हरित डिजायन पर राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 14.02.2013
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मुझे, आज सुबह हरित डिजायन पर चौथे राष्ट्रीय सम्मेलन ‘गृह’ के उद्घाटन पर यहां आकर वास्तव में बहुत प्रसन्नता हो रही है।
देवियो और सज्जनो,
भारत की बढ़ती जनसंख्या और भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास तथा तेजी से शहरीकरण के कारण भवनों की मांग बहुत बढ़ गई है। जिसके परिणामस्वरूप, नए तथा मौजूदा भवनों में बिजली की मांग बहुत बढ़ गई है। इसी प्रकार पानी की उपलब्धता में कमी गंभीर चिंता का विषय है।
भवनों में काफी मात्रा में ऊर्जा की खपत होती है। 2011-12 में निर्माण सेक्टर का सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 7.8 प्रतिशत हिस्सा था। तथापि, केवल भवन सेक्टर द्वारा खपत की जा रही बिजली का हिस्सा, पूरे भारत में खपत की जा रही बिजली का लगभग 35 प्रतिशत है। योजना आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था की 9 प्रतिशत की विकास दर (बारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान) को प्राप्त करने के लिए ऊर्जा में प्रतिवर्ष 6.5 से 7 प्रतिशत के बीच वृद्धि होनी चाहिए। इसका तात्पर्य यह हुआ कि भारत को बारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 76000 मे.वा. ऊर्जा क्षमता (लगभग 15000 मे.वा. ऊर्जा क्षमता प्रति वर्ष) की अतिरिक्त वृद्धि करने की जरूरत होगी। यह कोई आसान काम नहीं है। अत: यह जरूरी है कि मांग प्रबंधन को प्राथमिक दी जाए। इसलिए भवन सेक्टर में बढ़ी हुई ऊर्जा दक्षता तथा नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग, इस बढ़ती ऊर्जा मांग पर नियंत्रण के लिए प्रमुख कार्य योजनाएं हैं।
सततता प्राप्त करने के लिए, संसाधनों की मांग और तेजी से परिवर्तित होती जलवायु के कारण नीति निर्माताओं को सभी स्तरों पर पर्यावरण पर पड़ने वाले दबावों का समाधान ढूंढना होगा। शहरी चुनौतियों का सामना करने के लिए कई नीतिगत तथा विनियामक व्यवस्थाएं शुरू की गई हैं और उनको राष्ट्रीय योजनाओं तथा कार्यक्रमों के माध्यम से क्रियान्वित किया जा रहा है। बड़ी परियोजनाओं के लिए संसाधनों के प्रयोग में दक्षता सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरण अनापत्ति प्रक्रिया निर्धारित की गई है। ऐसे वातानुकूलित वाणिज्यिक भवनों पर ऊर्जा संरक्षण भवन कोड लागू होता है, जिसका संयोजित विद्युत भार 100 कि.वा. से अधिक है तथा नामित राज्य एजेंसियों तथा नगर निकायों द्वारा कार्यान्वयन किए जाने के लिए ऊर्जा दक्ष भवनों हेतु सौर भवन कार्यक्रम तैयार कर लिया गया है। तथापि, इस विषय में अभी बहुत कुछ किया जाना है।
देवियो और सज्जनो,
हरित भवनों की अधिक लागत की काल्पनिक अवधारणा, अनुप्रयोग के संबंध में स्पष्टता का अभाव, विभिन्न संहिताओं और मानकों के एकीकरण और एकरूपता में कमी, अनुपालन के न होने पर हतोत्साहन का अभाव, भण्डारण कार्य में लगी एजेंसियों और प्रणालियों ने सतत् पर्यावासों के कार्यान्वयन में बाधाएं बढ़ाई हैं। सतत् पर्यावासों का व्यापक पैमाने पर कार्यान्वयन सुनिश्चित करने में संभावित लाभों के बारे में जागरूकता का अभाव भी एक प्रमुख बाधा है। यह जानकर खुशी होती है कि ‘गृह’ काफी हद तक इन मुद्दों और कमियों पर ध्यान दे रहा है।
यह अत्यावश्यक है कि जल और विद्युत उपलब्धता की संभावित चुनौतियों को देखते हुए, जिन राज्यों में अभी अधिकांश निर्माण कार्य होना है, उन्हें सतत पर्यावासों का निर्माण सुनिश्चित करना चाहिए। सभी केन्द्रीय मंत्रालयों को अपने-अपने सेक्टरों में इसे बढ़ावा देना चाहिए। केंद्रीय लोक निर्माण विभाग और राष्ट्रीय भवन निर्माण निगम लिमिटेड द्वारा ‘गृह’ को अपनाने से सार्वजनिक और निजी दोनों सेक्टरों को बड़े स्तर पर पर्यावरण अनुकूल भवन बनाने का प्रोत्साहन मिलेगा। शहरी निकायों को भी प्रोत्साहन और हतोत्साहन की शुरूआत करते हुए कुछ पहलुओं को अनिवार्य बना देना चाहिए ताकि विकासकर्ता इनका अनुपालन करें और बड़े मकान व परिसरों में इस पद्धति का अनुपालन किया जा सके।
मैं, भारत के स्वदेशी हरित भवन मूल्यांकन-प्रणाली गृह के विकास और कार्यान्वयन के लिए ऊर्जा और संसाधन संस्थान (टेरी) तथा नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, भारत सरकार को बधाई देता हूँ। मैं, पर्यावरणीय उत्तरदायित्त्च और ऊर्जा दक्षता के प्रदर्शन तथा अपने भवनों में नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण अपनाने के उल्लेखनीय प्रयासों के लिए सभी गृह पुरस्कार वितेजाओं को भी बधाई देता हूँ। मुझे उम्मीद है कि अन्य लोग भी इन भवनों से शुरू किए गए उदाहरणों का अनुकरण करेंगे और लाभ उठाएंगे।
देवियो और सज्जनो,
मैं इस सम्मेलन की सफलता के लिए अपनी शुभकामनाएं देता हूँ और उम्मीद करता हूं कि यहां हुए विचार विमर्श से ‘गृह’ के अनुरूप देश भर में सतत् पर्यावासों के निर्माण को प्रोत्साहन मिलेगा।
धन्यवाद,
जय हिंद!