भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के 45वें दीक्षांत समारोह में सम्बोधन(HINDI)

वाराणसी : 11.12.2023
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इस दीक्षांत समारोह में उपाधियां और पदक प्राप्त करने वाले सभी विद्यार्थियों को मैं हार्दिक बधाई देती हूं। विद्यार्थियों की सफलता में योगदान देने वाले आचार्य- गण और अभिभावक-गण को भी मैं बधाई देती हूं।

बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में आना अपने आप में सौभाग्य की बात है। काशी का अभिप्राय है सदैव प्रकाशमान रहने और सदैव प्रकाशित रखने वाला ज्योतिपुंज। पिछले महीने काशी में देव दीपावली का पर्व भव्यता से मनाया गया। मुझे बताया गया है कि उस पर्व को 72 देशों के प्रतिनिधियों ने हमारे देशवासियों के साथ यहां मनाया। ज्ञान का प्रकाश प्रसारित करना भी काशी की एक प्रमुख पहचान रही है। मेरे विचार से विद्यापीठ के लिए काशी सर्वथा उपयुक्त स्थान है।

प्यारे विद्यार्थियो,

आपके शिक्षण संस्थान की अत्यंत गौरवशाली विरासत का एक प्रमाण यह है कि दो-दो भारत रत्न इस विद्यापीठ से जुड़े रहे हैं। भारत रत्न डॉक्टर भगवान दास जी काशी विद्यापीठ के प्रथम कुलपति थे और पूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री इस विद्यापीठ के पहले बैच के छात्र थे। वस्तुतः काशी विद्यापीठ से वर्ष 1925 में शास्त्री की उपाधि मिलने के बाद से ही उनके नाम के साथ ‘शास्त्री’ उपनाम जुड़ गया था। काशी विद्यापीठ के पूर्व छात्र के रूप में इस संस्थान की 
प्रसिद्धि को बढ़ाते हुए, शास्त्री जी ने जन-सेवक के रूप में सरलता, निष्ठा, त्याग और दृढ़ता के उच्चतम आदर्श प्रस्तुत किए थे। इस विद्यापीठ के विद्यार्थियों से यह अपेक्षा है कि वे, शास्त्री जी के जीवन-मूल्यों को अपने आचरण में ढालें।

हिन्दी माध्यम में उच्च-स्तरीय शिक्षा प्रदान करने के लिए बाबू शिव प्रसाद गुप्त जी ने काशी विद्यापीठ की अपनी परिकल्पना की चर्चा महात्मा गांधी से की थी और गांधीजी ने उसे सहर्ष अनुमोदन प्रदान किया था। हमारे देश की स्वाधीनता के 26 वर्ष पूर्व, गांधीजी की परिकल्पना के अनुसार आत्म-निर्भरता तथा स्वराज के लक्ष्यों के साथ, इस विद्यापीठ की यात्रा शुरू हुई थी।

दस फरवरी 1921 को इस विद्यापीठ का उद्घाटन करते हुए महात्मा गांधी ने कहा था कि, 
“जितने विद्यालय सरकार के असर में हैं, उनसे हमें विद्या नहीं लेनी चाहिए…. हम उस झंडे के नीचे नहीं रह सकते जिसको सलाम करने के लिए हमारे लड़के मजबूर किए गए थे। ... यदि हमारे विद्यालय खुलेंगे तो विद्या अपने आप पवित्र हो जाएगी। ... असहयोग को बढ़ाने के लिए ही इस विद्यापीठ की स्थापना की गई है। ... असहयोग ही हमारे लिए एकमात्र शास्त्र है।…”

उस उद्घाटन समारोह में उपस्थित शास्त्री जी तथा उनके मित्रों ने गांधीजी का भाषण सुनने के बाद काशी विद्यापीठ में अध्ययन करने का निर्णय लिया। इस प्रकार यह विद्यापीठ, असहयोग आंदोलन से उत्पन्न संस्था के रूप में हमारे महान स्वाधीनता संग्राम का जीवंत प्रतीक है। ‘महात्मा गांधी काशी-विद्यापीठ’ के आप सभी विद्यार्थीगण, स्वाधीनता संग्राम के हमारे राष्ट्रीय आदर्शों के ध्वज-वाहक हैं।

इस विद्यापीठ के प्रथम प्रबंधन बोर्ड के सदस्यों में महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय, जमनालाल बजाज, जवाहरलाल नेहरू, बाबू शिव प्रसाद गुप्त, आचार्य नरेंद्र देव और पुरुषोत्तम दास टंडन जैसे इतिहास-निर्माता शामिल थे। यहां के असाधारण अध्यापकों की सूची में आचार्य नरेंद्र देव, डॉक्टर संपूर्णानन्द और बाबू श्रीप्रकाश जैसे मूर्धन्य विद्वानों के नाम सदैव याद रखे जाएंगे।

ब्रिटिश शासन की सहायता और नियंत्रण से दूर रहते हुए, भारतीयों द्वारा पूर्णत: भारतीय संसाधनों से निर्मित, काशी विद्यापीठ का नामकरण ‘महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ’ करने के पीछे हमारे स्वाधीनता संग्राम के आदर्शों के प्रति सम्मान व्यक्त करने की भावना निहित है। उन आदर्शों पर चलना तथा अमृत-काल के दौरान देश की प्रगति में प्रभावी योगदान देना यहां के विद्यार्थियों द्वारा विद्यापीठ के राष्ट्र-निर्माता संस्थापकों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

प्यारे विद्यार्थियो,

यह एक प्रबल लोक मान्यता है कि काशी, निरंतर अस्तित्व में बनी रहने वाली विश्व की प्राचीनतम नगरी है। बाबा विश्वनाथ और मां गंगा के आशीर्वाद से युक्त पुण्य-नगरी काशी सब को आकर्षित करती रही है और करती रहेगी। मुझे स्मरण है कि जब प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने वाराणसी को अपने लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के रूप में चुना था तो उन्होंने भी यही कहा था कि मुझे मां गंगा ने बुलाया है। जिस तरह मां गंगा भारतीय संस्कृति की जीवन धारा हैं तथा भारतीय ज्ञान, अध्यात्म और आस्था की संवाहिका हैं उसी तरह काशी नगरी भारतीय संस्कृति की कालातीत धरोहर है। आप सब काशी में स्थित विद्यापीठ में विद्यार्जन कर रहे हैं यह आप सब का परम सौभाग्य है और इसके लिए मैं आप सब को विशेष बधाई देती हूं।

यह विद्या-नगरी प्राचीन काल से ही भारतीय ज्ञान परंपरा का केंद्र रही है और वर्तमान काल में भी यहां के संस्थान आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के संवर्धन में अपना योगदान कर रहे हैं।

देवियो और सज्जनो,

लगभग 1300 वर्ष पहले, जगद्गुरु आदि-शंकराचार्य जी के अद्वैत दर्शन को व्यापक लोक स्वीकृति तभी प्राप्त हुई जब काशी में आकर उन्होंने यहां के विद्वानों के साथ शास्त्रार्थ करके अद्वैत दर्शन की प्रामाणिकता को सिद्ध किया। आज से लगभग 250 साल पहले यहां ‘काशी विद्वत् परिषद्’ की स्थापना की गयी थी। वह परिषद निरंतर सक्रिय रही है। संस्कृत भाषा में रचित किसी भी शास्त्र के विषय में इस परिषद का निर्णय सर्वमान्य होता है। ऐसे प्रामाणिक ज्ञान-केंद्र की 
परंपरा के अनुरूप, इस विद्यापीठ के आचार्यों और विद्यार्थियों को भी अपने संस्थान के गौरव को निरंतर समृद्ध करते रहना है।

हमारी परंपरा में नैतिकता पर आधारित अर्थ एवं काम के पुरुषार्थों को सिद्ध करने तथा धर्माचरण एवं मोक्ष प्राप्ति को जीवन का ध्येय माना गया है। विद्या से ही धर्म और मोक्ष के पुरुषार्थ सिद्ध होते हैं। आपके विद्यापीठ का ध्येय वाक्य है 
विद्ययाऽमृतमश्नुते। यह ध्येय वाक्य ईशा-वास्य उपनिषद से लिया गया है। ईश उपनिषद में यह बोध कराया गया है कि व्यावहारिक ज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान एक दूसरे के संपूरक हैं। व्यावहारिक ज्ञान से अर्थ, धर्म और कामनाओं की सिद्धि होती है। विद्या पर आधारित आध्यात्मिक ज्ञान से अमरता यानी मोक्ष की प्राप्ति होती है। शिक्षा की समग्र अवधारणा में विद्यार्थियों को व्यावहारिक जीवन के लिए सक्षम बनाया जाता है और साथ ही धर्म एवं अध्यात्म के संस्कार भी डाले जाते हैं।

आपके विद्यापीठ के कुलगीत में चिर-नवीन और चिर-पुराण के संगम का संदेश आपको दिया गया है। नैतिकता, आदर्श, धर्म और मोक्ष जैसे भारतीय आदर्श नूतन और पुरातन के विभाजन से ऊपर हैं। चूंकि वे आदर्श सदा से विद्यमान रहे हैं इसलिए उन्हें चिर-पुराण कहा जा सकता है। चिर-नवीन की परिधि में विज्ञान तथा व्यावहारिक ज्ञान की आधुनिकतम धाराएं समाहित हैं। आप सभी विद्यार्थियों को चिर-पुराण और चिर-नवीन के समन्वय को अपनी शिक्षा, आचरण और जीवन में उतारना है। तब आप राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसार, भारतीय परम्पराओं से जुड़े रह कर इक्कीसवीं सदी के आधुनिक विश्व में सफलताएं अर्जित करेंगे। मुझे यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई है कि आज स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाले कुल विद्यार्थियों में 78 प्रतिशत संख्या छात्राओं की है, स्नातकों में लगभग 57 प्रतिशत छात्राएं हैं तथा स्नातकोत्तर उपाधियां प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों में लगभग 68 प्रतिशत बेटियां हैं। मंच पर आकर पदक प्राप्त करने वाले 15 विद्यार्थियों में 11 छात्राएं हैं। उच्च शिक्षण संस्थानों में बेटियों के बेहतर प्रदर्शन में विकसित भारत और बेहतर समाज की झलक दिखाई देती है।

मुझे विश्वास है कि वर्ष 2047 तक भारत को विकसित देश के रूप में स्थापित करने के राष्ट्रीय संकल्प को सिद्ध करने में ‘महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ’ के विद्यार्थियों और आचार्यों का महत्वपूर्ण योगदान रहेगा। मैं आप सब के स्वर्णिम 
भविष्य की मंगलकामना करती हूं।

धन्यवाद! 
जय हिन्द! 
जय भारत!

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