स्वास्थ्य मंत्रियों की 31वीं बैठक के संयुक्त उद्घाटन सत्र तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन दक्षिण-पूर्व एशिया की क्षेत्रीय समिति के 66वें सत्र के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली : 10.09.2013
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मुझे स्वास्थ्य मंत्रियों की 31वीं बैठक के उद्घाटन सत्र तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन दक्षिण पूर्व एशिया की क्षेत्रीय समिति के 66वें सत्र में आप सभी का हार्दिक स्वागत करते हुए अत्यंत प्रसन्नता हुई है। मुझे उम्मीद है कि ऐतिहासिक नगरी दिल्ली में आपका प्रवास सुखद रहेगा और बैठक के दौरान सफल विचार-विमर्श के लिए आवश्यक उत्साह, ऊर्जा और जोश हासिल होगा।
मैं इस अवसर पर, डॉ. मारग्रेट चान, महानिदेशक, विश्व स्वास्थ्य संगठन को ‘सभी के लिए स्वास्थ्य’ नीतियों के कार्यान्वयन, इसे एक विश्व कार्यक्रम बनाने के उनके अथक प्रयासों तथा राष्ट्रों के अंतरराष्ट्रीय समुदाय में जन स्वास्थ्य के कार्य के प्रति उनके समर्पण के लिए बधाई देता हूं।
महामहिमगण,
देवियो और सज्जनो,
मैं इस बात पर सम्मानित महसूस कर रहा हूं कि हम स्वास्थ्य मंत्रियों की 31वीं बैठक का आयोजन कर रहे हैं जिसमें इस क्षेत्र के 11 देशों—बांग्लादेश, भूटान, लोकतांत्रिक जन गणराज्य कोरिया, भारत, इंडोनेशिया, मालदीव, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका, थाइलैंड और तिमोर-लेस्टी के स्वास्थ्य मंत्री क्षेत्र के प्रमुख स्वास्थ्य मुद्दों और चुनौतियों पर विचार-विमर्श करेंगे।
क्षेत्रीय स्तर पर यह अंतरराष्ट्रीय मंच इस क्षेत्र के लिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यहां 1.79 बिलियन लोग रहते हैं जो विश्व जनसंख्या का 26.4 प्रतिशत है। इस क्षेत्र की 46 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे रह रही है; बहुत से रोगों से यह क्षेत्र पीड़ित है, 28 प्रतिशत से अधिक संक्रामक रोग, मातृत्व और प्रसवपूर्ण हालात और पोषण की कमी से पैदा होते हैं जो गरीबी से गहराई से जुड़े हुए हैं।
आंकड़े यह भी दर्शाते हैं कि दक्षिण पूर्वी एशिया क्षेत्र में असंक्रामक रोगों से होने वाली 27 प्रतिशत से अधिक बीमारियां मौजूद हैं जो क्षेत्र में असंक्रामक रोगों की बढ़ती हुई मौजूदगी को दिखाता है।
यह भी चिंता का विषय है कि दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद (3.8 प्रतिशत) के तौर पर स्वास्थ्य पर सबसे कम कुल व्यय दर्ज किया जाता है तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन के 2009 के आंकड़ों के अनुसार स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति 84.4 प्रतिशत से अधिक अपनी जेब से किया जाता है।
इस पृष्ठभूमि में, मुझे विश्वास है कि क्षेत्र के स्वास्थ्य मंत्रियों की बैठक के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन दक्षिण पूर्व एशिया की क्षेत्रीय समिति के सत्र में सम्पूर्ण क्षेत्र की प्रगति का नक्शा तैयार होगा तथा महत्त्वपूर्ण पहलों और कार्यनीतियों पर व्यापक समझौते और अपेक्षित संयुक्त प्रस्ताव सामने आएंगे।
देवियो और सज्जनो,
इस क्षेत्र के लोगों के लिए सर्वोत्तम स्वास्थ्य गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करने की तात्कालिक जरूरत है। तथापि इसके लिए, संबंधित सरकारों द्वारा बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाए जाने की जरूरत है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि इन दोनों समारोहों की कार्यसूची में क्षेत्र के अधिकांश ऐसे स्वास्थ्य मुद्दे शामिल होंगे जिनके लिए गंभीर विचार-विमर्श और तात्कालिक प्रयासों की जरूरत है।
यह कुछ संतोष की बात है कि क्षेत्र के देशों के वर्तमान व्यवस्थित प्रयासों तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से उनमें से कई देश ज्यादातर स्वास्थ्य संबंधी सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने वाले हैं। इन प्रयासों से पोलियो समाप्ति, चेचक का उन्मूलन, जीवन प्रत्याशा में सुधार तथा शिशु और मातृत्व मृत्यु दर में कमी जैसी कुछ उल्लेखनीय उपलब्धियां प्राप्त हुई हैं। तथापि क्षेत्र के सभी देशों में एक समान स्थिति नहीं है। कुछ देश अभी भी पिछड़े हुए हैं और स्वास्थ्य संबंधी सहस्राब्दि विकास लक्ष्य प्राप्त करने के लिए और अधिक प्रयासों और संसाधनों की आवश्यकता होगी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र के अनुमानित 142 मिलियन लोग अथवा 8 प्रतिशत जनसंख्या 60 वर्ष से अधिक आयु की है। यह संख्या बढ़ती रहेगी और 2025 तक जनसंख्या में 60 वर्ष से ज्यादा के लोगों की अनुमानित संख्या 2000 की तुलना में दो गुना हो जाएगी और 2050 तक 2000 की संख्या की तुलना में तीन गुना हो जाएगी।
वृद्धावस्था और स्वास्थ्य 2012 में, योग्यकर्ता घोषणा में इस बात को स्वीकार किया गया है कि वृद्धजन एक मूल्यवान सामाजिक परिसम्पत्ति हैं तथा दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र के सदस्य राष्ट्र और साझीदारों द्वारा सदस्य राष्ट्रों में स्वस्थ वृद्धावस्था को प्रोत्साहित करने के लिए एक सर्वांगीण और बहुविधात्मक दृष्टिकोण अपनाने के गंभीर प्रयास करने चाहिए। क्षेत्र के सभी भागीदारों को योग्यकर्ता घोषणा के सभी पहलुओं का संयुक्त रूप से समर्थन और प्रभावी अनुपालन करना चाहिए।
क्षेत्र की जनसंख्या में रक्तचाप की व्यापकता में निरंतर वृद्धि को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। विशेषकर युवाओं के बीच उच्च रक्तचाप की घटनाओं का बढ़ना अधिक खतरनाक है। तनावपूर्ण आधुनिक जीवन शैली इस स्थिति को और खराब करेगी।
हम जानते हैं कि उच्च रक्तचाप के, खासतौर से दीर्घकाल में, गंभीर प्रभाव होते हैं। इसलिए इस अवांछनीय प्रवृत्ति को रोकने के लिए क्षेत्र के देशों को आवश्यक किफायती, समयबद्ध प्रयास खोजने होंगे।
जैसे-जैसे सहस्राब्दि विकास लक्ष्य प्राप्त करने की 2015 की लक्ष्य तिथि निकट आ रही है यह व्यापक बहस हो रही है कि वैश्विक समुदाय को आगे कौन से विकास लक्ष्य तय करने चाहिए। संयुक्त राष्ट्र ने पहले ही 2015 के बाद की वैश्विक विकास कार्यसूची पर सलाह के लिए एक उच्च स्तरीय पैनल नियुक्त कर दिया है।
इस प्रक्रिया के समर्थन में, संयुक्त राष्ट्र विकास समूह अनेक वैश्विक विषयगत परामर्शों के माध्यम से 2015 के बाद की कार्यसूची पर एक ‘वैश्विक परिचर्चा’ तेज करने के प्रयासों को आगे बढ़ा रहे हैं। इसलिए, क्षेत्र के स्वास्थ्य मंत्रियों के लिए संदर्भ में इस क्षेत्र विशेष प्राथमिकताओं को देखते हुए, इस आवश्यक मुद्दे पर बहस के लिए यह आदर्श समय हो सकता है।
क्षेत्र में सभी को एक आदर्श स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली सुलभ होनी चाहिए। क्षेत्र की अधिकांश आबादी की किफायती लागत पर उत्तम स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की वर्तमान कमी को समझते हुए, प्रस्तावित वैश्विक स्वास्थ्य सेवा एक बहुत व्यवहार्य समाधान लगती है।
परंतुप साक्ष्य दर्शाते हैं कि इस क्षेत्र में स्वास्थ्य के तहत दो मद बहुत असमानता और अकुशलता पैदा करते हैं; पहला, स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच के लिए क्षमता से अधिक व्यय, जिससे परिवार गरीबी में फंस सकते हैं, और दूसरा, इन भुगतानों का एक बड़ा हिस्सा दवाइयों की खरीद में चला जाता है।
यह जरूरी है कि इस क्षेत्र के देश प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा दृष्टिकोण के आधार पर रोकथाम तथा प्रचार गतिविधियों; उपयुक्त प्रौद्योगिकियों के प्रयोग, और जहां तक संभव हो, घरेलू संसाधनों पर आधारित जन स्वास्थ्य प्रणालियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपनी स्वास्थ्य प्रणालियों को सशक्त करें।
सभी समुदायों के लिए वैज्ञानिक रूप से विश्वसनीय पेशेवरों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए चिकित्सा शिक्षा तथा प्रशिक्षण पर सुचिंतित निवेश की जरूरत होगी।
औषधियों और टीकों की आपूर्ति तथा संभरण में मौजूद खामियों का भी प्राथमिकता के आधार पर समाधान निकाला जाना चाहिए। ग्रामीण तथा शहरी, विभिन्न स्तरों पर स्वास्थ्य की निगरानी और संचालन में सामुदायिक सहभागिता के लिए संस्थागत तंत्र को मजबूत करना भी अत्यावश्यक है।
असंक्रामक रोग वैश्विक रूप से और इस क्षेत्र में मृत्यु के प्रमुख कारण हैं। प्रतिवर्ष करीब 7.9 मिलियन लोग असंक्रामक रोगों के कारण मर जाते हैं जो क्षेत्र में मृत्यु का 55 प्रतिशत है। यह उचित प्रतीत होता है कि नौ वैश्विक स्वैच्छिक लक्ष्यों को अपनाने के अलावा, एक विस्तृत क्षेत्रीय कार्य योजना तैयार की जाए और इस महामारी को नियंत्रित करने के लिए इसे सख्ती से कार्यान्वित किया जाना चाहिए।
विश्व, 2007 से अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियमन अमल में ला रहा है। यह विधिक रूप से बाध्यकारी समझौता, अंतरराष्ट्रीय स्तर की जन-स्वास्थ्य संबंधी आपात्कालीन घटनाओं के प्रबंधन के समन्वय हेतु एक नया ढांचा प्रदान करके विश्व जन स्वास्थ्य सुरक्षा में उल्लेखनीय योगदान देता है तथा इससे जन स्वास्थ्य खतरे का पता लगाने, मूल्यांकन करने, सूचना देने और पहल करने की सभी देशों की दिशा में क्षमता सुधरेगी।
इस क्षेत्र के सभी देशों के लिए जरूरी है कि इस सम्बन्ध में परिघटनाओं पर विचार-विमर्श करें और यह सुनिश्चित करें कि वे अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियमन की प्रमुख निगरानी और जवाबी आवश्यकताओं को पूरा कर रहे हैं।
अंत में, मैं पूरी उम्मीद करता हूं कि ये सत्र क्षेत्र में एक बेहतर स्वास्थ्य देखभाल वातावरण की दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान देंगे।
अपनी बात समाप्त करने से पहले, मैं एक बार फिर नई दिल्ली में आपके स्मरणीय और आनंदपूर्ण प्रवास की कामना करता हूं।
देवियो और सज्जनो,
इन्हीं शब्दों के साथ, मैं स्वास्थ्य मंत्रियों की इकतीसवीं बैठक तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन दक्षिण पूर्व एशिया के छियासठवें सत्र के उद्घाटन की अधिकारिक घोषणा करता हूं।
आपने मेरी बात सुनी,
इसके लिए धन्यवाद।