सोलिगा समाज के लोग वनों से भोजन प्राप्त करते  हुए यह भी ध्यान रखते हैं कि invasive plants स्थानीय वनस्पतियों को  विस्थापित न करें। Sacred Groves और प्रकृति पूजा की जनजातीय  मान्यता ने पौधों और वनस्पतियों की प्रजातियों को उनके मूल स्वरूप में  संरक्षित करने में बहुत बड़ा योगदान दिया है।

देवियो और सज्जनो,

पूरे देश में जनजातीय समुदायों और जनजातीय क्षेत्रों के समग्र और समुचित  विकास के लिए, “प्रधानमंत्री वन बंधु कल्याण योजना” कार्यान्वित है जिसमें  शिक्षा के साथ-साथ आजीविका और क्षमता निर्माण पर भी ध्यान दिया गया  है। पिछले 10 वर्षों में जनजातीय कार्य मंत्रालय का बजट लगभग तीन गुना  तक बढ़ा दिया गया है। यह जनजातीय समाज और उनके विकास के प्रति  सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

भारत के परम्परागत एवं जनजातीय ज्ञान को संरक्षित रखने के लिए,  सरकार ने CSIR के साथ मिलकर Traditional Knowledge Digital  Library का निर्माण भी किया है। वर्ष 2021 से, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम  में जनजातीय लोगों के बलिदान के बारे में देशवासियों को जागरूक बनाने के  लिए प्रत्येक वर्ष 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया  जा रहा है।

Ladies and Gentlemen,

Unchecked materialism, brute commercialism and greedy  opportunism have left us with an earth where all 5 elements of  life or “पंच महाभूत” are distressed and disturbed. Climate  change has raised concerns about food and water security. We  are battling a grave crisis where the time is not on our side.  In this race against time, what we need is concerted action  plan guided by knowledge and wisdom. And what better place  to go for it than to its practitioners. Forest dwellers are the  best practitioners of environmental prudence and climate-  wisdom.

India has emerged as a leading nation in the area of  integrated climate action under the leadership of Prime Minister  Narendra Modiji. He has also given special thrust to wild life  preservation.

We need to further strengthen our conservation, adaptation and  mitigation strategies by recognising that traditional and modern  thinking need to be integrated. One without another is  incomplete and inadequate. We need to preserve, promote and  utilise indigenous knowledge. At the same time, we have to  make sure that the vanguards of the forest force and its ablest  sons and daughters are not deprived of their rights, rightful  place and recognition in society.

देवियो और सज्जनो,

मुझे विश्वास है कि इस प्रदर्शनी के मुख्य विषय ‘Silent Conversation:  From Margins to the Centre’ की परिणति यथार्थ में होगी और इस  ‘Silent Conversation’ की आवाज यहां से विश्व भर में गूंजेगी। मैं आप  सभी से अपील करती हूं कि इस प्रदर्शनी की कलाकृतियों को न केवल सराहें  बल्कि अपने साथ ले भी जायें, ताकि जनजातीय भाई-बहनों का योगदान  आपकी स्मृति में सदैव बना रहे।

धन्यवाद, 
जय हिन्द! 
जय भारत!

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