अमृत उद्यान
मुख्य उद्यान
उत्तर से दक्षिण की ओर बहती दो नहरें तथा पूर्व से पश्चिम की ओर बहती दो नहरें इस उद्यान को छोटे-छोटे वर्गों में बांट देती हैं। इन नहरों के संगम पर कमल के आकार के छह झरने हैं। गतिशील झरने 12 फुट की ऊंचाई तक पानी को फेंकते हुए ऐसी मधुर ध्वनि पैदा करते हैं जो
आगंतुकों को आनंदित कर देती है वहीं नहरों की गति इतनी शांत है कि वे जमे हुए से लगते हैं। दिन में किसी उपयुक्त समय पर इन नहरों में शानदार भवन और सुंदर फूलों का प्रतिबिंब देखा जा सकता है। नहरों के बीच में मंच पर लकड़ी की ट्रे रखी गई हैं जिनमें पक्षियों के चुगने
के लिए अनाज रखा जाता है।
यहां दो बड़े लॉन हैं, केंद्रीय लॉन वर्गाकार है और इसकी दोनों भुजाएं 45 मीटर लंबी हैं तथा पूर्वी लॉन जो कि भवन से सटा हुआ है, आकार में आयताकार है तथा केंद्रीय लॉन का तीन चौथाई है। लॉन दूब घास से ढके हुए हैं जिसे जब शुरू में रोपा गया था तो बेलवेडियर एस्टेट,
कलकत्ता से लाया गया था। मानसून से पहले साल में एक बार लॉन की पूरी घास को हटा दिया जाता है। इसके बाद इसकी ऊपरी सतह पर मिट्टी बिछाई जाती है और फिर से घास जमने में तीन सप्ताह लग जाते हैं। शाम के समय मोर और मोरनियां यहां आराम से घूमते नजर आते हैं और कभी-कभार टिटहरी
अपने चारों ओर से बेखबर ध्यान में डूबी नजर आ सकती है। इसके अलावा यहां स्पॉटबिल (दिल्ली क्षेत्र की बत्तखें) जिन्होंने इन नहरों और उद्यान को अपना घर बना लिया है, को प्राय: अपने परिवारों के सदस्यों के साथ घूमते और मालियों द्वारा दिए गए रोटी के टुकड़ों और हरी वनस्पति
का आनंद उठाते देखा जा सकता है। इसके साथ ही, तोते, मैना, घुग्गी, कबूतर इतने मजे से पानी में नहा-धोकर धूप में मजा लेते नजर आते हैं कि दर्शक ईर्ष्या और हैरत में डूबे रह जाते हैं। किसी-किसी सौभाग्यशाली को कोरमोरेन्ट, जे अथवा प्रवासी स्टोर्क भी नजर आ सकते हैं।
इस उद्यान को बारहमासी हरियाली इसके मौलश्री, पुत्रंजीव, रोक्सबर्गी, साइप्रस, थुजा आरियेन्टालिस, चाइना आरेंज, गुलाब झाड़ी तथा बहुत-सी लताओं से मिलती हैं।
मौलश्री अथवा बकुल एक विशिष्ट भारतीय वृक्ष है। नहरों के किनारे-किनारे लॉन की वर्गाकार क्यारियों में तथा दोनों मुख्य लॉनों के चारों तरफ में लगाए गए इन वृक्षों की कटाई करके मसरूम का आकार दिया गया है। इनसे उद्यान विशेष तथा भरा-भरा नजर आता है। इनमें मई और जून
के महीनों के दौरान फूल आते हैं और तब इनकी हल्की सुगंध वातावरण में छा जाती है। इस वृक्ष का उल्लेख ‘संगम’ साहित्य में, महाकवि कालीदास के नाटकों में तथा इसके काफी बाद अबुल ़फज़ल की ‘आईन-ए-अकबरी’ में मिलता है। कालीदास के एक नाटक में इस वृक्ष का एक रोचक ब्योरा है।
इस वृक्ष में जब फल आने को होते हैं तब उसकी तुलना ऐसी गर्भवती महिला से की गई है जो कि अजीबोगरीब वस्तुओं को चखने की इच्छा जताती है। कहा जाता है कि फल आने के दौरान इस वृक्ष ने यह इच्छा जाताई कि उस पर कोई कुंवारी कन्या मुंह में भरकर शराब छिड़क दे। यह सौभाग्य केवल
रानियों और राजकुमारियों को ही प्राप्त हो पाता था और इसे शाही समारोह में मनाया जाता था।
साइप्रस के वृक्ष पटरियों के कोनों पर लगाए गए हैं तथा ये अपने अपरिवर्तनीय, पूर्ण विकसित सीधे खड़े आकार से औपचारिकता का आभास पैदा करते हैं। सीधी पंक्ति में रोपित इन वृक्षों से उद्यान भरा-भरा नजर आता है। चाइना ओरेंज के बाद साइप्रस के पौधे रोपे गए हैं और वह
एकसरता को तोड़ते हैं जो अच्छा लगता है। जहां साइप्रस मृत्यु और परलोक का प्रतीक है, चाइना ओरंज मौसम के अनुसार अपने विकास के दौरान रंग बदलते हुए नवजीवन तथा जीवन के समारोह के प्रतीक हैं।
पुत्रंजीव रोक्सबर्गी टेरेस उद्यानों के पश्चिमी सिरों पर स्थित दोनों बुर्जों के चारों ओर लगाए गए हैं। पत्थर क शहतीरों से बने ढांचे के रूप में ये बुर्ज अपने आप में अनोखे हैं तथा पुत्रंजीव रोम्सबर्गी की छाया के साथ मिलकर ये शांति और विश्राम के उपवन बनकर अपनी
ओर आकर्षित करते हैं।
थुजा ओरियन्टालिस, एक शंकुधारी वृक्ष है तथा गोल्डन दुरांता की तराशी हुई झाड़ियों के वर्गों के कोनों पर अलंकृत ढंग से रोपे हुए ये वृक्ष एक मनोहारी दृश्य पैदा करते हैं। यह संयोजन मुख्य उद्यान की परिरेखा पर उपस्थित हैं और यह इस पैटर्न में चौकों तथा कोनों को
इंगित करता है।
टेरेस की दीवारों के साथ-साथ निम्न बारहमासी तथा सुगंधित झाड़ियां और बेलें लगाई गई हैं :
- रात की रानी
- मोगरा
- मोतिया
- जूही
- बिगनेनिया वानिस्ता (गोल्डन शावर्स)
- गार्डेनिया
- राइनकोसपर्मम
- पेट्रिया
- हरसिंगार
- बोगेनविलिया
- एडिनोकेलिम्मा (गार्लिक क्रीपर)
- हेडेरा हेलिक्स
- क्लाइंबिग रोजेस
- टेकोमा ग्रेंडिफ्लोरा
- द रंगून क्रीपर
गुलाब पूरे साल खिलते हैं परंतु इनके खिलने का मुख्य मौसम हर साल अक्तूबर में इनकी छटाई के बाद का होता है। ऊपर बताई गई बारहमासी हरित वनस्पति के अलावा, गुलाब पूरे साल इस परिवेश में स्थाईत्व का आभास कराने में सहायता देते हैं।
उद्यान में गुलाब की 150 प्रमुख प्रजातियां हैं जिसके कारण यह विश्व के सबसे अच्छे उद्यानों में से एक हो जाता है। इसमें बोन्न नुइट, ओलाहोमा जैसे गुलाब भी हैं जो कि कालेपन के नजदीक होते हैं। नीले रंगों में यहां पैराडाइज, ब्लू मून, लेडी एक्स हैं। यहां पर दुर्लभ
हरा गुलाब भी हे। गुलाबों के कुछ बहुत ही रोचक नाम हैं। बहुत से भारतीयों के नाम पर भी यहां गुलाब हैं जैसे मदर टेरेसा, अर्जुन, भीम, राजा राम मोहन राय, जवाहर, डॉ. बी.पी. पाल। इसी तरह अंतरराष्ट्रीय शख्सियतों में हैं जॉन एफ-केनेडी, क्वीन ऐलिजाबेथ, मिस्टर लिंकन और
मोन्टेजुमा। कुछ अन्य खास गुलाब हैं क्रिस्टियन डॉयर, हैप्पिनेस, सेन्चुरी टू, र्फ्स्ट प्राइज, जन्तर मन्तर, पीटर फ्रेंकेनफेल्ड, अमरीकन हेरिटेज, बेजाज़ो, आइसबर्ग, ग्रेनाडा, वर्ल्ड रोज, कमांड परफोर्मेस, इम्परेटर। यह सूची अंतहीन है और दृश्य अत्यंत मनोहारी।
क्यारियों और उसके चारों ओर बहुत से शाकीय वार्षिक तथा द्विवार्षिक पौधे उगते हैं। ये क्यारियां लॉनों के कोनों पर अथवा पटरियों के साथ-साथ हैं। इसी प्रकार फूलों को उनकी ऊंचाई का ध्यान रखे बिना बेतरतीब ढंग से समूहों में रखा गया है और उनको एक सुसंगत, प्राकृतिक
तथा मनोरम प्रभाव पैदा करने के लिए रंगों के संयोजन के अनुसार लगाया गया है।
मौसमी फूलों की पौध को वर्ष में दो बार राष्ट्रपति के द्वारा प्रतिवर्ष गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) और स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) के मौके पर ‘एट होम’ के आयोजन की तैयारी के लिए रोपा जाता है जो कि केंद्रीय लॉन में आयोजित होते हैं।
सर्दियों के दौरान उद्यान ऐसे बहुत-सी वार्षिक प्रजातियों से भर जाता है जो जगह पाने के लिए यह दूसरे से स्पर्धा करते दिखाई देते हैं। कैलेंडुला, एन्टिर्हनम्, एलिसम, डाइमोरफोथेसा, एस्सोलजिया (कैलिफोर्नियन पौपी), लार्क्सपर, ़गजनिया, जरबेरा, गोडेटिया, लिनारिया,
मेसेमब्राएन्थेमम, पोर्टुलासा, ब्रासीकोम, मैटुकारिया, वरबेना, वायोला, पेन्सी, स्टॉक जैसे छोटी वार्षिक प्रजातियां फूलों की क्यारियों में अच्छी तरह उगती हैं। इसके अलावा डहेलिया, एस्टर, कार्नेशन, क्रिसेन्थमम, क्लार्किया, स्टेटाइस, लूपिन, मेरीगोल्ड, निकोटिनिया,
नेमेसिया, बैल्स ऑफ आयरलैंड, पौपी, स्टॉक, साल्विया, कॉस्मॉस, लाइनम, स्वीट सुलतान, स्वीट पी, साइनेरारिया, स्वीट विलियम आदि वार्षिक प्रजातियां भी यहां हैं। ये प्रजातियां खाली क्यारी में उगती हैं तथा विभिन्न ऊंचाई की प्रगतियों के साथ ये रंगों के पिरामिड नजर आती
हैं।
फूलों की क्यारियों के कोने एलिसम, फ्लोक्स, पेटुनिया, डासी, पेन्सी, मिमुलस आदि प्रजातियों से सजाए जाते हैं। आम गुलाबों के साथ डेजी, मेसेमब्राएन्थेमम, पैन्सी, वायोला आदि लगाए जाते हैं।
नारसिसस, फ्रीसिया, जेफाइरेंथरस, ग्लेडियोला, टयूबरोस, ओरिएंटल लिली, एशियाटिक लिली, ट्यूलिप, एनीमोन, रेनन्कुलस, आइरिस, डेफोडिल जैसे कंदीय फूलदार पजातियों से प्राकृतिक प्रभाव पैदा होता है।
गर्मियों के दौरान कम ही विकल्प उपलब्ध होते हैं। परंतु मालियों का समर्पण और पौधों की बहादुरी उन्हें बचाए रखती है। अगस्त में गैलार्डिया, विन्सा, कौस्मोस, ज़िनिया, सनफ्लावर, गोम्फरेना, पोर्टुलासा, बाल्साम, वरबेना, सेलोसिया, कान्ना, कोसिया रूडबेकिया आदि प्रजातियां
खिलती हैं।