विश्व मलयाली महोत्सव के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
तिरुअनंतपुरम : 30.10.2012
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मुझे मलयालम के महापर्व विश्व मलयाला महोत्सवम् के लिए ‘ईश्वर के अपने देश’ केरल में आकर वास्तव में प्रसन्नता हो रही है।
राष्ट्रपति पद ग्रहण करने के बाद यह केरल की मेरी पहली यात्रा है। मुझे बहुत प्रसन्नता है कि इस उलपक्ष्य में मुझे आज यहां उपस्थित विभिन्न जीवंत साहित्यिक एवं अकादमिक बिरादरी से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ है। यह भी उल्लेखनीय है कि यह पर्व 1 नवम्बर, 1956 को भाषायी पुनर्गठन के आधार पर केरल की स्थापना की 56वीं वर्षगांठ पर आयोजित किया जा रहा है।
मैं आप सभी को और आपके माध्यम से केरलवासियों को अपनी हार्दिक बधाई देता हूं।
आप अगले तीन दिनों के दौरान मलयालम के महत्त्व, वर्तमान विकास और प्रगति तथा भविष्य पर विचार-विमर्श करेंगे। आप साझी चिंताओं पर विचार करेंगे और सामूहिक रूप से जिस निर्णय पर पहुंचेंगे उसके अनुसार समुचित प्रयास करेंगे।
विशिष्ट अतिथिगण,
भारतीय संस्कृति का परिदृश्य बहुत विशाल और अनूठा है। यह अपने विभिन्न समाजों की धरोहरों और सांस्कृतिक परंपराओं से समृद्ध हुई है। भारत की ‘अनेकता में एकता’ ने सदैव ऐसा मौका प्रदान किया है जो उनकी निरंतरता और विकास के लिए आवश्यक है। इस खुशनुमा सहअस्तित्व के भीतर, मलयालम मलयाली लोगों के समृद्ध इतिहास, संस्कृति, कला और विरासत का सार और मूर्त रूप है।
विश्व मलयाला महोत्सव-2012, जिसका आज उद्घाटन किया जा रहा है, मलयालम भाषा और अनूठी सांस्कृतिक अस्मिता का समारोह है।
इस अवसर पर, हम केरल के अनुपम और प्राचीन इतिहास का सम्मान कर रहे हैं। यह संस्कृतियों एवं जातियों तथा भाषायी और आध्यात्मिक प्रभावों का केंद्र रहा है।
5000 से अधिक वर्ष पहले दक्षिणी मेसोपोटामिया में दुनिया का एक सबसे पहला शहरी समाज सुमेरियन भी केरल को प्रमुख मसाला व्यापार केन्द्र के रूप में जानता था। 1700-1100 ईसवी पूर्व के बीच की अवधि में रचित ऋग्वेद की एत्तरैय शाखा से संबंधित ‘एत्तरैय अरण्यक’ संस्कृत की ऐसी सबसे प्राचीन कृति है जिसमें केरल का विशेष उल्लेख है।
जहां तक भाषा का प्रश्न है, वायानाड की एडाक्कल गुफाओं में उत्कीर्ण मलयालम भाषा से पता चलता है कि चौथी शताब्दी के अंत में केरल के सामान्य जन मलयालम भाषा बोलते थे। मलयालम में सबसे पहला अभिलेख एक शिलालेख है जो लगभग 830 ईसवी पुराना है। कोलेलुट्टू या ‘रोड लिपि’, ग्रंथ लिपि से उत्पन्न हुई है जो स्वयं ब्राह्मी से उत्पन्न हुई है।
विशेषज्ञ आमतौर पर सहमत हैं कि मलयालम या तो तमिल बोली से या आदि प्रोटो द्रविड़ भाषा की शाखा, जिससे आधुनिक तमिल भी विकसित हुई है, से उत्पन्न हुई है। वे इस बात पर सहमत हैं कि संस्कृत शब्दों ने मलयालम को प्रभावित किया है। यह अभिलेखबद्ध है कि तमिल कुछ समय तक साहित्यिक मुहावरे के तौर पर जारी रही परंतु अंतत: इस क्षेत्र में जनभाषा छा गई और 9वीं शताब्दी के आरम्भ तक यह सभी कार्यों के लिए संप्रेषण की भाषा बन गई। परंतु मलयालम तमिल और संस्कृत से जुड़ी होने के कारण इसे कुछ अनूठी विशेषताएं प्राप्त हुई हैं जो अभी भी आधुनिक भाषा में दिखाई देती हैं।
आज, पूरी दुनिया में करीब 35 मिलियन मलयालम भाषी हैं और मुख्यत: वे भारत में रहते हैं।
मलयालम भाषा की सबसे पुरानी साहित्यिक कृति 12वीं या 13वीं शताब्दी पुराना महाकाव्य ‘रामचरितम’ (जिसे ‘राम कृत्य’ के नाम से अनूदित किया गया है।) को माना जाता है।
बाद की शताब्दियों के दौरान, मलयालम साहित्य में काफी सृजन होने लगा। मलयालम भाषा के कुछ विख्यात लेखकों में प्राचीन लेखक थुनछाट एजुथचन और कुंजन नांबियार तथा आधुनिक काल के कुमारन असान और उपन्यासकार सी.वी. रमन पिल्लै, चन्दू मेनन, वायाकोम मुहम्मद बशीर और तकषी शिवशंकर पिल्लै शामिल हैं। श्री पिल्लै की कृतियों में केरल के समाज और घटनाओं का शानदार चित्रण किया गया है। इसी के साथ, अन्य भाषाओं की साहित्यिक कृतियों में भी उतनी ही रुचि प्रदर्शित की गई। ‘व्यास महाभारतम्’ महाकाव्य का पहला अनुवाद मलयालम में हुआ था। स्मरणीय है कि बंगाली साहित्य की प्रत्येक प्रमुख कृति का अनुवाद मलयालम में हो चुका है।
मलयालम हमारे देश की सबसे विकसित भाषाओं में से एक है इसलिए यह स्वाभाविक ही है कि हमारे समय के बहुत से महानतम साहित्यकार मलयाली हैं। प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता जी शंकर कुरुप से लेकर सामयिक मलयाली लेखकों ने उच्च मानदंड स्थापित किए हैं। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि आज हमारे बीच दो ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता, श्री एम.टी. वासुदेवन नायर और श्री ओ.एन.वी. कुरुप उपस्थित हैं।
विशिष्ट सहभागियो,
कोई भी भाषा चाहे पारंपरिक मूल्यों एवं धरोहर से कितनी भी समृद्ध क्यों न हो, अगर वह विकसित न होती रहे तो अपनी प्रासंगिकता और लोकप्रियता खो देती है। इसलिए यह जरूरी है कि हमें अपनी प्रिय भाषाओं की रक्षा करते हुए अपनी क्षमता अनुसार आधुनिक माध्यमों के जरिए उन्हें बढ़ावा देना चाहिए और साथ ही साथ उनकी विशष्टता को सुरक्षित रखने पर ध्यान देना चाहिए। नई पीढ़ी की आवश्यकताओं को सही ढंग से पूरा न करने वाली भाषा उसके हाथों में सुरक्षित नहीं रह पाएगी। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस महोत्सव में ऐसे मुद्दों पर विचार किया जाएगा।
मैं समझता हूं कि नया मलयालम विश्वविद्यालय 1 नवम्बर, 2012 से तिरुर में आरम्भ हो जाएगा तथा यह मलयालम भाषा विज्ञान, साहित्य, प्रदर्शन कला, दृश्य कला और वास्तुकला, सांस्कृतिक नृविज्ञान और सांस्कृतिक एवं बौद्धिक धरोहर अध्ययन आदि के अध्ययन के लिए समर्पित होगा। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस विश्वविद्यालय में होने वाले अनुसंधान और कार्यकलापों का मलयालम के संरक्षण और प्रचार-प्रसार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
मैं समझता हूं कि विश्व मलयाला महोत्सवम् इस संदर्भ में सही समय पर की गई पहल है। केरल के बारे में सही कहा गया है कि इसकी धरती प्राकृतिक साधनों और ऐसे लोगों से परिपूर्ण है जिन्होंने सामाजिक और शैक्षिक सुधारों के मोर्चे पर अपनी योग्यता सिद्ध की है।
यह देश का पहला राज्य है जिसने शत-प्रतिशत साक्षरता प्राप्त की है। मलयालम के विकास से, ‘केरलवासी’ के रूप में पहचान पहचान बनी है जबकि वह नए तत्त्वों और प्रभावों के प्रति उदार, सहिष्णु और अनुकूल है।
मुझे विश्वास है कि राज्य में रहने वाले और विश्व भर में फैले 30 लाख से ज्यादा मलयालियों को यह सम्मेलन अनुभवों, आशाओं और आकांक्षाओं के आदान-प्रदान का एक मंच उपलब्ध करवाएगा।
निस्संदेह, आप इस अवसर का प्रयोग इस मंच के माध्यम से कार्य व लक्ष्य निर्धारित करने के लिए करेंगे। मैं, एक बार पुन: एक उद्देश्यपूर्ण सम्मेलन के लिए आप सभी को शुभकामनाएं देता हूं और इसकी सफलता की कामना करता हूं। इन्हीं शब्दों के साथ, मैं विश्व मलयाला महोत्सवम्-2012 का उद्घाटन करता हूं।