सुश्री शिप्रा दास द्वारा ‘द लाइट विदिन’ पुस्तक प्रस्तुत किए जाने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली : 18.11.2013

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मेरे लिए इस शाम आपके बीच उपस्थित होना वास्तव में खुशी की बात है, जब सुश्री शिप्रा दास द्वारा प्रकाशित इस अनूठे प्रकाशन ‘द लाइट विदिन’ का विमोचन दो दृष्टिबाधित लोगों द्वारा किया गया है और मुझे इसकी प्रथम प्रति प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।

2. सबसे पहले, मैं इस अद्भुत और अनूठे कार्य तथा हमारे समाज के ऐसे कुछ असाधारण सदस्यों के चित्रों के संवेदनापूर्ण चित्रण के लिए बधाई देता हूं जो दृष्टिहीन होते हुए भी आश्चर्यजनक व्यक्तिगत विजय प्राप्त करने में सफल रहे हैं। वे आशा और लगन के जीते जागते उदाहरण हैं। विषम प्रतिकूलताओं पर दृष्टिबाधितों की विजय से यह सिद्ध होता है कि हर प्रकार की कठिनाइयों के बावजूद अपना लक्ष्य पाया जा सकता है बशर्ते हम उनका सामना साहस, दृढ़ निश्चय तथा आत्मविश्वास से करें।

3. इस पुस्तक को पढ़ने के दौरान, मैं इसमें चित्रित छोटे बच्चों, पुरुषों और महिलाओं, युवाओं एवं वृद्धों के आशावाद से बहुत प्रभावित हुआ हूं। मैंने पाया कि इनमें से बहुत से लोगों ने दृश्यमान तथा प्रत्यक्ष से आगे देखने की क्षमता के बारे में, अपने हृदय से देखने की, अपनी आंतरिक दृष्टि पर निर्भर रहने की, तथा उनसे भावनात्मक रूप से जुड़ने की जिनसे वे संपर्क में रहते हैं, जो बात की है, वह जादुई और चमत्कारिक है।

4. मैं नारियल चुनने वाले आनंद के बारे में पढ़कर विस्मित रह गया जो विश्वास के साथ नारियल के पेड़ों पर चढ़ते हैं और दूसरे सामान्य बालकों की तुलना में ज्यादा नारियल इकट्ठा करते हैं। जन्मजात नेत्रहीन विशाल राव ने राजनीति विज्ञान में स्नातक किया। वह बांसुरी और वायलिन बजाते हैं और मछली पकड़ने का जाल भी बुन सकते हैं। कंचन पमनानी जिनकी एक अपनी विधि फर्म है और जो मुकदमों से लेकर बौद्धिक संपदा अधिकार तथा उपभोक्ता अधिकार जैसे जटिल कानूनी मसलों पर अपने मुवक्किलों को सलाह देती हैं तथा कंचनमाला पांडे हैं जिनका सपना इंग्लिश चैनल को पार करना है, ये कुछ कुछ सफल लोग हैं जिनका चित्रण इस कॉफी टेबल पुस्तक में किया गया है।

5. मुझे यह जानकर दु:ख हुआ कि जिन दृष्टिबाधित लोगों का साक्षात्कार लिया गया था उनमें से बहुत से लोगों को घर में तथा घर से बाहर शोषण का शिकार होना पड़ा। कुछ को बैंक से ऋण लेने में मुश्किलें आई क्योंकि वे देख नहीं सकते थे। ओडिशा के एक युवक की पारिवारिक कृषि भूमि का सारा हिस्सा उसके अपने चाचा ने हड़प लिया और उसे असहाय छोड़ दिया। आज उसी लड़के निमाई ने सम्पत्ति का अपना हिस्सा दोबारा हासिल कर लिया है वह इसे जोत रहा है और स्वयं के गुजारे के लिए पर्याप्त फसल प्राप्त कर रहा है।

6. काफी पहले 1916 में, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने जापान की केओ गिजुकु विश्वविद्यालय में अपने एक व्याख्यान के दौरान एक अलग प्रकार की दृष्टि का उल्लेख किया था; उन्होंने इसे ‘‘मानसिक इन्द्रिय बताया जिसकी मदद से हम लोगों की भावना को जान सकते हैं... जिनके पास ऐसी दृष्टि नहीं है, वह केवल घटनाओं और यथार्थ को देखते हैं, उनके आंतरिक साहचर्य को नहीं जान पाते।’’

7. इस संबंध में, हममें से अधिकांश लोग अपनी नेत्रदृष्टि के वरदान के बावजूद नहीं देख पाते—जो ईश्वर प्रदत्त ऐसा उपहार है जिसे हम महत्त्व नहीं देते। ऐसा अक्सर सोचा जाता है कि दृष्टिहीन लोग प्रत्यक्ष से परे देख सकते हैं—और दूसरों की अपेक्षा अधिक गहराई से चीजों का अनुभव कर सकते हैं।

8. मानव सभ्यता के समूचे इतिहास के दौरान, यह माना जाता है कि दृष्टिहीन लोगों के पास तीसरी दृष्टि होती है। यूनानी पौराणिक ग्रंथ ऐसे दृष्टिहीन पैगंबरो से भरे हुए हैं जो भविष्य को देख सकते थे। मिस्र के मकबरों में दृष्टिहीन वादकों के चित्र उकेरे हुए हैं जो ईश्वर से बातचीत करते थे। प्राचीन इजरायल में असाधारण शक्तियों से युक्त दृष्टिहीन सम्मानित विद्वान लोग हुआ करते थे। हिब्रू धर्मग्रंथों में कहा गया है, ‘‘ईश्वर दृष्टिहीनों के नेत्र खोलता है।’’ सेमिटिक भाषाओं की एक शाखा अरामेक में, दृष्टिहीन के लिए ‘सागी नहोर’ शब्द का इस्तेमाल हुआ है जिसका अर्थ ‘महान प्रकाश’ है। अंत:चेतना से प्रकाशित यह गहरी दृष्टि शिप्रा दास की पुस्तक ‘द लाइट विदिन’ का कथानक है।

9. आमतौर पर, छायाकार वास्तविक दुनिया से ताल्लुक रखते हैं, छायाकार के मन में ही किसी वस्तु या व्यक्ति का पूर्ण चित्रण अंकित होता है। और मुझे यह देखकर प्रसन्नता हुई है कि शिप्रा दास ने अपने गहन अनुभूतिजन्य प्रकाशन में ऐसे ही उत्कृष्ट चित्र हमारे सम्मुख प्रस्तुत किए हैं। शिप्रा दास ने छायाचित्रित लोगों की दुनिया की एक अन्तर्दृष्टि प्रदान की है और उनके राजमर्रा के जीवन और दिनचर्या की असलियतें, उनकी सफलताओं और तकलीफों के बारे में लिखा है।

10. मैंने यह भी पाया है कि उनकी पुस्तक में शामिल दृष्टिहीन नायक खुद को असाधारण नहीं मानते परंतु यह बहुत ही खास बात है कि वे सृजनात्मक तथा प्रसन्नचित सहनशीलता के साथ दुनिया को देखते हुए किस तरह दुनिया में अपनी राह बनाते हैं। वे शांत और दार्शनिक हैं तथा अपनी दृष्टिहीनता के प्रति वे पूरी तरह अभ्यस्त हो गए हैं। मैं खासतौर से अपने आसपास की दुनिया के प्रति उनके सरल नज़रिए और उनकी अंतर्ज्ञानात्मक समझ से अभिभूत हूं।

11. इस पुस्तक से निश्चित रूप से पाठकों को दृष्टिहीनों की भारी क्षमताओं का अहसास हो पाएगा। उनके अनुभवों से नि:संदेह न केवल इसी तरह की चुनौतियों का सामना कर रहे लोगों को वरन् हममें से उनको भी प्रेरणा मिलेगी जो उन जैसे लोगों की सहायता के लिए आगे आना चाहते हैं। मैं समाज के सभी वर्गों खासतौर से स्कूलों और तकनीकी एवं इंजीनियरी संस्थानों के युवाओं से आग्रह करता हूं कि वे इस पुस्तक में चित्रित साहसी लोगों के अनुभवों पर गौर करें तथा उनके रोजमर्रा के जीवन में प्रयोग किए जाने वाले नवान्वेषी और तकनीकी समाधानों में योगदान करने की प्रेरण ग्रहण करें। हम दृष्टिबाधित लोगों के जीवन को और आरामदेह बना सकते हैं तथा अपने सामाजिक-आर्थिक विकास के विभिन्न क्षेत्रों में भाग लेने की उनकी क्षमता को बढ़ा सकते हैं।

12. मैं, अद्भुत रूप से संकल्पित पुस्तक के प्रकाशन में उनकी भूमिका के लिए श्री विकास नियोगी को भी बधाई देना चाहूंगा।

13. मैं, इस पुस्तक में चित्रित प्रत्येक व्यक्ति को उनकी उल्लेखनीय हिम्मत और लगन के लिए बधाई देता हूं। वे अदम्य मानव उत्साह की शक्ति की मिसाल हैं।

14. मैं, एक बार पुन: सुश्री शिप्रा दास को बधाई देता हूं और उनके कार्य और भावी योजनाओं की सफलता की कामना करता हूं।

जय हिंद!

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