जनजातीय अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान के स्वर्ण जयंती समारोह के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

पुणे, महाराष्ट्र : 28.12.2013

डाउनलोड : भाषण जनजातीय अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान के स्वर्ण जयंती समारोह के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण(हिन्दी, 233.81 किलोबाइट)

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1. मुझे महाराष्ट्र सरकार के जनजातीय अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान के स्वर्ण जयंती समारोह में आज शाम आपके बीच उपस्थित होकर प्रसन्नता हुई है। किसी भी संस्थान के जीवनकाल में पचास वर्ष कोई बड़ी लम्बी अवधि नहीं है परंतु यह विचार करने के लिए काफी है कि हमने कहां से शुरुआत की, आज हम कहां हैं और भविष्य के लिए क्या योजनाएं और कार्यक्रम बनाए जाएं। इस दृष्टिकोण से, मैं जनजातीय कल्याण के कार्य में लगे हुए एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव हासिल करने के लिए इस संस्थान को बधाई देता हूं। इस संगठन ने जनजातीय विकास के लिए नीतियां और कार्यक्रम तैयार करने के लिए राज्य सरकार को आवश्यक सूचना प्रदान की है।

2. जनजातीय कल्याण के लिए हमारी नीति प्रथम बार पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा घोषित सिद्धांतों पर स्थापित है। उन सिद्धांतों का मूल आधार जनजातीय समाज की समृद्ध और विविध सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के साथ-साथ मानव विकास है। जनजातीय कल्याण का विचार केवल आर्थिक प्रगति के जरिए जनजातीय समुदायों का विकास ही नहीं है बल्कि सर्वांगीण रहन-सहन को बढ़ावा देने वाली जीवनशैली की एक व्यापक अवधारणा है। जनजातीय समुदायों को प्राकृतिक संसाधनों का विदोहन किए बिना प्रकृति के साथ सहजीवी सम्बन्ध कायम रखने की परंपरा के लिए जाना जाता है। मुझे जनजातीय परम्पराओं और प्रथाओं के प्रलेखन में इस संस्थान द्वारा की गई पहल के बारे में जानकर प्रसन्नता हुई है।

देवियो और सज्जनो,

3. अपनी समृद्ध विरासत के बावजूद, जनजातीय समाज भौगोलिक अलगाव के कारण अपेक्षाकृत ‘समय की रुकी हुई गति’ में रहा है। हमारे स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं ने सामाजिक आर्थिक उत्थान, जिसके बिना राजनीतिक स्वतंत्रता निरर्थक थी, के पथ पर प्रत्येक भारतीय को ले जाने की पूर्ण आवश्यकता को समझा। ठक्कर बापा ने ‘आदिवासी’ शब्द गढ़ा, जिसे जनजातीय समाजों के सम्मान के रूप में महात्मा गांधी ने स्वीकार किया। गांधी की हिंद स्वराज की संकल्पना में आदिवासी उनके रचनात्मक कार्यक्रम के अठारह तत्त्वों में से एक था। स्वतंत्रता के बाद, सकारात्मक नीतियों के जरिए जनजातीय जनसंख्या के उत्थान के लिए संविधान में समता का सिद्धांत समाहित किया गया।

4. संविधान के तिहत्तरवें संशोधन में, निर्णय करने और स्वशासन में जनजातीय गांवों और टोलों की ग्राम सभाओं को विशेष अधिकार दिए गए। मुझे बताया गया है कि राज्य के जनजातीय इलाकों के संरक्षक के तौर पर अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों के निर्वहन में महाराष्ट्र के राज्यपाल की मदद के लिए, राज भवन में एक जनजातीय प्रकोष्ठ स्थापित किया गया है। इस अग्रणी कदम से जनजातीय इलाकों में कार्यरत संस्थाओं के संचालन की क्षमता के विकास पर और ध्यान दिया जा सकेगा। इसी प्रकार, इससे जनजातीय लोगों के संवैधानिक और कानूनी अधिकारों की रक्षा करने में सहायता मिलेगी।

5. संयुक्त वन प्रबंधन समितियों ने अक्सर जनजातीय लोगों को पिछड़ा और अभावग्रस्त बनाने वाले वन संसाधनों के दोहन को समाप्त करने में प्रमुख भूमिका निभाई है। इन समितियों ने वन निवासियों को समुदाय के नेतृत्व में वृक्षारोपण और संरक्षण का प्रमुख हिस्सेदार बनाने में काफी सफलता हासिल की है। भारत सरकार ने गौण वन उत्पाद के संवर्धन और संग्रहण के लिए वनवासियों के पारंपरिक अधिकारों को मान्यता देने के लिए वन अधिकार अधिनियम भी लागू किया है। यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि इस अधिनियम के तहत महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के 450 लोगों का एक छोटा सा गांव, मेंढ़ा-लेखा पिछले वर्ष बांस के सामुदायिक वन अधिकार प्राप्त करने वाला देश का पहला गांव बन गया है। गांव और जनजातीय लोगों के लिए आय अर्जन के द्वारा इस अधिकार का मुद्रीकरण हो गया है। मैं महाराष्ट्र के राज्यपाल और मुख्यमंत्री को इस ऐतिहासिक घटना में व्यक्तिगत प्रयास के लिए बधाई देता हूं।

देवियो और सज्जनो,

6. सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण की दिशा में हमारे बहुआयामी उपायों का जनजातीय क्षेत्रों पर हितकारी प्रभाव पड़ा है। इसके बावजूद बहुत से जनजातीय विकास खंड मानव विकास सूचकांकों पर काफी निचले पायदान पर हैं। जनजातीय विकास प्रशासन में जीवन बचाने के मुद्दों को प्राथमिकता देने के अलावा मानव विकास पर भी ध्यान देना होगा। सेवाओं की कारगर सुपुर्दगी सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न विभागों तथा एजेंसियों के बीच समन्वय की व्यवस्था होनी चाहिए। समन्वित जनजातीय विकास परियोजनाओं को वित्तीय तथा प्रशासनिक रूप से पूर्ण सशक्त बनाना होगा ताकि वे वास्तविक रूप से बदलाव के कारक बन सकें। इसके लिए कारगर कार्यान्वयन तथा जनजातीय लाभों को दरवाजे तक पहुंचाना सुनिश्चित करना होगा। इन स्कीमों और कार्यक्रमों की पहुंच में सुधार के लिए सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का व्यापक रूप से प्रयोग करना होगा।

7. जनजातीय विकास कार्यक्रमों के लाभ मूल जनजातीय लोगों तक निश्चित रूप से पहुंचाने के लिए, किसी समूह को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने से पहले पूरी जांच-पड़ताल की जानी चाहिए। यह संस्थान अपने एक प्रमुख कामकाज के रूप में, किसी समूह की जनजातीय विशेषताओं को निर्धारित करने के लिए ठोस नृवैज्ञानिक सिद्धांतों का प्रयोग कर रहा है। मैं, जनजातीय लोगों के लाभों के फायदे उठाने से अप्रामाणिक समूहों को रोकने के लिए इस संस्थान के अंतर्गत अर्द्ध न्यायिक ‘जनजाति वैधता जांच समितियां’ स्थापित करने हेतु महाराष्ट्र द्वारा उठाए गए प्रगतिशील कदम से भी परिचित हूं।

देवियो और सज्जनो,

8. हमारी अत्यावश्यक प्राथमिकताओं के रूप में जनजातीय विकास के अंतर्गत, मौजूदा संस्थाओं को मजबूत करने की जरूरत पर बल दिया गया है। इसमें जनजातीय आबादी के मानवीय विकासात्मक मापदंडों में सुधार करने के लिए जनजातीय क्षेत्रों के विकास तथा प्रशासन में खामियों पर ध्यान देने पर भी बल दिया गया है। जनजातीय विकास पर बहुत से राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय संगठन कार्य कर रहे हैं। उपलब्ध संसाधनों का सदुपयोग करने के लिए नीतिगत स्तर पर व्यापक समन्वय बनाने की जरूरत है।

9. मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि जनजातीय अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान के लिए स्वायत्त दर्जे की परिकल्पना की जा रही है। इस संस्थान को, जनजातीय विकास पर कार्यरत विभिन्न अनुसंधान संगठनों के बीच सम्बन्धों को बढ़ावा देना चाहिए और अनुसंधान क्षेत्रों को प्राथमिकता प्रदान करनी चाहिए। जनजातीय लोगों के किसी भी शोषण की आशंका को कम करने के लिए सांविधिक प्रावधानों को प्रभावी रूप से लागू करने हेतु जनजातीय प्रथा सम्बन्धी कानूनों की संहिताबद्ध किया जाना चाहिए। प्रशासन को जनजातीय विकास कार्यक्रमों के कार्यान्वयन पर सलाह देने के लिए आवधिक मूल्यांकन रिपोर्टें प्रकाशित करनी चाहिए। आपके जैसे और अधिक संस्थानों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। जनजातीय मुद्दों के अध्ययन के लिए अनुसंधान संगठनों के कोष को बढ़ाना चाहिए। इससे जनजातीय विकास योजना को व्यवस्थित और प्राथमिक बनाने में मदद मिलेगी।

10. निष्कर्ष रूप से, मैं यह कहना चाहूंगा कि जनजातीय समाजों से बहुत कुछ सीखा जाना और समझा जाना बाकी है। ऐसे समय में जब पूरा देश महिला सुरक्षा और हिफाजत के प्रति चिंताओं और नैतिक चुनौतियों का सामना कर रहा है; जनजातीय समुदायों के लैंगिक व्यवहार और सम्बन्धों पर नज़र डालने से पूरे समाज को महत्त्वपूर्ण शिक्षा मिल सकती है। जनजातीय लोगों से सीख लेते हुए विभिन्न जनजातीय वर्गों को सशक्त बनाने तथा ‘हम भारत के लोग’ के भारत के संविधान के निर्देशक जज्बे में अपना योगदान देने का हम पर दायित्व है। मैं, एक बार फिर इस ऐतिहासिक अवसर पर जनजातीय अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान की सराहना करता हूं और उन्हें भावी यात्रा के लिए शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद।

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