प्रथम इंजीनियर कॉन्क्लेव-2013 के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 17.09.2013
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हमारे देश में प्रथम बार आयोजित किए जा रहे इंजीनियर कॉन्क्लेव-2013 का उद्घाटन करने के लिए यहां उपस्थित होकर मुझे प्रसन्नता हो रही है। मुझे देश भर के उन सर्वोच्च इंजीनियरों और प्रौद्योगिकीविदों के बीच आकर खुशी हो रही है जो इंजीनियरी और प्रौद्योगिकी के विविध क्षेत्रों में नवान्वेषी विचारों तथा अनुसंधान और विकास के आदान-प्रदान के लिए एकत्रित हुए हैं।
यह समीचीन है कि देश की उच्चतम इंजीनियरी अकादमी, भारतीय राष्ट्रीय इंजीनियरी अकादमी तथा हमारे अग्रणी अनुसंधान संगठन, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन द्वारा संयुक्त रूप से वर्तमान कॉन्क्लेव आयोजित किया जा रहा है। ‘एयरोस्पेस प्रणालियों का विनिर्माण’ तथा ‘इंजीनियरी प्रयासों के माध्यम से सुंदरवन का कायापलट’ दोनों विषय उचित और सामयिक हैं।
इंजीनियर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे मौलिक विज्ञान की जानकारी को उत्पाद में बदलते हैं। वे ऐसी बहुमुखी प्रतिभाएं हैं जो विज्ञान, प्रौद्योगिकी और समाज के बीच सेतु का निर्माण करते हैं। इंजीनियर राष्ट्र की प्रौद्योगिकीय और औद्योगिक प्रगति में योगदान देते हैं। वे जनसाधारण के जीवन की परिस्थितियों को सुधारने में मदद करते हैं। विविध क्षेत्रों में हमारी उपब्धियों के आधार पर, भारत का 21वीं शताब्दी में एक अग्रणी राष्ट्र के तौर पर उदय होने वाला है। हमारे वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की नवान्वेषण क्षमता इस यह लक्ष्य की प्राप्ति में भारत को सक्षम बनाने की प्रमुख भूमिका निभाएंगे।
यह कॉन्क्लेव ऐसे समय में हो रहा है जब दुनिया वैश्विक आर्थिक संकट से उभरने लगी है। यद्यपि भारत के आर्थिक विकास में हाल के समय में गिरावट आई है परंतु मुझे विश्वास है कि हम इस मंदी को रोक लेंगे और इसे वापस उच्च विकास के पूर्व स्तर तक ले आएंगे।
मेरा मानना है कि हमारी मूल विकास गति प्रति व्यक्ति आय में निरंतर वृद्धि, मध्य वर्ग के उपभोक्ताओं के विस्तार तथा एक युवा और ऊर्जावान कार्यबल के कारण तीव्र बनी रहेगी। वास्तव में, सभी भागीदारों के मजबूत प्रयासों से यह प्रवृत्ति जारी रहेगी और वैश्विक अर्थव्यवस्था के पुन: उभरने पर हमें और तेजी से विकास करने में मदद मिलेगी।
क्रय शक्ति समता के आधार पर, भारत की अर्थव्यवस्था का आकार विश्व में तीसरा सबसे बड़ा है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान हमारे देश के द्वारा प्राप्त आधारभूत विकास दर विश्व में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की अन्य अधिकांश उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में अधिक लचीली रही है।
2012 से 2017 की पंचवर्षीय योजना अवधि के दौरान प्रतिवर्ष 9 प्रतिशत की विकास दर की परिकल्पना की गई है। इस स्तर पर आर्थिक विस्तार के लिए अनेक सहायक कारकों की जरूरत होती है जिनमें शिक्षा प्रमुख है। वर्षों के दौरान, हमने सभी स्तरों पर उत्तम शिक्षा प्रदान करने के लिए श्रेष्ठ शैक्षिक संस्थानों का एक ढांचा निर्मित किया है। उच शिक्षा क्षेत्र में, भारत में 659 डिग्री प्रदान करने वाले संस्थान और 33023 कॉलेज हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों की संख्या जो 2006-07 में 7 थी वह बढ़कर 2011-12 में 15 हो गई है। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों की संख्या जो 2006-07 में 20 थी, वह 2011-12 में बढ़कर 30 हो गई है। देश में उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश संख्या 2006-07 के 1.39 करोड़ से बढ़कर 2011-12 में 2.18 करोड़ हो गई है। इंजीनियरी में 2006-07 में कुल प्रवेश संख्या 13 प्रतिशत थी। यह संख्या तबसे बढ़कर 25 प्रतिशत हो गई है। इंजीनियरी में प्रवेश की वृद्धि दर जो ग्यारहवीं योजना अवधि के दौरान वार्षिक रूप से 25 प्रतिशत के नजदीक थी, वह व्यक्तिगत अध्ययन के किसी भी क्षेत्र में सर्वोच्च है।
तकनीकी शिक्षा, विशेषकर इंजीनियरी की गुणवत्ता में सुधार के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं। विज्ञान और इंजीनियरी के लिए विकसित आभासी प्रयोगशालाएं आरंभ की जा रही हैं। सरकार विश्व बैंक के सहयोग से, तकनीकी शिक्षा की गुणवत्ता सुधार के लिए त्रि-चरण कार्यक्रम चला रही है। 2002 से 2009 के प्रथम चरण में 127 इंजीनियरी संस्थान शामिल किए गए जबकि 2010 से 2014 के दूसरे चरण में लगभग 190 और इंजीनियरी संस्थान शामिल किए जाएंगे।
इंजीनियरी उद्योग भारत के प्रमुख विनिर्माण क्षेत्रों में से है। यह भारत के भारी और पूंजीगत सामान उद्योगों, एक विशाल ज्ञान भण्डार और स्पर्द्धात्मक लागत ढांचों के प्रमुख आधार के कारण कायम है। अवसंरचना विकास और औद्योगिक उत्पादन पर हमारे बल से क्षेत्र को प्रोत्साहन मिलेगा तथा मशीनरी और ऑटोमोटिव से लेकर विद्युत उपस्कर, इलेक्ट्रोनिक और उन्नत विनिर्माण में उत्पादों की उच्च मांग पैदा होगी।
भारत का इंजीनियरी उद्योग अन्तरक्षेत्रीय सम्बन्धों तथा सक्रिय सरकारी नीतियों से प्रेरित है। ऑटोमोटिव, इलेक्ट्रॉनिक, रासायनिक, पेट्रोकैमिकल आदि के लिए विशिष्ट नीतियों सहित प्रमुख उप क्षेत्रों को सहयोग देने के लिए विशेष पहल की गई हैं। देश भर में संकुलों और विकास गलियारों से प्रतिस्पर्द्धा सुगम हो गई है क्योंकि पुणे, चेन्नै और बेंगलुरु जैसे केंद्रों ने अपने उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों से वैश्विक सराहना प्राप्त की है।
अभिकल्पना, नए उत्पाद विकास तथा उत्पादन से बाजार तक क्षमताओं के लाभ के कारण भारत इंजीनियरी में सुदृढ़ सामर्थ्य प्राप्त है। विनिर्माण उद्योगों के लिए सेवा का विस्तार होने से, भारत सेवा क्षेत्र में अपनी क्षमता के कारण इंजीनियरी उद्योग में ज्ञान के योगदान में बड़ी भूमिका निभा सकता है। बड़ी संख्या में वैश्विक फर्में भारत में अपने अनुसंधान और विकास केंद्रों की स्थापना द्वारा इन लाभों का पहले से फायदा उठा रही हैं।
राष्ट्रीय विनिर्माण नीति, 2011 में वर्ष 2025 तक विनिर्माण क्षेत्र में 100 मिलियन अतिरिक्त नौकरियों के सृजन की परिकल्पना की गई है। यह उम्मीद है कि विनिर्माण का सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सा वर्ष 2022 तक 25 प्रतिशत तक बढ़ जाएगा। भारतीय उद्योग को उत्पादनकारी और प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिए, हमें बहुत से मोर्चों, मुख्य रूप से मानव कौशल, हार्डवेयर प्रौद्योगिकी, और ज्ञानपूर्ण आधार पर अपनी क्षमता बढ़ानी होगी।
मेरा यह पक्का विश्वास है कि गुणवत्ता और उत्पादकता की यात्रा में अभी एक और मील का पत्थर पार करना काफी है। लचीले स्वचलन, बहुस्थानीय उत्पादन, आस्थगित विशिष्ट निर्माण तथा प्रयोज्य फैक्ट्री जैसे नए प्रचालन मॉडलों पर विचार करने की आवश्यकता है।
इंजीनियरी को मानव संसाधनों, उपभोक्ताओं और विक्रेताओं तक पहुंच बनाते हुए जनकेंद्रित होना चाहिए। भारत के कुल रोजगार में विनिर्माण का योगदान लगभग 11 प्रतिशत है, जो बहुत से उन उभरते हुए देशों की तुलना में कम है, जहां विनिर्माण का कुल रोजगार में हिस्सा 15 से 30 प्रतिशत के बीच है।
नवान्वेषण विकास की प्रमुख प्रबंधकीय कार्यनीति है। हमें प्रक्रिया नवान्वेषण, उत्पाद नवान्वेषण, कारोबार मॉडल नवान्वेषण और नई प्रौद्योगिकी नवान्वेषण जैसे अनेक आयामों पर बल देना होगा। मशीनी औजारों की अभिकल्पना और निर्माण में मजबूत क्षमता विशेष रूप से आवश्यक है। उद्योग को इस महत्वाकांक्षा को आगे बढ़ाने के लिए विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों के साथ घनिष्ठ साझीदारियां बनानी चाहिए।
आज एक सतत् विकास मॉडल न केवल अनिवार्य है बल्कि यह औद्योगिक क्षेत्र के लिए नए अवसरों को भी खोल रहा है। भारतीय उद्योग को कार्बन उत्सर्जन को कम करने और हरित प्रौद्योगिकियों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। सौर ऊर्जा और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा बाजार के और तेजी से बढ़ने की उम्मीद है। हरित भवन, जैव ईंधन जैसे हरित उत्पाद तथा नैनो टेक्नोलॉजी और आर्टीफिसियल इंटेलीजेंस जैसी हरित प्रौद्योगिकियों में अवसर खोजे जाने चाहिए।
हमारे देश में एक विशाल जनसंख्या गांवों में रहती है और ग्रामीण क्षेत्रों में विशिष्ट प्रौद्योगिकी नवान्वेषण की जरूरत है। एक ऐसा ही नवान्वेषण जिसने बदलाव पैदा कर दिया वह थी तीन दशक पहले बैलगाड़ी में लकड़ी के पहियों के स्थान पर रबड़ के टायर लगाना। यह रातों-रात दक्षिण से उत्तर और पूरब से पश्चिम तक हो गया और किसी को जानकारी नहीं है कि इसे किसने शुरू किया। यह सरल प्रौद्योगिकी थी जिसे अमल में लाया गया और इससे बैलगाड़ी की क्षमता कई गुना बढ़ाने में मदद मिली। हमारे देश को ऐसे सैकड़ों नवान्वेषण करने की आवश्यकता है जो ग्रामीण परिप्रेक्ष्य में सरल और सतत् हैं। पश्चिम में निर्मित कृषि औजारों की बजाय हमें ऐसे औजारों की जरूरत है जो आसान हों, जिनकी मरम्मत स्थानीय तकनीशियनों द्वारा की जा सके और जिनका प्रयोग बिना बिजली के किया जा सके।
यदि आज आप किसी आम आदमी से पूछें कि इंजीनियरों की हमारे जीवन में क्या भूमिका है; वह कहेगा कि एक साइकिल या मोबाइल फोन या कोई बिजली में। आप उससे आगे पूछेंगे कि भारतीय इंजीनियरों की आपके जीवन में क्या भूमिका है, वह भ्रमित हो जाएगा और जवाब ढूंढ़ने लगेगा। इसका कारण यह है कि भारतीय इंजीनियरों की उपलब्धियां पूरी तरह जमीनी स्तर तक नहीं पहुंची हैं तथा सामान्य जन के जीवन को प्रभावित करने वाली संभावना अभी पूरी तरह खोजी जानी शेष है।
मैं कामना करता हूं कि आपका विचार-विमर्श सफल रहे और मैं यहां सामने आए विचारों के व्यवहार में बदलने की उम्मीद करता हूं। वर्तमान चुनौतियों से ऊपर उठें और स्वयं को सुदृढ़ भारत के निर्माण के प्रति समर्पित कर दें। मुझे भारत के इंजीनियर समुदाय से पूरी आशा है और मैं आपसे अपने देश के भविष्य को संवारने में अग्रणी रहने का आग्रह करता हूं।
धन्यवाद।
जय हिन्द।