भारत की माननीय राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का किसानों के अधिकारों पर वैश्विक संगोष्ठी में संबोधन।

नई दिल्ली : 12.09.2023

डाउनलोड : भाषण भारत की माननीय राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का किसानों के अधिकारों पर वैश्विक संगोष्ठी में संबोधन।(हिन्दी, 498.34 किलोबाइट)

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किसानों के अधिकारों पर वैश्विक संगोष्ठी के लिए इस प्रतिष्ठित सभा में शामिल होकर मुझे बेहद खुशी हो रही है, जो मेरे हृदय के सबसे करीब मुद्दों को उठा रहा है। मुझे बचपन से ही प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर रहना सिखाया गया है। जैव विविधता, वन्य जीवन और विदेशी पौधों और प्राणियों की अनेक किस्मों ने हमेशा हमारे जीवन को समृद्ध किया है और इस ग्रह को सुंदर बनाया है।

इस संदर्भ में, मैं विश्वास के साथ कह सकती हूं कि सभ्यता की शुरुआत से ही हमारे किसान ही असली इंजीनियर और वैज्ञानिक रहे हैं। उन्होंने मानवता के कल्याण के लिए प्रकृति की ऊर्जा और उपहारों का सदुपयोग किया है। एक नोबेल पुरस्कार विजेता और अर्थशास्त्री ने बिहार के एक गाँव की अपनी यात्रा के दौरान टिप्पणी की थी 'भारतीय किसान वैज्ञानिकों से बेहतर हैं।' मैं इस कथन से इस लिहाज से पूरी तरह सहमत हूं क्योंकि कृषि में, हमने परंपरा को प्रौद्योगिकी को साथ लेकर चले हैं।

जैसा कि आप सब जानते हैं, कृषि मानव जाति द्वारा आरंभ किया गया पहला व्यवसाय है। और यह व्यवसाय कृषि-जैव विविधता पर फला-फूला जो प्रकृति ने हमें दी है। दुनिया का कृषक समुदाय इसका सबसे बड़ा संरक्षक है, और उनसे ही हमें विविध प्रकार की फसल मिलती हैं। हालाँकि, आज कई पौधे और प्रजातियां लुप्त हो गई हैं, फिर भी हम सब को पौधों और प्रजातियों की कई किस्मों के संरक्षण और उन्हें पुनर्जीवित करने के किसानों के प्रयास की सराहना करनी चाहिए, जिनका अस्तित्व हम सभी के लिए महत्वपूर्ण है।

Dear Delegates,

मुझे खुशी है कि खाद्य और कृषि के लिए प्लांट जिनैटिक रिसोर्स पर अंतर्राष्ट्रीय संधि (आईटीपीजीआरएफए) सचिवालय ने भारत को किसानों के अधिकारों पर पहली वैश्विक संगोष्ठी के आयोजन स्थल के रूप में चुना है, जोकि उचित भी है, क्योंकि भारत एक प्राचीन सभ्यता वाला देश है जहां हमारी परंपराएं, संस्कृति और कृषि एक ही ताने-बाने का हिस्सा हैं।

हमने अपनी भूमि पर सदियों से 'वसुधैव कुटुंबकम' की अवधारणा को आत्मसात किया है, जिसका अर्थ है कि 'पूरी पृथ्वी एक परिवार है।' मैं इस पवित्र भूमि पर आप सब का स्वागत करती हूं, जो प्राणी-जगत की भलाई में अटूट विश्वास रखती है। हमारे प्राचीन ग्रंथ ऐसी परोपकारी शिक्षाओं से हमारा मार्गदर्शन करते हैं:

सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाःI  
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चित् दु:ख भाग्भवेत्॥

इसका अर्थ है: 'सब समृद्ध और खुशहाल हों, सब पीड़ाओं से मुक्त हों, सबका आध्यात्मिक उत्थान हो और कोई भी कष्ट में न रहें।' इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) के अनुसार, भारत एक विशाल विविधता वाला देश है, जिसका क्षेत्रफल विश्व का केवल 2.4 प्रतिशत है, लेकिन पौधों और पशुओं की सभी दर्ज प्रजातियों का 7-8 प्रतिशत यहीं है। यहाँ पौधों की लगभग 45,000 प्रजातियाँ हैं और यह विश्व की कुल प्रजाति का लगभग 7 प्रतिशत हिस्सा है। जैव विविधता के मामले में, भारत पौधों और प्रजातियों की विस्तृत श्रृंखला से संपन्न देशों में से एक है।

भारत की यह समृद्ध कृषि-जैव विविधता वैश्विक समुदाय के लिए एक खजाना रही है। हमारे किसानों ने कड़ी मेहनत और उद्यमपूर्वक पौधों की स्थानीय किस्मों का संरक्षण किया है, जंगली पौधों को घरेलू रूप दिया है और पारंपरिक किस्मों का पोषण किया है, जो फसल प्रजनन कार्यक्रमों का आधार बनी हैं और इससे मनुष्यों और जानवरों के लिए भोजन और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित हुई है। क्षेत्र विशेष की फसलों की किस्में समाज और संस्कृति से गहराई से जुड़ी होती हैं और इनमें अक्सर औषधीय गुण होते हैं।

कृषि अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास ने देश को 1950-51 के बाद से खाद्यान्न, बागवानी, मत्स्य पालन, दूध और अंडे के उत्पादन को कई गुना बढ़ाने में सक्षम बनाया है, जिससे राष्ट्रीय खाद्य और पोषण सुरक्षा पर स्पष्ट प्रभाव पड़ा है। हमारे कृषि-जैव विविधता संरक्षकों और मेहनती किसानों, वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं के प्रयासों ने सरकारी सहयोग से देश में कई कृषि क्रांतियों को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस अतुल्य उपलब्धि को हासिल करने के लिए निःसन्देह वे सब प्रशंसा और सम्मान के अधिकारी हैं। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि खाद्य संपन्नता बनाम खाद्य सुरक्षा की बढ़ती बहस के बीच मेरा दृढ़ विश्वास है कि प्रौद्योगिकी और विज्ञान विरासत में मिले ज्ञान के प्रभावी संरक्षक और संवर्द्धक के रूप में काम कर सकते हैं।

देवियो और सज्जनो,

2001 में हस्ताक्षरित ITPGRFA, भोजन और कृषि के लिए प्लांट जिनैटिक संसाधनों के संरक्षण, उपयोग और प्रबंधन के लिए सदस्य देशों के बीच सबसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय समझौतों में से एक था। पहली बार इसने भोजन और कृषि के लिए दुनिया के पादप आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण, विनिमय और वहनीय उपयोग के माध्यम से खाद्य सुरक्षा की गारंटी देने की बात की।

भारत ने पौधों की विविधता और किसान अधिकार संरक्षण अधिनियम (पीपीवीएफआर) 2001 को प्रस्तुत करने में अग्रणी भूमिका निभाई थी, जो हमारे किसानों की सुरक्षा के लिए आईटीपीजीआरएफए से जुड़ा हुआ है। भारत में किसानों को पंजीकृत किस्म के गैर-ब्रांडेड बीजों का उपयोग, पुन: उपयोग, बचत, साझा करने और बेचने सहित कई अधिकार प्रदान किए गए हैं। इसके अलावा, भारतीय किसान अपनी खुद की किस्मों को पंजीकृत कर सकते हैं और उनकी क़िस्मों को सुरक्षा दी जाती है। ऐसा अधिनियम पूरी दुनिया के लिए अनुकरणीय एक उत्कृष्ट मॉडल के रूप में काम कर सकता है। जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों के मद्देनजर और मानवता के प्रति हमारी सामूहिक जिम्मेदारी के रूप में संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को पूरा करने के लिए इसका महत्व और बढ़ जाता है। जलवायु परिवर्तन की चुनौती ने मोटे अनाज सहित हमारी परंपरागत कृषि के संरक्षण की जिम्मेदारी किसानों पर डाल दी है, जो न केवल हमारे पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ने वाले दबाव को झेलने में सक्षम हैं, वरन इतना पोषण भी देते हैं कि मानव और पशुधन आबादी के एक बड़े हिस्से की भोजन और स्वास्थ्य आवश्यकताओं का समाधान करने में महत्वपूर्ण हो सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2023 को मोटा-अनाज वर्ष घोषित करना इसी दिशा में एक कदम है।

प्यारे प्रतिनिधियों,

यह संगोष्ठी, दुनिया में अपनी तरह की पहली संगोष्ठी है, जो विश्व को अपनी प्राथमिकताओं और कार्यक्रमों को मानवता की जरूरतों के अनुरूप बनाने और एक साझा प्रतिबद्धता पर पहुँचने का एक सुनहरा अवसर प्रदान करती है। मुझे उम्मीद है कि यह संगोष्ठी दुनिया के किसानों के अधिकारों की पूर्ति के लिए हमारी प्रतिबद्धता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाने में एक मील का पत्थर साबित होगी।

मुझे यह जानकर खुशी हुई कि इस कार्यक्रम में, पौधों के जीनोम के रक्षक के रूप में समुदायों और व्यक्तियों के महत्वपूर्ण योगदान को मान्यता देने के लिए विभिन्न श्रेणियों के पुरस्कार भी शामिल हैं। मैं यह कह सकती हूँ कि जैव विविधता को बचाकर, संरक्षित और पोषित करके, आप सब न केवल मानवता को बल्कि पूरे ग्रह की रक्षा कर रहे हैं। मैंने तीन मिनट की एक प्रभावशाली फिल्म 'द गार्जियन ऑफ द माइटी लिटिल सीड्स' देखी है। इसकी शुरुआत ऐसे होती है जैसे एक बीज खुद के बारे में बताते हुए कहता है कि, 'मैं छोटा हूं लेकिन मैं शक्तिशाली हूं, मैं छोटा हूं लेकिन मैं बहुत बीजों को जन्म देता हूं।' इन छोटे बीजों के संरक्षक के रूप में, आपको असाधारण शक्ति और जिम्मेदारी दी गई है। मैं, कामना करती हूँ कि ईश्वर आप सब को और अधिक शक्ति दे!

धन्यवाद, 
जय किसान! 
जय हिन्द!

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