भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का श्रीमद राजचन्द्र आश्रम, धरमपुर में सम्बोधन

धरमपुर : 13.02.2024

डाउनलोड : भाषण Pdf(116.55 किलोबाइट)

sp13022024

श्रीमद राजचन्द्र आश्रम में आकर मैं एक महान आध्यात्मिक परंपरा के प्रति अपना हार्दिक सम्मान व्यक्त कर रही हूं। श्रीमद राजचन्द्र जी एक महान संत, कवि, दार्शनिक एवं समाज-सुधारक थे। श्रीमद राजचन्द्र जी के व्यापक धर्म-ज्ञान और चारित्रिक बल से महात्मा गांधी भी प्रभावित थे। गाँधी जी ने उनके बारे में लिखा है and I quote “जिसपर मैं मुग्ध हुआ था ... वह था उनका गंभीर शास्त्र-ज्ञान, उनका शुद्ध चरित्र और आत्मदर्शन की उत्कट लगन। बाद को मैंने पाया कि वह आत्मदर्शन के लिए ही जीते थे।”

देवियो और सज्जनो,

श्रीमद राजचन्द्र जी के पदचिन्हों पर चलते हुए गुरुदेव श्री राकेश जी ने आध्यात्मिक क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य किया है। उन्होंने अपना जीवन, मानवता को शांति और समरसता की ओर ले जाने के लिए समर्पित किया है।

मुझे बताया गया है कि श्री राकेश जी के मार्गदर्शन में, मिशन धरमपुर पूरे विश्व में 200 से अधिक स्थानों पर सक्रिय है। इस मिशन द्वारा आत्म-ज्ञान का पथ दिखाने का प्रयास किया जा रहा है। आपके यह पुनीत कार्य मानव-कल्याण को आपकी बहुत बड़ी देन है।

देवियो और सज्जनो,

जैन शब्द के मूल में जिन शब्द है। जिन शब्द का अर्थ है विजेता। विजेता वह है जिसने अनंत ज्ञान को प्राप्त कर लिया हो और जो दूसरों को मोक्ष की राह दिखाये। तीर्थंकर का अर्थ है लोगों को भव-सागर पार कराने वाला। सभी 24 जैन तीर्थंकर मानवता को वह रास्ता दिखा कर गए हैं, जिससे जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति मिलती है, करुणा और दया का भाव उत्पन्न होता है, तथा किसी भी व्यक्ति को जीवन जीने का सही अर्थ ज्ञात होता है।

जैन-जीवनशैली का उद्देश्य आत्मा की मुक्ति और आत्मबोध है। जैन तीर्थंकरों द्वारा दिए गए तीन रत्न जीवन को मंगलमय बना सकते है और मानव समाज को सही ढंग से जीना सीखा सकते हैं। वे तीन रत्न हैं सम्यक विश्वास, सम्यक ज्ञान और सम्यक आचरण।

मैं यहां जैन समाज के क्षमावाणी दिवस का जिक्र करना चाहूंगी। इस पवित्र दिन पर जैन समुदाय का प्रत्येक सदस्य जाने-अनजाने में हुई सभी गलतियों के लिए क्षमा मांगता है। वास्तव में, यह दिन केवल एक पारंपरिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि मोक्ष की राह पर पहला कदम है। जैन धर्म द्वारा दिखाये गए मानव-कल्याण के मार्ग पर चलने का हम सब को प्रयास करना चाहिए।

देवियो और सज्जनो,

भारत की संस्कृति, सौहार्द की संस्कृति है। जब विश्व के अनेक राष्ट्र विस्तारवाद के बारे में सोच रहे थे, भारत मानवता के उत्थान के बारे में चिंतन कर रहा था। हमने विश्व को बताया कि 

अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।

अर्थात्:

अपने और पराए का भेद करना संकुचित मानसिकता का प्रतीक है। उदारतापूर्ण जीवन जीने वाले लोगों के लिए, पूरी पृथ्वी एक ही परिवार है। सत्य, अहिंसा, तप और व्रत भारत के कण-कण में बसे हैं। भारत आत्म- शांति की खोज का देश है, आध्यात्मिक विभूतियों का देश है। ऐसी ही एक विभूति हैं चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर। भगवान महावीर के जीवन का प्रत्येक क्षण, प्रत्येक पल, मानव जाति के कल्याण के लिए समर्पित था। अगर कोई व्यक्ति उनके दिखाए रास्ते पर चल पाए तो निश्चित ही आत्म- ज्ञान संभव है।

देवियो और सज्जनो,

आज अधिकांश लोग भौतिक सुख के पीछे भाग रहे हैं। वे धन-सम्पत्ति के लिए एक ऐसी दौड़ में भाग रहे हैं जिसका अंत सुखद हो ही नहीं सकता। वे भूल गए हैं कि जीवन में हमें वास्तव में क्या चाहिए। हम अपनी आध्यात्मिक सम्पदा को धीरे-धीरे भूलते जा रहे हैं। मैं यह नहीं कह रही हूं कि धनोपार्जन नहीं करना चाहिए। अवश्य करना चाहिए। लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि धनोपार्जन के साथ मानसिक शांति, समभाव, संयम और सदाचार भी अत्यंत आवश्यक हैं।

अगर हम अपने मूल-स्वभाव की ओर जाएं तो आज विश्व में व्याप्त कई समस्याओं के समाधान मिल सकते हैं। लेकिन, इसका मतलब यह नहीं है कि हम आधुनिक विकास को त्याग दें। बल्कि आध्यात्मिक मार्ग पर चलते हुए आधुनिक विकास को अपनाएं। एक आंकड़े के अनुसार, दुनियाभर में लगभग एक अरब लोग किसी न किसी रूप में मानसिक विकार से पीड़ित हैं। कोविड-19 महामारी के बाद से, अवसाद और चिंता की समस्याएँ और अधिक बढ़ गई हैं। मेरे विचार में तनाव तथा अवसाद जैसी समस्याओं से निपटने के लिए meditation बहुत ही प्रभावी उपाय है।

देवियो और सज्जनो,

हाल ही में, प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा अयोध्या में हुई है। भारत सरकार भी जन कल्याण हेतु, ‘राम-राज्य’ के संकल्प के साथ प्रयासरत है। गोस्वामी तुलसीदास जी के शब्दों में :

दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥ 
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥

अर्थात

रामराज्य में दैहिक, दैविक अथवा भौतिक कष्ट से सभी लोग मुक्त थे। सभी लोग एक-दूसरे से प्रेम करते थे। सब नागरिक अपने-अपने धर्म का पालन करते थे तथा नैतिकतापूर्ण जीवन-यापन करते थे।

मैं प्रार्थना करती हूं कि हमारे देश के सभी नागरिक हर प्रकार की समस्याओं से मुक्त हों, तथा नैतिकता, प्रेम और सौहार्द के साथ जीवन में आगे बढ़ें। इसी प्रार्थना के साथ मैं आपनी वाणी को विराम देती हूं।

जय जिनेन्द्र! 
जय हिन्द! 
जय भारत!

समाचार प्राप्त करें

Subscription Type
Select the newsletter(s) to which you want to subscribe.
समाचार प्राप्त करें
The subscriber's email address.