किंग जॉर्ज आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
लखनऊ, उत्तर प्रदेश : 12.10.2012
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उत्तर प्रदेश के राज्यपाल, श्री बी.एल. जोशी और मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने जिस गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया है, इसके लिए मैं उनको धन्यवाद देता हूं। उत्तर प्रदेश मेरे लिए कोई नई जगह नहीं है परंतु वर्तमान दायित्व ग्रहण करने के बाद यह उत्तर प्रदेश की मेरी पहली यात्रा है।
इस अवसर पर, मैं इस क्षेत्र के गौरवपूर्ण इतिहास को याद करना चाहता हूं। जैसे-जैसे मैं उन महान पुरुषों एवं महिलाओं का स्मरण करता हूं जो इस क्षेत्र में कार्यरत रहे हैं, तो मैं खुद को बहुत छोटा महसूस करने लगता हूं।
यह वह भूमि है जिसने वाल्मीकि, व्यास, तुलसीदास, सूरदास तथा भृगु जैसे रचनाकारों को प्रेरित किया और उन्होंने अपने विचारों को यहीं अभिव्यक्ति दी। मौजूदा समय में लौटें तो हमारे स्वतंत्रता संग्राम और आजादी के आंदोलन के शिखर पुरुष इसी धरती पर पैदा हुए। इस अवसर पर हमें याद करना होगा कि यहीं पर ‘स्वराज’ के नारे सबसे पहले मुखरित हुए थे, संविधान का पहला मसौदा यहीं पारित हुआ था तथा स्वशासन की ओर शुरुआती कदम भी यहीं उठाए गए थे। यहीं नजदीक ही नैनी में, स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान मोतीलाल नेहरू, पं. जवाहरलाल नेहरू, गोविंद बल्लभ पंत और ऱफी अहमद किदवई जैसे अन्य बहुत से स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कैद करके रखे गए थे।
यही भूमि सुश्रुत की भी जन्मस्थली है जो ‘शल्य चिकित्सा के जनक’ हैं और जिनके मौलिक योगदान ने आयुर्वेद के प्राचीन विज्ञान को समृद्ध किया है। वे गंगा नदी के तट पर, आज की वाराणसी वाले इलाके में निवास करते थे, शिक्षा देते थे तथा उपचार करते थे।
विशिष्ट अतिथिगण एवं प्यारे विद्यार्थियो,
मैं इसे अपना सौभाग्य समझता हूं कि मुझे इस प्रख्यात विश्वविद्यालय के आठवें दीक्षांत समारोह में भाग लेने का अवसर मिला है। किंग जॉर्ज आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय ने, जो अब तक 100 वर्ष से अधिक पुराना हो चुका है, न केवल भारत में बल्कि विश्व भर में चिकित्सा सेवा, शिक्षण तथा अनुसंधान के क्षेत्र में नाम कमाया है।
मैं जब भी अपने देश के युवाओं से मिलता हूं तो मैं सदैव बहुत उत्साहित तथा ऊर्जावान महसूस करता हूं क्योंकि मेरा यह विश्वास और भी मजबूत हो जाता है कि भारत का भािवष्य सुरक्षित हाथों में है। आप सभी, जो आज उपाधियां तथा पुरस्कार प्राप्त कर रहे हैं, हमारे देश के सबसे अच्छे और प्रतिभाशाली लोग हैं। आज का दीक्षांत समारोह आपके जीवन के एक चरण का अंत है परंतु इससे कहीं अधिक यह एक ऐसे दूसरे चरण की शुरुआत है जहां आप न केवल अपने पेशेवर उत्कृष्टता के क्षेत्र में अपने लिए स्थान बनाएंगे बल्कि फिर से उत्थान की ओर अग्रसर भारत की उम्मीदों, आकांक्षाओं तथा स्वप्नों के भी वाहक होंगे।
भारत ने, आजादी के बाद बहुत तरक्की की है। कृषि, उद्योग, व्यापार, रक्षा, अंतरिक्ष तथा परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में हमारी उपलब्धियां विशिष्ट हैं। दुनिया भर में हमें अपने प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों, चिकित्सिकों तथा सूचना प्रौद्योगिकी पेशेवरों के लिए जाना जाता है। हमारी, तेजी से प्रगतिशील अर्थव्यवस्था तथा राज्य की लोकतांत्रिक संस्थाओं के साथ, जो कि समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं, हम एक अग्रणी आर्थिक शक्ति बनने की दिशा में अग्रसर हैं। परंतु इससे पहले कि हम यह दावा सही मायने में कर सकें कि हम अपने लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाने में कामयाब हुए हैं, हमें बहुत सी चुनौतियों का सामना करना है तथा बहुत सी लड़ाइयों पर विजय प्राप्त करनी है।
सभी के लिए स्वास्थ्य सेवा एक ऐसी ही चुनौती है और इसलिए सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। ग्यारहवीं योजना से यह पता चलता है कि यद्यपि भारत में स्वास्थ्य पर व्यय, सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 5 प्रतिशत था परंतु स्वास्थ्य सेवाओं की निजी, विशेषकर परिवार के अपने जेब से खर्च पर निर्भरता बहुत अधिक थी और यह अनुपात बहुत असंतुलित था। इससे स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में एक विषम असंतुलन का पता चलता है जो कि सरकारी क्षेत्र द्वारा बुनियादी स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने में खामी के कारण पैदा होता है। वर्ष 2005 में शुरू किए गए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन में ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य अवसंरचना को मजबूत करने का लक्ष्य रखा गया था। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, ग्यारहवीं योजना अवधि के अंत तक सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खर्च सकल घरेलू उत्पाद के 1.4 प्रतिशत तक पहुंचने की उम्मीद है। हम चाहते हैं कि बारहवीं योजना अवधि के अंत तक सार्वजनिक स्वास्थ्य पर व्यय बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद के 2.5 प्रतिशत तक कर दिया जाए।
स्वास्थ्य सेवाओं में, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में अपर्याप्तता का कारण भौतिक अवसरंचना की कमी और मानव संसाधन की कमी दोनों ही हैं। भारत में प्रति 1000 व्यक्तियों पर केवल 0.6 चिकित्सक हैं तथा नर्सें और मिडवाइफ प्रति हजार व्यक्तियों पर केवल 1.30 हैं जो दोनों मिलाकर प्रति 1000 व्यक्तियों पर 1.9 स्वास्थ्य कर्मी बैठता है और इससे पता चलता है कि हमारे यहां स्वास्थ्य कर्मियों की अत्यधिक कमी है। इसके अलावा, स्वास्थ्य कर्मियों के असमान वितरण के कारण ग्रामीण, जनजातीय तथा पहाड़ी क्षेत्रों की सुविधाहीन जनता को यह सुविधा ठीक तरह से नहीं मिल पाती।
अत: हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि चिकित्सकों, नर्सों तथा पैरामेडिकल कार्मिकों को शिक्षित करने वाले संस्थानों में बड़े पैमाने पर बढ़ोतरी की जाए। आयुष को एकीकृत करके परंपरागत चिकित्सा प्रदाताओं की क्षमता में वृद्धि का जो प्रयास चल रहा है उसे सशक्त करने की जरूरत है। अच्छी परंपरागत स्वास्थ्य पद्धतियां तथा स्थानीय उपचारों को भी प्रोत्साहित करने की जरूरत है।
केंद्र सरकार भी राज्य सरकारों को सरकारी आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालयों के उच्चीकरण के लिए वित्तीय सहायता प्रदान कर रही है ताकि वे स्नातकोत्तर स्तर के और प्रशिक्षणार्थियों को प्रवेश दे सकें और नए स्नातकोत्तर विभाग खोल सकें। दूरवर्ती शिक्षा और ग्रामीण क्षेत्रों में विस्तार सेवा को प्रोत्साहन देकर उसे लोकप्रिय बनाया जाना चाहिए। गैर-सरकारी संगठनों तथा निजी क्षेत्र के उद्यमियों को भी हम क्षेत्र में उत्तरदायित्व लेने तथा अपना योगदान देने के लिए अपने सहयोग को बढ़ाना होगा।
अपनी बड़ी भारी जनसंख्या के लिए मौजूदा तथा नई-नई स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने के लिए कारगर एवं सतत् उपाय तलाशने की भी जरूरत है। इसके लिए रोकथाम, उपचार तथा पुनर्वास के क्षेत्र में नवान्वेषणों की जरूरत होगी। अपनी जनता, खासकर निर्धनों के स्वास्थ्य में सुधार के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की सीमाओं में विस्तार करना होगा।
स्वास्थ्य तथा स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के क्षेत्र में प्रगति के केंद्र में लोगों को रखा जाना चाहिए। देश के स्वास्थ्य सेक्टर में जो नई चुनौतियां हैं, वे इस संस्थान के लिए, राष्ट्र निर्माण में योगदान देने के भी अवसर हैं। इस संस्थान की उत्कृष्टता का लाभ केवल लखनऊ को ही नहीं मिलना चाहिए परंतु उसे राज्य भर के उन सभी लाखों लोगों तक पहुंचना चाहिए जो कि गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा की समतापूर्ण प्राप्ति के लिए प्रयासरत् हैं।
मित्रो, गांधी जी, जिन्होंने खुद अपने उदाहरण से शिक्षा दी थी, ने कहा था, ‘‘जो सेवा बिना खुशी के दी जाती है, उससे न तो सेवा देने वाले का भला होता है और न ही उसका जिसको सेवा दी गई है। जो सेवा खुशी के साथ प्रदान की जाती है, उसके सामने अन्य सभी विलासताएं और संपत्तियां फीकी पड़ जाती हैं।’’
मैं इन्हीं विचारों को आपके बीच छोड़ते हुए सभी विद्यार्थियों और पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं को उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएं देता हूं। मैं प्रोफेसर प्रेम पुरी तथा सुरेन्द्र के. वर्मा को भी इस पेशे में विशिष्ट योगदान तथा मानवता की सेवा के लिए, इस प्रख्यात विश्वविद्यालय से डीएससी की मानद उपाधि प्राप्त करने के लिए बधाई देता हूं। मुझे विश्वास है कि आप अच्छे मनुष्य बनने का प्रयास करेंगे क्योंकि तभी आप अच्छे चिकित्सक बन सकेंगे और प्रसन्नता, शांति और उद्देश्य से परिपूर्ण जीवन की रचना कर सकेंगे।
धन्यवाद,
जय हिंद।