सीआईआई—आईटीसी सततता पुरस्कार 2012 प्रदान करने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 14.01.2013

डाउनलोड : भाषण सीआईआई—आईटीसी सततता पुरस्कार 2012 प्रदान करने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण(हिन्दी, 238.77 किलोबाइट)

sp110413आज मकर सक्रांति के पावन दिन, सीआईआई—आईटीसी सततता पुरस्कार-2012 प्रदान करने के लिए आप सबके बीच आकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है। मैं आयोजकों का आभारी हूं कि उन्होंने मुझे भारतीय उद्योगों के प्रमुखों की इस महती सभा में भाग लेने का अवसर दिया।

यह प्रसन्नता की बात है कि किस तरह सततता का अभियान मुख्य धारा में अपनी पहचान बनाने के लिए तेजी से गति पकड़ रहा है। सीआईआई—आईटीसी, सततता विकास उत्कृष्टता केंद्र, जागरूकता पैदा करने, नेतृत्व विकसित करने तथा विभिन्न व्यवसायों को सततता संबंधी लक्ष्यों की दिशा में प्रयास करने के लिए सक्षम बनाने के लिए उनकी क्षमता निर्माण में आगे रहा है। मैं इस केंद्र तथा आईटीसी को पिछले सात वर्षों से इस पुरस्कार को प्रायोजित करने के लिए बधाई देता हूं।

‘सततता आंदोलन’ अब हमारे देश में परिपक्वता की ओर बढ़ रहा है। शेयरधारक मूल्य सृजन, सामाजिक तथा पर्यावरणीय पूंजी के सृजन के लिए आईटीसी द्वारा प्रोत्साहित ‘ट्रिपल बॉटम लाइन’ ढांचे को अब बड़े पैमाने पर समर्थन मिल रहा है। मुझे बताया गया है कि आईटीसी की सतत् परिकल्पना को ‘मिशन सुनहरा कल’ नामक एक समर्पित सामाजिक निवेश कार्यक्रम द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है जिसका लक्ष्य है स्टेकधारक समुदायों को अपनी सामाजिक और पर्यावरणीय पूंजी को संरक्षित रखने और उसका प्रबंधन करने के लिए सशक्त बनाना। इसके अलावा समाज आधारित दूसरी पहलों, जैसे कि ई-चौपाल, सामाजिक तथा कृषि वानिकी कार्यक्रम, के परिणामस्वरूप पर्याप्त आजीविका तथा प्राकृतिक पूंजी सृजित हुई है।

देवियो और सज्जनो, भारत आज क्रय शक्ति समानता के आधार पर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। यह दूसरी सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था भी है और इसकी वृद्धि दर चीन के बाद दूसरी है। पिछले कुछ दशकों के दौरान हमारी अर्थव्यवस्था ने तेजी से वृद्धि की क्षमता दिखाई है। नवीं योजना अवधि के दौरान जो औसत वृद्धि दर 5.5 प्रतिशत थी वह दसवीं और ग्यारहवीं योजना अवधियों के दौरान बढ़कर क्रमश: 7.7 प्रतिशत और 7.9 प्रतिशत हो गई। पिछले नौ में से छह वर्षों के दौरान यह वृद्धि दर 8 प्रतिशत से ऊपर रही है।

वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी तथा अन्य कारणों से यह वृद्धि दर 2010-11 में 8.4 प्रतिशत से घटकर 2011-12 में 6.5 प्रतिशत और 2012-13 की पहली छमाही के दौरान 5.4 प्रतिशत रह गई। पूर्व में कई बार हमारी अर्थव्यवस्था ने वैश्विक अर्थव्यवस्था तथा बाह्य सेक्टर में उथल-पुथल के बावजूद अच्छी दर पर वृद्धि की क्षमता दशाई है। मुझे उम्मीद है कि हम इस अल्पकालिक मंदी को उलटने की चुनौती का सामना करने में सफल होंगे तथा अपनी अर्थव्यवस्था को 8 से 9 प्रतिशत प्रतिवर्ष की वृद्धि दर पर ले आएंगे।

परंतु कठिन वैश्विक परिस्थितियों के बीच तेजी से वृद्धि की जरूरत ही अकेली चुनौती नहीं है। जैसे-जैसे हम समावेशी विकास के अपने चुने हुए रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं। हमें गरीबी उन्मूलन, पर्यावरण क्षरण को कम करने, जलवायु परिवर्तन का जवाब, अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बढ़ती प्रतिस्पर्धा, ऊर्जा की मांग में बढ़ोतरी और ऐसी ही बहुत-सी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। मुझे विश्वास है कि इन चुनौतियों का सामना करने के दौरान भारतीय उद्योग खुद को एक सक्षम भागीदार सिद्ध करेगा।

देवियो और सज्जनो, इसमें कोई संदेह नहीं है कि आर्थिक वृद्धि किसी भी देश के समग्र विकास का प्रमुख कारक होता है। परंतु प्राकृतिक पारिस्थितिकी तथा वे लोग जो समाज का निर्माण करते हैं, भी राष्ट्र निर्माण के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

वृद्धि और विकास की आज की वैश्विक परिचर्चा में पर्यावरणीय सततता का निसंदेह एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्राकृतिक संसाधनों तक सभी की पहुंच सुनिश्चित करते हुए हमें इसके दक्षतापूर्ण उपयोग को भी प्रोत्साहित करना चाहिए। अधिकतर आर्थिक कार्यकलाप पारिस्थितिकी द्वारा प्रदत्त उत्पादों और सेवाओं पर निर्भर होते हैं। आर्थिक प्रगति की दर को बनाए रखने के लिए व्यवसायों को पारिस्थितिकी की भावी क्षमता पर दुष्प्रभाव डाले बिना कार्य करने के योग्य होना चाहिए।

हमारा देश विश्व में सबसे अधिक ऊर्जा की खपत के मामले में अमरीका, चीन और रूस के बाद चौथे स्थान पर है। भारत में ऊर्जा की सघनता, जो कि किसी अर्थव्यवस्था की ऊर्जा दक्षता का पैमाना है, और ऊर्जा को सकल घरेलू उत्पाद में बदलने की लागत दर्शाती है, यू.के., जर्मनी, जापान तथा अमरीका जैसे विकसित देशों के मुकाबले ऊंची है। इसलिए 8 प्रतिशत प्रतिवर्ष से उच्च आर्थिक वृद्धि दर, जिसकी हमने अपने देश में अगले पांच वर्षों के दौरान परिकल्पना की है, के कारण ऊर्जा की खपत में काफी वृद्धि हो सकती है। हमें सख्ती से ऐसी नीतियों का पालन करना होगा जो कि ऊर्जा में दक्षता को प्रोत्साहन दें। ग्यारहवीं योजना अवधि के दौरान ऊर्जा कम करने की नीतियों के परिणामस्वरूप 10836 मेगावाट की ऊर्जा उत्पादन में कमी करके बचत की गई है और यदि इसे मुद्रा में नापा जाए तो इससे 3000 करोड़ रुपए की वार्षिक बजत हुई है। परंतु इस दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना है क्योंकि सतत् विकास के लक्ष्य की दिशा में हमारी यात्रा अभी शुरू ही हुई है। मैं निजी क्षेत्र से हरित ऊर्जा तथा सतत्ता के युग की शुरुआत करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की अपेक्षा रखता हूं।

देवियो और सज्जनो, पिछले कुछ दशकों के दौरान हमारे देश ने जिस आर्थिक समृद्धि का अनुभव किया है, वह तब तक निरर्थक है जब तक निर्धनता के कारण हमारी जनता का एक बड़ा भाग इसके विकास में सहभागी नहीं बन पाता। हमारे देश में मौजूद 30 प्रतिशत का निर्धनता अनुपात तथा 26 प्रतिशत का निरक्षरता अनुपात किसी भी हाल में स्वीकार नहीं किया जा सकता। निर्धनता में निर्णायक कमी तभी आ सकती है जब समाज के सभी तबकों के लिए आर्थिक अवसरों में विस्तार किया जाए। ‘समावेशी विकास’ केवल एक नारा ही नहीं बल्कि सतत् विकास के लिए एक बुनियादी प्रेरक शक्ति होना चाहिए।

आज यह विचार जोर पकड़ता जा रहा है कि विकास आर्थिक पहलुओं के एक से ज्यादा आयामों का समावेश करता है। ऐतिहासिक और पारंपरिक रूप से व्यवसायों ने वित्तीय लाभ को ही सफलता का मापदंड माना है। हमें भारतीय कंपनियों के संचालन में सामाजिक दायित्व की संस्कृति पैदा करने की जरूरत है। भारतीय व्यवसाय, अपने संचालन सामाजिक और पर्यावरणीय उद्देश्यों को शामिल करके हमारे समाज की बेहतरी के लिए सकारात्मक योगदान दे सकते हैं।

मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि हमारा उद्योग देश के विकास के अनेक प्रमुख क्षेत्रों में सक्रिय भागीदारी कर रहा है। कई व्यवसाय ग्रामीण क्षेत्रों में ऊर्जा सुलभता के नवान्वेषी उपायों का विकास और कार्यान्वयन कर रहे हैं। मैं समझता हूं कि आज पुरस्कृत संगठन, कृषकों को खेती की शिक्षा तथा युवाओं को तकनीकी शिक्षा और कौशल विकास प्रदान करने, स्थानीय व्यवसायों को प्रोत्साहित करने तथा पानी की कमी जैसे मुद्दों के समाधान तथा स्वास्थ्य से लेकर जैव-विविधता संरक्षण जैसे मुद्दों के बारे में चेतना फैलाने के लिए स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं।

यह पुरस्कार समारोह, उन कारपेरेट संगठनों के प्रयासों को सम्मानित करने का एक श्रेष्ठ मंच है जिन्होंने सततता के मापदण्डों को समायोजित करने के लिए अपने व्यावसायिक मॉडलों को अनुकूलित किया है। मैं इस अवसर पर, सी आई आई आई टी सी, सततता विकास उत्कृष्टता केंद्र तथा आई टी सी दोनों की, इस नई पहल हेतु अथक प्रयास करने और समर्थन देने के लिए सराहना करता हूं।

मैं इस कठिन पथ को अपनाने वाले सभी विजेताओं को बधाई देता हूं। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि आपने जिस पथ को चुना है, वह अवसरों से भी भरपूर है। परंतु इन अवसरों को हासिल करने के लिए, आपको भावी पीढ़ियों का ध्यान रखते हुए, चिंतन करना है, सृजन करना है और इसे सुलभ करवाना है। सम्मानों से सततता के मुद्दे को हमारे ध्यान में लाने में मदद मिलती है। लेकिन हमारे उद्योग को अपने भीतर यह विश्वास जगाना जरूरी है कि व्यवसाय के लिए मूल्य सृजन अनिवार्य है परंतु उन्हें समाज और पर्यावरण के प्रति हमारी चिंता से अलग नहीं रखा जा सकता। मैं भारतीय उद्योग से आग्रह करता हूं कि वह इस सततता आंदोलन का भाग बनें और सच्चे राष्ट्र निर्माण में सहभागी बनें। मैं स्वर्गीय प्रो. सी.के. प्रह्लाद के इन शब्दों के साथ अपनी बात समाप्त करता हूं, उन्होंने कहा था, ‘‘उद्यमितापूर्ण बनने के लिए बड़ी कंपनियों को, अपने संसाधनों से कहीं बड़ी आकाक्षाएं पैदा करनी होंगी।’’

धन्यवाद, 
जय हिंद!

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