श्री अरविंद अंतरराष्ट्रीय शिक्षा केन्द्र के विद्यार्थियों को संबोधित करने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
पुदुच्चेरी : 25.09.2013
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मुझे एक असाधारण अतीत, एक अच्छे वर्तमान और सुनहरे भविष्य के संगम स्थल पर उपस्थित होकर खुशी हो रही है। माना जाता है कि प्राचीन पुदुच्चेरी ऋषि अगस्त का धाम रहा है जिन्होंने उत्तर से आकर दक्षिण में अपना बसेरा बनाया और इस प्रकार जीवन के उद्देश्य की भारत की खोज की एकात्मकता को प्रकट किया।
इस महान इतिहास के साथ पुदुच्चेरी सांस्कृतिक समन्वय का एक अद्भुत उदाहरण है। तीव्र विकास के बीच फ्रेंच संस्कृति, भाषा और वास्तुकला के तत्वों का संरक्षण करने के प्रयासों के अलावा यह नगर भारत के लगभग सभी राज्यों और बहुत से देशों के लोगों का घर है। यह काफी हद तक श्री अरविंद आश्रम के कारण संभव हुआ है जो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सौहार्द के उदाहरण के रूप में उपस्थित है।
यह नगर निरंतर बढ़ रहे आगंतुकों का स्वागत करता है। मैं इन्हें पर्यटकों के बजाय आगंतुक कह रहा हूं क्योंकि उनमें से बड़ी संख्या में किसी ऐसे प्रयोजन से यहां आते हैं जो छुट्टी मनाने से कहीं ज्यादा गंभीर है। वे इस स्थान के आध्यात्मिक परिवेश से शांति और ज्ञान प्राप्त करने की खोज में आते हैं।
यही वह स्थान है, जहां श्री अरविंद ने मनुष्य के भविष्य की संकल्पना की। इस महान स्वामी के जीवन का प्रथम चरण अंग्रेजों से हमारी मातृभूमि को मुक्त करवाने के प्रति समर्पित था। उनके जीवन का दूसरा चरण मानवता को अज्ञानता की बेड़ी से मुक्त कराने को समर्पित था।
जिस प्रकार श्री अरविंद ने अनुभव किया था कि भारत की स्वतंत्रता निश्चित है, उसी प्रकार वह मानव मुक्ति के प्रति भी आश्वस्त थे। वह यह भी मानते थे कि मुक्ति के लिए भौतिक जगत से आत्मा के पलायन की आवश्यकता नहीं है। इसके बजाय, हमें प्रभावित करने वाले सभी अवगुणों से रहित एक सक्रिय जीवन हो सकता है। इस कारण, जिस संसार में हम जी रहे हैं वह त्याग करने के लिए नहीं है बल्कि यह सामूहिक आकांक्षा द्वारा रूपांतरण के लिए है।
श्री अरविंद मानते थे कि द्वंद्वात्मक प्रवृतियों से भरा हुआ, अज्ञानता में फंसा हुआ, अक्सर अपने आचरण में असंतुलित और स्वयं से भी अनजान वर्तमान व्यक्ति ही विकास क्रम की अंतिम उपलब्धि नहीं है। एक अधिक उज्ज्वल भविष्य दुनिया की प्रतीक्षा कर रहा है। व्यक्ति एक नए रूप में बदल जाएगा; उसकी अज्ञानता ज्ञान में परिवर्तित हो जाएगी और उसकी दुर्बलताएं प्रबलता में बदल जाएंगी।
निराशावाद और हताशा हमारे समय के दुखद दोषों में से हैं। व्यक्ति जो भी कार्य करता है उनमें ये दोष, उनमें गैर समर्पण पैदा करते हैं। और यही गैर समर्पण अनगिनत बुराइयों की जननी है। मैं उम्मीद करता हूं कि आप जैसे लोग जो श्री अरविंद के अनुयायी हैं, अपनी मनोवृत्ति और कार्यों से एक बेहतर भविष्य को मूर्त रूप देते रहेंगे।
मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि श्री अरविंद अंतरराष्ट्रीय शिक्षा केन्द्र के विद्यार्थी अल्पायु से ही अपनी मातृभाषा के अलावा, अंग्रेजी, फे्रंच और संस्कृत भाषाएं सीखने लगते हैं। आप अपने रहन-सहन, अध्ययन और मिलकर खेलने के कारण अपने आप ही तमिल, हिंदी, बंगाली, ओडिया और गुजराती जैसी अन्य भाषाएं भी सीख लेते हैं। इसके अतिरिक्त, आपमें से कुछ लोग जर्मन, इटैलियन, स्पेनिश और रूसी जैसी भाषाएं सीखना पसंद करते हैं।
आपके बच्चे और आपके शिक्षक जो मेरे विचार से आश्रम में रहे हैं, यह सिद्ध करने के लिए बधाई के पात्र हैं कि एक बच्चे में भाषाएं सीखने की असीम क्षमता होती है और ऐसा एक अच्छे वातावरण में और समर्पित शिक्षकों द्वारा पढ़ाने से, बिना किसी कठिनाई के संभव है। यह वास्तव में इस संस्थान और श्री अरविंद आश्रम के अंतरराष्ट्रीय स्वरूप का प्रमाण है। दृष्टिकोण की यह उदारता तथा श्री अरविंद और उनके आश्रम की अद्भुत संकल्पना हमारे द्वंद पीड़ित विश्व के लिए एक आशा का प्रतीक है और हमें इसे संरक्षित और सुरक्षित रखना चाहिए।
स्वामी जी की संकल्पना के आधार पर माता जी द्वारा अमल में लाई जा रही आपकी शिक्षा प्रणाली में संपूर्ण शिक्षा के लिए मानव व्यक्तित्व के शारीरिक, मानसिक, जैविक और आध्यात्मिक सभी पहलुओं पर संतुलित बल देने की आवश्यकता है। एक राष्ट्र के तौर पर, हमें इस आदर्श का पालन करने की आकांक्षा पैदा करनी चाहिए और आपको अग्रणी के तौर पर मार्ग प्रशस्त करना चाहिए।
हमारे देश के युवा बुद्धिमता तथा प्रतिभा के मामले में किसी से पीछे नहीं हैं; परंतु हमारे देश को जिसकी जरूरत है वह है ईमानदारी और समर्पण। क्षेत्रीयता से अबाधित, संकीर्णता से युक्त तथा पूर्वाग्रहों से रहित व्यापक नजरिया ही हमारे देश को महान तथा विश्व का नेतृत्व करने के लिए एक पर्याप्त आदर्श राष्ट्र बना सकता है। श्री अरविंद अपने जीवन के दोनों चरणों के दौरान भारत से यही भूमिका निभाने की उम्मीद करते थे।
आज मानव अनेक संकटों का सामना कर रहा है, सभी मनुष्य एक ऐसा विश्व चाहते हैं, जो हिंसा से दूर हो हो, जहां जायज सपनों को पूरा किया जा सके। यदि इस साझे लक्ष्य पर कोई विवाद नहीं है तो इतना द्वन्द्व, इतनी घृणा और असहिष्णुता क्यों जारी रहनी चाहिए।
वास्तविक समस्या कहीं गहराई पर स्थित है। श्री अरविंद ने इसकी पहचान एक उद्विकासात्मक संकट के रूप में की है। एक ओर मानवजाति का विशाल प्रौद्योगिकी, वैज्ञानिक और अन्य भौतिक शक्तियों पर नियंत्रण है, परंतु दूसरी ओर, उसका अपनी चेतना पर पूरा नियंत्रण नहीं है। उसके अंत:करण की गहराई में ऐसे तत्व हैं जो उसकी सभी श्रेष्ठ प्रवृत्तियों को विकृत और भ्रष्ट कर रहे हैं।
तथापि श्री अरविंद ने हमें विश्वास दिलाया है कि संकट का समाधान स्वयं संकट में ही छिपा होता है। हमें अपनी चेतना व गुप्त प्रकाश, अपनी अन्तश्चेतना को खोजना और विकसित करना होता है। इसलिए हमें रूपांतरण शक्ति जिसे वह परममानसिकता कहते हैं, को आहूत और सक्रिय करना चाहिए।
हमें अपने आस-पास रहने वाले लोगों की भावनाओं का तथा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमारे शब्दों और कार्यों से वे किस तरह प्रभावित होते हैं। जब हम उन समस्याओं को समाप्त करने का प्रयास कर रहे हैं जो हमारे सामाजिक विकास पर दुष्प्रभाव डालती हैं, और जब हम असंतुलनों का हल ढूंढ रहे हैं, तब हमें मिल-जुलकर उन मूल्यों का भी पता लगाना होगा जिन्होंने सदियों से हमारे समाज के बहुलवादी तथा पंथनिरपेक्ष ताने-बाने को सुरक्षित रखा है। इसी के साथ हमें इन आचारों को भी लागू करना होगा ताकि जैसे-जैसे हम वैश्विक संसार की ओर बढ़ते हैं, हम भारतीयों के रूप में इन विशिष्ट परंपराओं के प्रति वफादार रहें। इसी प्रकार, हमें अपने लोकतांत्रिक समाज के सभी वर्गों के बीच और अधिक सहिष्णुता तथा सद्भावना पैदा करते रहने का प्रयास करना होगा।
जैसा कि श्री अरविंद ने एक बार कहा था ‘लक्ष्यहीन व्यक्ति का जीवन सदैव कष्टमय रहता है। प्रत्येक व्यक्ति का कोई न कोई लक्ष्य होना चाहिए। परंतु यह नहीं भूलना चाहिए कि आपके लक्ष्य की गुणवत्ता ही आपके जीवन की गुणवत्ता पर निर्भर करेगी। आपका लक्ष्य उच्च और व्यापक, उदार और निष्काम होना चाहिए। इससे आपका जीवन स्वयं और दूसरों के लिए मूल्यवान बन जाएगा। यदि आपने स्वयं में श्रेष्ठता पैदा नहीं की तो आपका आदर्श भी श्रेष्ठ नहीं बन सकता।’
आइए उम्मीद करें कि मनुष्य ईश्वर की अपेक्षाओं पर अवश्य खरा उतरेगा, मनुष्य से भागने की जरूरत नहीं है, उसका रूपांतरण होगा ।
मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
धन्यवाद,
जय हिन्द !