भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का उत्तराखंड सरकार द्वारा आयोजित नागरिक अभिनंदन समारोह में सम्बोधन (HINDI)
देहरादून : 08.12.2022
देव-भूमि, तपोभूमि और वीर-भूमि उत्तराखंड में आना, मैं अपना सौभाग्य मानती हूं। हिमालय को महाकवि कालिदास ने ‘देवतात्मा’ कहा है। राष्ट्रपति के रूप में, हिमालय के आंगन, उत्तराखंड में, आप सब के अतिथि-सत्कार का उपहार प्राप्त करके, मैं स्वयं को कृतार्थ मानती हूं। इस अभिनंदन-समारोह के उत्साह-पूर्ण आयोजन के लिए, राज्यपाल, श्री गुरमीत सिंह जी, मुख्य मंत्री, श्री पुष्कर सिंह धामी जी, तथा उत्तराखंड के एक करोड़ से अधिक निवासियों को मैं धन्यवाद देती हूं।
इस समारोह में स्वास्थ्य-सेवा, बिजली के उत्पादन और आपूर्ति, Technical Education तथा यातायात और परिवहन क्षेत्रों की विभिन्न परियोजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन करके मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है क्योंकि इन परियोजनाओं से लोगों के लिए जन-सुविधाएं बढ़ेंगी। इन परियोजनाओं के लिए मैं केंद्र सरकार और राज्य सरकार की सराहना करती हूं।मुझे यह जानकर बहुत प्रसन्नता हो रही है कि राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह जी के सुव्यवस्थित मार्गदर्शन और मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी जी के ऊर्जावान नेतृत्व में, उत्तराखंड समग्र विकास के पथ पर अग्रसर है। मैं आप दोनों की तथा राज्य सरकार की पूरी टीम की सराहना करती हूं। राज्य के विकास की इस यात्रा में उत्तराखंड के परिश्रमी और प्रतिभाशाली निवासियों का महत्वपूर्ण योगदान है। इसके लिए मैं उत्तराखंड के सभी भाई-बहनों की प्रशंसा करती हूं।
देवियो और सज्जनो,
हमारी परंपरा में नगाधिराज हिमालय के क्षेत्र में रहने वाले लोगों को देवताओं का वंशज माना गया है। इस प्रकार उत्तराखंड के हमारे भाई-बहन और बच्चे एक दिव्य परंपरा के वाहक हैं। आप सबके बीच आकर मैं विशेष प्रसन्नता का अनुभव कर रही हूं। उत्तराखंड की प्राकृतिक सुंदरता और यहां के लोगों के प्रेमपूर्ण व्यवहार ने स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी से लेकर प्रकृति के सुकुमार कवि, सुमित्रा नंदन पंत को मंत्रमुग्ध किया था। इस प्राकृतिक सुंदरता को बचाते हुए ही विकास के मार्ग पर हमें आगे बढ़ना है।
उत्तराखंड की धरती और यहां के लोगों ने भारत माता को कितना कुछ दिया है उसका हिसाब लगाना असंभव है। भारत माता की धरती के बहुत बड़े भाग को निर्मित और सिंचित करने वाली नदी-माताओं के स्रोत उत्तराखंड में हैं। हिमालय और उत्तराखंड भारत-वासियों की अंतरात्मा में बसे हुए हैं। हमारे ऋषि-मुनि ज्ञान की तलाश में हिमालय की गुफाओं और कंदराओं में आश्रय लेते रहे हैं। यह लोक-मान्यता है कि लक्ष्मण जी के उपचार के लिए इसी क्षेत्र के द्रोण-पर्वत को ‘संजीवनी बूटी’ सहित हनुमान जी ले कर गए थे। इस तरह आध्यात्मिक शांति और शारीरिक उपचार दोनों ही दृष्टियों से उत्तराखंड कल्याण का स्रोत रहा है।
मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि आधुनिक चिकित्सा तथा आयुर्वेद चिकित्सा के क्षेत्रों में उत्तराखंड निरंतर अपनी परंपराओं को आगे बढ़ाते हुए नए-नए संस्थान भी स्थापित कर रहा है।
उत्तराखंड में Naturopathy के अनेक प्रसिद्ध केंद्र हैं जहां देश-विदेश से बड़ी संख्या में लोग आकर स्वास्थ्य-लाभ करते हैं। उत्तराखंड में nature tourism और adventure tourism के साथ-साथ medical tourism की अपार संभावनाएं हैं। इससे युवाओं में रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।
देवियो और सज्जनो,
स्वयं पर्वतराज हिमालय और उत्तराखंड के शूरवीर लोग भारत माता के प्रहरी भी रहे हैं। हमारे वर्तमान Chief of Defence Staff, जनरल अनिल चौहान जी उत्तराखंड के ही सपूत हैं। भारत के प्रथम Chief of Defence Staff, जनरल बिपिन रावत जी भी इसी धरती की विभूति थे। 1990 के दशक में जनरल बिपिन चंद्र जोशी जी ने Chief of Army Staff के रूप में भारत माता की सेवा की थी। कारगिल युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देकर देश की रक्षा करने वाले मेजर राजेश सिंह अधिकारी और मेजर विवेक गुप्ता का बलिदान सभी देशवासी हमेशा याद रखेंगे। उन दोनों सूरमाओं को मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। 1962 के युद्ध में अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले महावीर चक्र से सम्मानित जसवंत सिंह रावत एक अमर सेनानी के रूप में भारतवासियों को हमेशा याद रहेंगे।
स्वाधीनता के तुरंत बाद कश्मीर में घुसपैठियों से लोहा लेते हुए अपने प्राणों का बलिदान करने वाले सैनिक दीवान सिंह को कृतज्ञ राष्ट्र ने महावीर चक्र से सम्मानित किया था। भारत माता के लिए मर-मिटने वाले उन सभी वीरों को मैं सादर नमन करती हूं और ऐसे वीरों की जननी उत्तराखंड की भूमि को शत-शत प्रणाम करती हूं। इस धरती के शूरवीरों कोअशोक-चक्र और कीर्ति-चक्र से भी सम्मानित किया गया है। मैं सभी देशवासियों की ओर से उत्तराखंड के वीर सपूतों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करती हूं।
देवियो और सज्जनो,
हिमालय की पुत्री अर्थात पर्वत-पुत्री पार्वती हम सभी देशवासियों के लिए नारी-चरित्र की गरिमा और शक्ति का प्रतीक हैं। उत्तराखंड सहित सारी हिमालय-भूमि अनादिकाल से शक्ति की उपासना का केंद्र रही है। उसी गरिमा और शक्ति का अंश रानी कर्णावती जैसी वीरांगना, गौरा देवी जैसी वन-संरक्षक और बछेंद्री पाल जैसी Mount Everest पर तिरंगा लहराने वाली प्रथम महिला की जीवन-गाथाओं में देखने को मिलता है। उत्तराखंड की श्रीमती बसंती बिष्ट ने राज्य की प्रथम महिला ग्राम-प्रधान के रूप में जन-सेवा कर के तथा प्रौढ़-शिक्षा से लेकर स्वच्छता तक अनेक जन-कल्याण के कार्यों में योगदान दे कर देश की सभी बहनों-बेटियों के लिए आदर्श स्थापित किया है। उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उत्तराखंड की एक और बहन बसंती देवी ने घरेलू हिंसा और उत्पीड़न का सामना करने वाली महिलाओं की मुक्ति के लिए अभियान चलाया, अनेक महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने में सहायता की, महिला समूहों के माध्यम से नदी और जंगल के संरक्षण का कार्य किया और बाल विवाह के विरुद्ध जागरूकता का प्रसार किया। उन्हें भी पद्मश्री से अलंकृत किया गया। उत्तराखंड की बेटी सुश्री वंदना कटारिया ने भारत की राष्ट्रीय महिला हॉकी टीम की श्रेष्ठ खिलाड़ियों में अपना स्थान बनाया है। उत्तराखंड की इस विलक्षण प्रतिभा-संपन्न बेटी को 30 वर्ष से कम की आयु में ही पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
उत्तराखंड में बेटियों की युवा पीढ़ी भी प्रगति के पथ पर अग्रसर है, यह जानकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है। कल मुझे दून विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में भाग लेने का अवसर मिलेगा। मुझे बताया गया है कि वहां जिन विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक दिया जाएगा उनमें बड़ी संख्या बेटियों की है। यह सामाजिक परिवर्तन एक विकसित उत्तराखण्ड और विकसित भारत की दिशा में बढ़ता हुआ कदम है।
आज से पांच दिन पहले ही दिव्यांग-जनों के सशक्तीकरण के विकास में संलग्न सर्वश्रेष्ठ संगठन का राष्ट्रीय पुरस्कार उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी को दिया गया। दिल्ली में विज्ञान भवन मेंवह पुरस्कार देने का अवसर मुझे मिला। यह उपलब्धि एक संवेदनशील समाज का परिचय देती है। मैं विश्वविद्यालय सहित उत्तराखंड के सभी लोगों की सराहना करती हूं। मैं चाहूंगी कि इस संवेदनशीलता को सभी देशवासी और अधिक व्यापकता तथा दृढ़ता प्रदान करें।
देवियो और सज्जनो,
सभी देशवासी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। ज्ञात-अज्ञात स्वाधीनता सेनानियों का स्मरण करना हम सभी का कर्तव्य है। बागेश्वर में जन्मीं बिशनी देवी शाह ने स्वाधीनता संग्राम के दौरान अल्मोड़ा नगर-पालिका-भवन पर तिरंगा लहराया और गिरफ्तार की गईं। वे साधारण परिवार की अल्प-शिक्षित महिला थीं। लेकिन भारत के स्वाधीनता संग्राम को उनके द्वारा दिया गया योगदान असाधारण है। पेशावर कांड के ऐतिहासिक नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की शौर्य-गाथा हमारे स्वाधीनता संग्राम के इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है। इसी तरह श्री देव सुमन, केसरी चंद और इन्द्रमणि बडोनी जैसे अनेक स्वाधीनता सेनानियों ने स्वतन्त्रता संग्राम की गौरव गाथाएं लिखी हैं। उत्तराखंड के सपूत श्री गोविंद वल्लभ पंत जी ने स्वाधीनता संग्राम, संविधान सभा के विचार-विमर्श तथा राष्ट्र निर्माण में अपने योगदान द्वारा इस क्षेत्र का और भारत का गौरव बढ़ाया है। उत्तराखंड की इन विभूतियों के योगदान से पूरे देश की युवा पीढ़ी को परिचित कराने के प्रयास होने चाहिए।
युवा पीढ़ी के संदर्भ में विश्व के सबसे अच्छे बैडमिंटन खिलाड़ियों में अपना स्थान बनाने वाले श्री लक्ष्य सेन का मैं उल्लेख करना चाहूंगी। आज से कुछ दिनों पहले ही राष्ट्रपति भवन में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित करके मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। 21 वर्ष के श्री लक्ष्य सेन उत्तराखंड सहित पूरे देश के युवाओं के लिए यह आदर्श प्रस्तुत करते हैं कि हमारे युवा अपने-अपने कार्यक्षेत्रों में विश्व स्तर की उत्कृष्टता प्राप्त करने का लक्ष्य सामने रखें।
मुझे पूरा विश्वास है कि युवा पीढ़ी के उत्साह और योगदान के बल पर वर्ष 2047 में यानि आज़ादी के शताब्दी वर्ष में हमारा देश विश्व-समुदाय में अपनी क्षमता के अनुरूप श्रेष्ठता प्राप्त कर चुका होगा। तब तक उत्तराखंड के सभी निवासियों का जीवन-स्तर भी कहीं अधिक बेहतर हो चुका होगा। इसी दृढ़ विश्वास और शुभकामना के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देती हूं।
धन्यवाद
जय हिन्द,
जय भारत,
जय उत्तराखंड!