भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का आदि महोत्सव के उद्घाटन के अवसर पर सम्बोधन
नई दिल्ली : 10.02.2024
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जनजातीय समुदाय की सांस्कृतिक विविधता और समृद्धि को प्रदर्शित करने वाले इस ‘आदि महोत्सव’ में आप सब के बीच आकर मैं बहुत खुशी का अनुभव कर रही हूं। आज यहां मुझे विभिन्न राज्यों की जनजातीय संस्कृति और विरासत का एक अनूठा संगम देखने को मिला है। उनकी बोली, भाषा, शिल्प, खान-पान, संगीत और पारंपरिक कला, भारत की सांस्कृतिक विरासत का जीवंत उदाहरण हैं। मैं इस आयोजन के लिए जनजातीय कार्य मंत्रालय, ट्राइफेड और अन्य सभी सहभागियों की सराहना करती हूं।
मुझे बताया गया है कि यहां 28 राज्यों तथा संघ-राज्य क्षेत्रों के लगभग 1000 आदिवासी कारीगर और कलाकार भाग ले रहे हैं। इस आयोजन में अनेक क्षेत्रों के जनजातीय समुदाय के व्यंजन बनाने वाले भाई-बहन भी शामिल हैं, जिनके द्वारा कई food stalls लगाए गए हैं।
हमारा देश विविधताओं से परिपूर्ण है। लेकिन इस ‘विविधता में एकता’ का भाव सदैव विद्यमान रहा है। इसका कारण है हमारी एक-दूसरे की परंपरा, वेश-भूषा, खान-पान तथा भाषा को जानने, समझने और अपनाने का उत्साह। एक-दूसरे के प्रति यही सम्मान का भाव हमारी एकता के मूल में है। इसलिए मेरा मानना है कि ‘आदि महोत्सव’ जैसे आयोजन होते रहने चाहिए।
देवियो और सज्जनो,
आधुनिकता की अंधी दौड़ ने धरती मां और प्रकृति का बहुत अधिक नुकसान किया है। अंधाधुंध विकास की होड़ में एक ऐसा वातावरण बना दिया गया जिसमें यह सोच उत्पन्न हुई कि बिना प्रकृति को क्षति पहुंचाए प्रगति संभव ही नहीं है। जबकि सच्चाई इसके विपरीत है। पूरी दुनिया में जनजातीय समुदाय सदियों से प्रकृति के साथ सौहार्दपूर्ण वातावरण में रह रहे हैं। हमारे जनजाति भाई-बहन, अपने जीवन के हर पहलू में आस-पास के परिवेश, पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं का ध्यान रखते रहे हैं। हमें उनकी जीवन-शैली से प्रेरणा लेनी चाहिए। आज जब पूरा विश्व global warming और climate change की समस्या के निदान का प्रयास कर रहा है तब जनजातीय समुदाय की जीवन-शैली और भी अनुकरणीय हो जाती है।
लेकिन, आधुनिकता के अच्छे पहलू भी हैं। आधुनिक युग की एक महत्वपूर्ण देन - Technology ने हमारे जीवन को सुगम बनाया है। हमारा जनजातीय समुदाय आधुनिक विकास के लाभों से वंचित रहे, यह उचित नहीं है। देश के समग्र विकास में उनके योगदान की महत्वपूर्ण भूमिका रही है और भविष्य में भी रहेगी। हम सब का यह प्रयास होना चाहिए कि technology का उपयोग sustainable development के लिए हो और समाज के सभी लोगों, विशेषकर वंचित वर्गों का सर्वांगीण विकास हो।
हम सब जानते हैं कि भारत में पारंपरिक ज्ञान का अनमोल भंडार है। यह ज्ञान दशकों से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में परंपरागत तरीके से आगे बढ़ता रहा है। लेकिन अब कई परंपरागत कौशल समाप्त हो रहे हैं। इस ज्ञान परंपरा के विलुप्त होने का खतरा है। जिस तरह अनेक वनस्पतियां और जीव-जंतु विलुप्त होते जा रहे हैं, वैसे ही traditional knowledge भी हमारी सामूहिक स्मृति से मिटते जा रहे हैं। हमारा प्रयास होना चाहिए कि हम इस अमूल्य निधि को संचित करें, और आज की आवश्यकता के अनुसार इसका समुचित प्रयोग भी करें। इस प्रयास में भी technology का अहम योगदान हो सकता है। आज social media platforms, परंपरागत ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाने में अपना योगदान दे रहे हैं। लेकिन, संस्थागत प्रयासों से ऐसी ज्ञान परंपरा को प्रामाणिकता मिलेगी।
देवियो और सज्जनो,
समावेशी विकास के राष्ट्रीय उद्देश्य में जनजातियों का विकास, एक महत्वपूर्ण आयाम है। हमारे संविधान ने, सरकार को जनजातीय समुदाय की विशेष जरूरतों को पूरा करने की जिम्मेदारी सौंपी है। सरकार ने जनजातियों के विकास को विशेष प्राथमिकता दी है। जनजातीय समुदाय के विकास के साथ-साथ यह सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है कि उनकी संस्कृति संरक्षित रहे, क्योंकि उनकी संस्कृति ही उनकी पहचान है।
देवियो और सज्जनो,
किसी भी व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए अच्छी शिक्षा और उत्तम स्वास्थ्य बहुत जरूरी है। सिकल सेल एनीमिया जनजातीय समुदाय के लोगों के लिए गंभीर समस्या है। इसे दूर करने के लिए भारत सरकार ने एक मिशन की शुरुआत की है। इस मिशन के तहत प्रभावित क्षेत्रों में 40 वर्ष तक की उम्र के लोगों की स्क्रीनिंग जा रही है।
Eklavya Model Residential School में एक लाख 20 हजार से अधिक बच्चे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा 5 छात्रवृत्ति योजनाओं के तहत प्रति वर्ष 32 लाख से अधिक विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति दी जा रही है।
भारत, प्रतिभा-संपन्न युवा-बहुल देश है। आज शुरू किया गया Venture Capital Fund for Scheduled Tribes (VCF-ST), ST समुदाय के लोगों में उद्यमिता और start-up culture को बढ़ावा देने की दिशा में एक सराहनीय कदम है। मुझे विश्वास है कि जनजातीय समुदाय के युवा इस योजना का लाभ लेकर नए उद्यम स्थापित करेंगे तथा आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में अपना योगदान देंगे।
मुझे बताया गया है कि ‘वन-धन विकास योजना’ से जनजातीय समाज के उद्यमियों को बड़े पैमाने पर मदद मिल रही है। यह बहुत ही प्रसन्नता का विषय है कि इस महोत्सव में लगभग 40 वन-धन विकास केंद्र भाग ले रहे हैं। यह और भी अधिक प्रसन्नता का विषय है कि PVTG वन-धन उत्पादों की बिक्री और प्रदर्शन के लिए एक विशेष मंडप यहां पर बनाया गया है।
देवियो और सज्जनो,
भगवान बिरसा मुंडा की जन्मभूमि से, पिछले 15 नवम्बर को, जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर, ‘प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महाअभियान’ (पीएम–जनमन) का शुभारम्भ किया गया है। यह एक ऐसा मिशन है जिससे हमारे 75 विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTG) के भाई-बहनों को न्याय, समानता और fundamental rights से जुड़ी मूलभूत सुविधाएँ मिलेंगी। इस मिशन के अंतर्गत नौ संबंधित मंत्रालयों के माध्यम से 11 अहम क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
PVTG समुदाय, अक्सर वन क्षेत्रों के सुदूर और दुर्गम बस्तियों में रहते हैं। इस योजना के द्वारा उनके घरों और बस्तियों को सुरक्षित आवास, स्वच्छ पेयजल, स्वच्छता, शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, road connectivity, telecommunication connectivity, और स्थायी आजीविका के अवसरों जैसी बुनियादी सुविधाओं से युक्त करने की योजना बनाई गई है। मुझे बताया गया है कि पीएम-जनमन अभियान के आरंभ होने के बाद केवल 60 दिनों में ही अब तक 120 जिलों में साढ़े आठ हजार से अधिक शिविर आयोजित किये गए हैं, जिसमें 10 लाख से अधिक लोगों ने भाग लिया है।
देवियो और सज्जनो,
आज पूरे विश्व का ध्यान millets की ओर गया है। लेकिन millets हमारे जनजातीय समाज के भोजन का हिस्सा रहे हैं। यह ‘आदि महोत्सव’ देश के कोने-कोने से आए जनजातीय भाई-बहनों की जीवन-शैली, संगीत, कला और व्यंजनों से परिचित होने का एक अच्छा अवसर है। यहां आने वाले आगंतुक इस महोत्सव में लगे food stalls में millets के साथ-साथ भारत के विभिन्न राज्यों के समृद्ध जनजातीय व्यंजनों से परिचित हो सकेंगे।
मुझे विश्वास है कि आगामी आठ दिनों तक, इस महोत्सव में, लोगों को जनजातीय समाज के जीवन के अनेक पहलुओं को जानने और समझने का मौका मिलेगा। मैं चाहूंगी कि बड़ी-से-बड़ी संख्या में लोग इस आदि महोत्सव में भागीदारी करें तथा इस आयोजन को एक यादगार आयोजन बनाएँ।
धन्यवाद!
जय हिंद!
जय भारत!