इन्डियन न्यूजपेपर सोसाइटी के प्लेटिनम जयंती समारोह के उद्घाटन के अवसर परभारत के राष्ट्रपति,श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
नई दिल्ली : 27.02.2014
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देवियो और सज्जनो,
इन्डियन न्यूजपेपर सोसाइटी के प्लेटिनम जयंती समारोह के उद्घाटन के अवसर पर आज आपके बीच उपस्थित होना वास्तव में मेरे लिए सौभाग्य की बात है। मैं आपको हार्दिक बधाई देता हूं। यह आप सभी और वास्तव में सभी भारतीयों के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इन्डियन न्यूजपेपर सोसाइटी ने वर्षों के दौरान समय की चुनौतियां पूर्ण की हैं क्योंकि इसने भारत के सबसे प्रभावशाली समाचारपत्रों और पत्रिकाओं का प्रतिनिधित्व किया है।&
पचहत्तर वर्ष पूर्व विश्व पूरी तरह से अलग तरह का स्थान था। हमारे देश को राष्ट्रों की श्रेणी में अपना स्थान बनाना था। लाखों भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल थे। आपकी सोसाइटी द्वितीय विश्वयुद्ध के अवसर पर अस्तित्व में आई। तत्कालीन समाचारपत्र न केवल युद्ध से पैदा हुए अभाव के बावजूद जीवित रहे बल्कि वे लोगों को हमारे इतिहास के संघर्षपूर्ण काल की महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में जानकारी देने का कठिन कार्य भी करते रहे। इसके संस्थापकों ने ऐसे समाज का निर्माण करने के लिए संकल्प, संकल्पना और नियति की भावना से कार्य किया जो इसके सदस्यों के साझे हित के मुद्दों को उठा सकें। इन्डियन न्यूजपेपर सोसाइटी यह गर्व भी कर सकती है कि इसने प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया तथा ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन जैसे संस्थानों के निर्माण और प्रोत्साहन में मदद की। इन्डियन न्यूजपेपर सोसाइटी के सदस्यों ने हमारे लोकतंत्र के महत्वपूर्ण घटक, एक मुक्त प्रेस के पोषण में अहम भूमिका निभाई है।
वर्षों के दौरान, इंन्डियन न्यूजपेपर सोसाइटी के सदस्यों ने समाज को जागरूक किया है और ऐसे महत्वपूर्ण प्रश्नों पर परिचर्चा को बढ़ावा दिया है जो हमारे समाज के सामने आते रहे हैं। चाहे युद्ध अथवा मानव निर्मित बंगाल के अकाल से उत्पन्न विभीषिका हो या बंटवारे द्वारा छिन्न-भिन्न राष्ट्र की तकलीफ और पीड़ा हो या आधुनिक भारत का निर्माण हो, समाचारपत्रों ने भारतीयों को शिक्षित करने तथा हमारे समाज में विचारों की विविधता को अभिव्यक्ति देने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है और इस प्रकार भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को कायम रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
हमारे देश की मीडिया की बहुलता की जड़ें स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी हैं। भारत में प्रेस सरकार की छत्र-छाया में नहीं बल्कि उन व्यक्तियों के समर्पण की वजह से पनपा जिन्होंने थोपे गए विचारों के विरुद्ध लड़ाई के माध्यम के रूप में तथा देश भर में सामाजिक सुधार आंदोलन के लिए मंच के निर्माण के लिए इसका प्रयोग किया। यह गौरव का विषय है कि 1780 और 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बीच, लगभग प्रत्येक भारतीय भाषा में 120 से ज्यादा समाचारपत्र और पत्रिकाओं का प्रकाशन आरंभ हुआ। इसमें से प्रत्येक प्रकाशन ने लोकतंत्र के आदर्शों को जन-जन के द्वार तक ले जाने तथा स्वतंत्रता का संदेश फैलाने का संकल्प लिया। ;
देवियो और सज्जनो,
मीडिया परिदृश्य में बदलाव आने के कारण, मीडिया ने लोकतांत्रिक संस्थानों और प्रक्रियाओं के सुविधाप्रदाता, संरक्षक और सहायक की विभिन्न भूमिकाएं अपनई हैं। हमारा विशाल, विविध और जीवंत मीडिया राष्ट्रीय संपत्ति है। मीडिया कुल मिलाकर न केवल लोगों को सूचना प्रदान करता है बल्कि नीति निर्माण और कार्यान्वयन के क्षेत्र में विचारों और विकल्पों की प्रस्तुति का अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य भी करता है। इसलिए मीडिया न केवल ‘लोकतंत्र के संवाद’ की रिपोर्ट देकर बल्कि इस संवाद में एक सक्रिय भाग लेकर कार्यशील सक्रिय लोकतंत्र के ढांचे का महत्वपूर्ण घटक बन गया है।
अब जब भारत 21वीं सदी में प्रगति कर रहा है, मीडिया का इस देश के दुर्गम क्षेत्रों और पिछड़ी हुई आबादी तक पहुंचना बहुत जरूरी है। यह आवश्यक है कि मीडिया, समावेशी विकास की अवधारणा पैदा करने के लिए अनुकूल वातावरण मुहैया करवाए तथा संचार के विभिन्न साधन सकारात्मक, सटीक और संकेंद्रित परिप्रेक्ष्यों में ‘भारत गाथा’ का प्रचार-प्रसार करे।
मित्रो,
यद्यपि विश्वभर में, बहुत से प्रख्यात समाचारपत्र और पत्रिकाएं छपनी बंद हो गई हैं, विश्व के सबसे विशाल समाचारपत्र उद्योगों में से एक हमारा यह उद्योग बढ़ता जा रहा है। 90 मिलियन से ज्यादा प्रतियों के वितरण वाले भारतीय समाचारपत्रों के बाजार के 10 प्रतिशत की वार्षिक विकास दर से बढ़ने तथा 2017 तक विश्व के छठे विशालतम समाचारपत्र बाजार के रूप में उभरने की उम्मीद है। बढ़ती हुई साक्षरता तथा प्रिंट मीडिया की कम उपलबध्ता और इन बाजारों का लाभ उठाने के इच्छुक विज्ञापनकर्ताओं की बढ़ती दिलचस्पी की पृष्ठभूमि में विशेषकर क्षेत्रीय और भाषायी प्रिंट क्षेत्र बढ़ रहा है। उद्योग सूत्रों के अनुसार, आज पिं्रंट मीडिया की मिश्रित बाजार मौजूदगी केवल 14 प्रतिशत है। इसलिए राष्ट्रीय परिदृश्य पर पाठकों के बढ़ने की बहुत संभावना है।
यह परिवर्तनशील समय है और समाचारपत्रों के लिए संभव नहीं है कि वे विचारों के विकास तथा प्रौद्योगिकी को अपनाने के परिणामों से खुद को अलग रख सकें। समाचारपत्रों के लिए आवश्यक है कि वे प्रौद्योगिकी की चुनौतियों के प्रति जागरूक रहें तथा अपने सम्मुख अवसरों का दायित्वपूर्ण प्रयोग करें।
भारत में प्रेस का इतिहास इस तथ्य का साक्षी है कि प्रवर्तकों ने मजबूत और विकासशील संस्थाएं और परंपराएं निर्मित कीं। यह आपकी विरासत है और आपको इसे आगे बढ़ाना है। समाचारपत्रों और पत्रिकाओं की सोसाइटी होने के नाते, आप पर मीडिया के कामकाज में ऐसे भटकावों को दूर करने की जिम्मेदारी है जो इसमें आ गए हों।
मैं, इस संबंध में ध्यान दिलाना चाहूंगा कि यह कष्टदायक है कि कुछ प्रकाशन अपनी आय बढ़ाने के लिए ‘पेड न्यूज’तथा अन्य ऐसी विपणन युक्तियों का सहारा ले रहे हैं। ऐसी दुष्प्रवृत्तियों की रोकथाम के लिए आत्मसुधार तंत्र की आवश्यकता है। सूचनाओं की ‘तीव्रता को कम’ करने के प्रलोभन से भी बचना चाहिए। राष्ट्र महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रहा है जो ‘ब्रेकिंग न्यूज’ तथा तात्कालिक सुर्खियों के दबाव से आगे हैं। जहां समाचारपत्रों को कारगर अन्वेषक होना चाहिए, वहीं उन्हें दूरद्रष्टा राष्ट्र निर्माता भी बनना होगा। आखिर आप क्रिस्टल की ऐसी गेंद हैं जिसे लाखों लोग ताकते हैं। यह सुनिश्चित करने की आपकी जिम्मेदारी और धर्म है कि विचारों पर निष्पक्षता से परिचर्चा हो तथा विचार बिना भय या निष्पक्ष व्यक्त किए जाएं ताकि अच्छी जानकारी वाले विचार सामने आ सकें।
मित्रो,
हमारे मीडिया का प्रभाव, विश्वसनीयता और गुणवत्ता प्रख्यात है। समाचारपत्रों को हमारे राष्ट्र की चेतना का वाहक होना चाहिए। उन्हें सभी नागरिकों के लिए न्याय और मौलिक स्वतंत्रता के प्रति समर्पित एक लोकतांत्रिक गणराज्य विकसित करने के हमारे निरंतर प्रयासों में सक्रिय भागीदार बनना चाहिए। पत्रकारों को भारी संख्या में हमारे लोगों को त्रस्त करने वाली अनेक बुराइयों और अभावों, चाहे वह कुपोषण, समाज के तबकों विशेषकर दलितों के विरुद्ध भेदभावपूर्ण प्रथाएं जारी रखने या कर्ज के बोझ और दु:खद परिणामों के बारे में हो, लोगों का ध्यान आकर्षित करना चाहिए। उन्हें समाचारों के तटस्थ और संतुलित कवरेज देते हुए लोकमत का निर्माण तथा उसे प्रभावित करना चाहिए।
मीडिया की, सार्वजनिक जीवन को स्वच्छ बनाने में एक अहम भूमिका है। परंतु इस भूमिका को निभाने के लिए, मीडिया का आचरण भी संदेह से परे होना चाहिए। यह हमेशा ध्यान में रखना चाहिए कि साधन और साध्य दोनों महत्वपूर्ण है। नैतिकता के सर्वोच्च मानदंड को सदैव कायम रखा जाना चाहिए। सनसनी को उद्देश्यपरक मूल्यांकन और सच्ची रिर्पोटिंग का विकल्प नहीं होना चाहिए। अफवाह और अनुमान तथ्यों का स्थान नहीं ले सकते। यह सुनिश्चित करने के लिए हर प्रयास होना चाहिए कि राजनीतिक या वाणिज्यिक हितों को वैध और स्वतंत्र राय के रूप में व्यक्त न किया जाए।
ईमानदारी और स्वतंत्रता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और हमारे मीडिया और हममें से हर एक के लिए दोनों का बराबर महत्व है। यह समझना होगा कि मीडिया समग्र रूप में अपने पाठकों और दर्शकों तथा उनके जरिए संपूर्ण राष्ट्र के प्रति जवाबदेह है।
चौथे स्तंभ के रूप में मीडिया, जनता और जन सेवकों के बीच मध्यस्थ है। यह जनहित का प्रहरी है। यह दबे-कुचलों और वंचितों की आवाज है। एक प्रहरी की भूमिका के रूप में स्वाभाविक है कि मीडिया गलत कार्य की ओर ध्यान आकृष्ट करता है। परंतु हताशा और अंधकार को समाचारों की कवरेज पर हावी नहीं होने देना चाहिए। सकारात्मकता को उजागर करने तथा बेहतरी के लिए बदलाव लाने के लिए एक जागरूक प्रयास आवश्यक है। मीडिया की ताकत को हमारे नैतिकता की दिशा का निर्धारण करने के लिए राष्ट्रव्यापी प्रयास से जोड़ा जाना चाहिए।
मैं, इन्डियन न्यूजपेपर सोसाइटी और इसके सदस्यों से आग्रह करता हूं कि वे दायित्वपूर्ण पत्रकारिता के मार्गदर्शक बनकर रहें। उन्हें हमेशा न्याय और समानता का स्वर, उम्मीद और तर्क का प्रवक्ता होना चाहिए।
अंत में, मैं आपको याद दिलाना चाहूंगा कि महात्मा गांधी हमारे राष्ट्र के एक सबसे सृजनशील तथा प्रभावशाली पत्रकार और प्रकाशक थे। पत्रकारिता पर उनके विचार अत्यंत विचारोत्तेजक हैं और उनसे हमारी मीडिया का पथप्रदर्शन होना चाहिए।
गांधी जी ने सत्य के मेरे प्रयोग में लिखा है:
‘पत्रकारिता का एकमात्र लक्ष्य सेवा होना चाहिए। अखबारी प्रेस एक महान शक्ति है परंतु जैसे जल का एक अनियंत्रित प्रवाह पूरे इलाके को जलमग्न कर देता है और फसलों को नष्ट कर देता है, इसी प्रकार अनियंत्रित कलम विनाश का कार्य करती है। यदि यह नियंत्रण बाहर से होगा तो यह नियंत्रण न होने से कहीं अधिक घातक होगा। यह तभी लाभदायक होगा जब यह नियंत्रण अंदर से हो’’।
उन्होंने आगे लिखा, ‘सप्ताह दर सप्ताह मैंने अपनी आत्मा इसके स्तंभों में उड़ेली है और जितना मैं जानता हूं मैंने सत्याग्रह के सिद्धांत और व्यवहार की व्याख्या की है। मुझे याद नहीं आता कि मैंने इन लेखों में बिना सोचे समझे या विचार के या जानबूझकर बढ़ाचढ़ा कर कोई शब्द या किसी के खुशामद करने के लिए कुछ लिखा है। वास्तव में, यह पत्रिका मेरे लिए आत्मसंयम का प्रशिक्षण तथा मेरे मित्रों के लिए ऐसा माध्यम बन गयी है जिसके जरिए वे मेरे विचारों के संपर्क में रहते हैं’’।
धन्यवाद,
जयहिन्द !