भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का‘स्वच्छ और स्वस्थ समाज के लिए आध्यात्मिकता’ विषय पर आयोजित ग्लोबल समिट 2024 में सम्बोधन (HINDI)
शांतिवन, माउंट आबू : 04.10.2024
‘स्वच्छ और स्वस्थ समाज के लिए आध्यात्मिकता’ विषय पर आयोजित इस ग्लोबल समिट में आप सब के बीच उपस्थित होकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। जिस संस्था का लक्ष्य है: “स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन”, उसके द्वारा इस विषय पर ग्लोबल समिट का आयोजन सर्वथा उचित है।
कल शाम और आज मानसरोवर में ध्यान करके मुझे असीम आनंद की अनुभूति हुई। कल मैं सभी राजयोगी भाई-बहनो से भी मिली। लेकिन राजयोगी निर्वैर भाईजी की कमी महसूस हुई। वे आजीवन मानवता के कल्याण के प्रति समर्पित रहे। वैश्विक शांति और नैतिकता पर आधारित समाज-निर्माण के प्रयासों के लिए उनको हमेशा याद किया जाएगा। मैं उनकी पुण्य स्मृति को नमन करती हूं।
देवियो और सज्जनो,
आध्यात्मिकता का मतलब धार्मिक होना या सांसारिक कार्यों का त्याग कर देना नहीं है। आध्यात्मिकता का अर्थ है, अपने भीतर की शक्ति को पहचान कर अपने आचरण और विचारों में शुद्धता लाना। मनुष्य अपने कर्मों का त्याग करके नहीं, बल्कि अपने कर्मों को सुधार कर बेहतर इंसान बन सकता है। विचारों और कर्मों में शुद्धता जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन और शांति लाने का मार्ग है। यह एक स्वस्थ और स्वच्छ समाज के निर्माण के लिए भी आवश्यक है।
यह माना जाता है कि स्वच्छ शरीर में ही पवित्र अन्त:करण का वास होता है। सभी परम्पराओं में स्वच्छता को महत्व दिया जाता है। कोई भी पवित्र क्रिया करने से पहले स्वयं और अपने परिवेश की साफ-सफाई का ध्यान रखा जाता है। लेकिन स्वच्छता केवल बाहरी वातावरण में नहीं, बल्कि हमारे विचारों और कर्मों में भी होनी चाहिए। शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्वच्छता एक स्वस्थ जीवन की कुंजी है। अगर हम मानसिक और आत्मिक रूप से स्वच्छ नहीं हैं, तो बाहरी स्वच्छता निष्फल रहेगी।
आध्यात्मिक मूल्यों का तिरस्कार करके केवल भौतिक प्रगति का मार्ग अपनाना अंततः विनाशकारी ही सिद्ध होता है। स्वच्छ मानसिकता के आधार पर ही समग्र स्वास्थ्य संभव होता है।
अच्छे स्वास्थ्य के कई आयाम होते हैं जैसे शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक स्वास्थ्य। ये सभी आयाम परस्पर जुड़े हुए हैं और हमारे जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं। भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य सही सोच पर निर्भर करता है, क्योंकि हमारे विचार ही शब्दों और व्यवहार का रूप लेते हैं। दूसरों के प्रति कोई राय बनाने से पहले हमें अपने अन्तर्मन में झांकना चाहिए। जब हम किसी दूसरे की परिस्थिति में अपने आप को रख कर देखेंगे तब सही राय बना पाएंगे। संत कबीर ने कहा है:
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो मन खोजा आपना, मुझ सा बुरा न कोय॥
हमारे पूर्वजों ने अंतःकरण की शुद्धता के लिए आहार की शुद्धता पर ज़ोर दिया था। छान्दोग्य उपनिषद् में कहा गया है “आहारशुद्धौ सत्त्वशुद्धि:” अर्थात् आहार की शुद्धता से अंतःकरण शुद्ध होता है। शुद्ध आहार के लिए शुद्ध अन्न उपजाने की ज़रूरत है। शुद्ध अन्न उपजाना मिट्टी, पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि सरकार द्वारा रासायनिक खाद की जगह जीवामृत जैसी प्राकृतिक खाद और बीजामृत जैसे बीज-पोषक तत्त्वों की सहायता से प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। प्राकृतिक खेती से स्वच्छ अन्न, तथा स्वच्छ अन्न से स्वस्थ मन की कड़ी बनती है। इसलिए कहा जाता है कि जैसा अन्न वैसा मन।
देवियो और सज्जनो,
भारत सरकार देशवासियों के स्वच्छ और स्वस्थ जीवन के लिए अनेक प्रयास कर रही है। परसों ही स्वच्छ भारत मिशन के दस वर्ष पूरे हुए हैं। इस मिशन ने समाज में स्वच्छता के प्रति जागरूकता बढ़ाई है। ‘जल जीवन मिशन’ के अंतर्गत हर घर में स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने का संकल्प लिया गया है और 78 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण घरों में नल से जल पहुंचाया जा चुका है। यह बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि स्वच्छ जल न केवल शरीर की स्वच्छता बल्कि संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है। पिछले महीने ही, 70 वर्ष से अधिक आयु के सभी नागरिकों को आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत चिकित्सा सुविधा प्रदान करने का निर्णय लिया गया है। सरकार के इन सभी प्रयासों का उद्देश्य एक स्वच्छ और स्वस्थ समाज का निर्माण करना है। इन प्रकल्पों को सफल बनाने में जन-भागीदारी का महत्वपूर्ण स्थान है। ब्रह्माकुमारी जैसे संस्थानों से यह अपेक्षा की जाती है कि आध्यात्मिकता के बल पर लोगों को स्वच्छ और स्वस्थ जीवन जीने के लिए जागरूक करते रहेंगे। आध्यात्मिकता हमारे निजी जीवन को ही नहीं, बल्कि समाज और धरती से जुड़े अनेक मुद्दों जैसे sustainable development, environmental conservation और social justice को भी शक्ति प्रदान करती है। अन्न, जल और वायु की शुद्धता से समग्र जीवन शुद्ध और स्वस्थ हो जाता है।
आज विश्व के अनेक हिस्सों में अशांति का वातावरण व्याप्त है। मानवीय मूल्यों का ह्रास हो रहा है। ऐसे समय में शांति और एकता की महत्ता और अधिक बढ़ गई है। शांति केवल बाहर ही नहीं, बल्कि हमारे मन की गहराई में स्थित होती है। जब हम शांत होते हैं, तभी हम दूसरों के प्रति सहानुभूति और प्रेम का भाव रख सकते हैं। ब्रह्माकुमारी जैसे संस्थानों की योग और अध्यात्म की शिक्षा हमें आंतरिक शांति का अनुभव कराती है। यह शांति न केवल हमारे भीतर, बल्कि पूरे समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की क्षमता रखती है। मुझे विश्वास है कि यहां universal peace और harmony पर आयोजित सत्र से विश्व-शांति के नए रास्ते निकल कर आएंगे।
आज जब हम ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण प्रदूषण के विपरीत प्रभावों से जूझ रहे हैं तब इन चुनौतियों का सामना करने के लिए सभी संभव प्रयास करने चाहिए। मनुष्य को यह समझना चाहिए कि वह इस धरती का स्वामी नहीं है बल्कि पृथ्वी के संरक्षण के लिए जिम्मेदार है। उसे अपने विवेक से इस ग्रह की रक्षा करनी है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि इस समिट के एक सत्र में climate change का सामना करने के लिए सामूहिक उपायों पर चर्चा होगी।
जब भारत की स्वाधीनता के 100 वर्ष पूरे होंगे तब यह संस्था 110 वर्ष की हो जाएगी। हमने आजादी के शताब्दी वर्ष तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य रखा है। एक ऐसा राष्ट्र बनाने का, जो हर क्षेत्र में दुनिया को दिशा दिखा सके। भारत प्राचीन काल से ही अध्यात्म के क्षेत्र में विश्व-समुदाय का मार्गदर्शन करता रहा है। मेरी कामना है कि ब्रह्माकुमारी जैसी संस्थाएं भारत की इस पहचान को और मजबूत बनाती रहे।
देवियो और सज्जनो,
भौतिकता हमें क्षण भर की शारीरिक और मानसिक संतुष्टि देती है, जिसे हम असली सुख समझ कर उसके मोह में पड़ जाते हैं। यही मोह हमारे असंतुष्टि और दुख का कारण बन जाता है। दूसरी ओर अध्यात्म हमें अपने आप को जानने का, अपने अन्तर्मन को पहचानने का अवसर देता है। अध्यात्म से जुड़ाव हमें, समाज और विश्व को देखने का एक अलग सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करता है। यह दृष्टिकोण हममें सभी प्राणियों के प्रति दया और प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता का भाव उत्पन्न करता है।
मेरा मानना है कि आध्यात्मिकता न केवल व्यक्तिगत विकास का साधन है, बल्कि यह समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का मार्ग भी है। जब हम अपने भीतर की स्वच्छता को पहचान पाने में सक्षम होंगे, तभी हम एक स्वस्थ और शांतिपूर्ण समाज की स्थापना में अपना योगदान दे सकेंगे। मुझे विश्वास है कि इस समिट में भाग लेने आए देश-विदेश के प्रतिभागी जब यहां से जाएंगे तब वे न केवल अपने आप में बदलाव महसूस कर रहे होंगे, बल्कि समाज में भी बदलाव लाने में स्वयं को सक्षम महसूस करेंगे।
मैं इस समिट की सफलता की कामना करते हुए अपनी वाणी को विराम देती हूं।
ओम शांति,
जय हिंद!
जय भारत!