भारतीय सिनेमा के शताब्दी समारोहों के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति,श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

चेन्नई,तमिलनाडु : 24.09.2013

डाउनलोड : भाषण भारतीय सिनेमा के शताब्दी समारोहों के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति,श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण(हिन्दी, 209.64 किलोबाइट)

Speech by the President of India, Shri Pranab Mukherjee on the Occasion of Centenary Celebrations of Indian Cinema भारतीय सिनेमा के शताब्दी समारोहों के अवसर पर,आप सबके बीच आकर मुझे बहुत खुशी हो रही है,जिसे तमिलनाडु सरकार और साउथ इंडियन फिल्म चैंबर ऑफ कॉमर्स द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया है।

भारतीय सिनेमा की इस लंबी यात्रा की शुरुआत,वर्ष 1913 में तब हुई जब,भारतीय सिनेमा के जनक,परंपरागत हिन्दू परिवार में पले-बढ़े,छोटे से गांव के एक धर्मपरायण व्यक्ति,दादा साहेब फाल्के ने अपनी पत्नी के गहने बेचकर एक पूर्ण लंबाई की फीचर फिल्म-राजा हरिश्चंद्र का निर्माण किया था। इसके उपरांत भारतीय सिनेमा की यात्रा इतनी शानदार रही कि आज हमारा फिल्म उद्योग विभिन्न क्षेत्रों और भाषाओं में जीवंत तथा समृद्ध नजर आता है।

भारतीय सिनेमा अब एक वैश्विक उद्यम बन चुका है। तेजी से बेहतर होती प्रौद्योगिकी ने इस उद्योग को खुद को उन्नत करने में सहायता दी है और इसके दर्शकों तक पहुँचने के तरीकों में भी भारी बदलाव किया है। भारतीय फिल्म निर्माण उद्योग विश्व के सबसे बड़े फिल्म निर्माण उद्योग में से है और भारतीय सिनेमा को बहुत से देशों में बाज़ार मिल चुके हैं। हमारे फिल्म निर्माताओं को बहुत से अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में अधिकाधिक सम्मान प्राप्त हो रहे हैं।

धीरे-धीरे भारतीय फिल्म उद्योग ने आधुनिकतम तकनीकें अपनाई हैं। भारतीय फिल्म उद्योग पहले ही डिजिटल कैमरे के माध्यम को अपना चुका है। देश में फिल्म निर्माण तथा निर्माणोपरांत सुविधाओं में भी काफी सुधार आया है तथा कुछ सुविधाएँ सही मायने में विश्वस्तरीय हैं। बहुत सी अंतरराष्ट्रीय निर्माण संस्थानों ने हमारे फिल्म उद्योग में गहरी रुचि दिखाई है तथा कई भारतीय फिल्म उद्यम दुनिया भर में फिल्म निर्माण और वितरण में भागीदारी कर रहे हैं । कहने की जरूरत नहीं कि भारतीय सिनेमा का संगीत भारत और विदेशों में लाखों लोगों को सम्मोहित कर रहा है।

दक्षिणी फिल्म उद्योग ने भारतीय फिल्म उद्योग की प्रगति में महती भूमिका निभाई है। आज यदि हम,श्री एम.जी.रामचंद्रन,शिवाजी गणेशन,एन.टी.रामाराव,प्रेम नज़ीर,डॉ.राजकुमार,एस.एस.वासन,नागी रेड्डी एल.वी प्रसाद आदि बहुत सी दक्षिण भारतीय सिनेमा की महान विभूतियों को याद नहीं करेंगे तो हम अपने कर्तव्यों से चूक रहे होंगे।

प्रत्येक वर्ष,भारतीय फिल्मों की विभिन्न श्रेणियों के तहत उनकी कलात्मक और तकनीकी श्रेष्ठता के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि इनमें से अधिकांश पुरस्कार दक्षिण भारतीय भाषाओं में बनी फिल्मों को प्राप्त होते हैं।यह, स्पष्ट रूप से भारतीय सिनेमा की समग्र गुणवत्ता में दक्षिणी फिल्म उद्योग द्वारा दिये गए करने योगदान का सूचक है।

सरकार ने फिल्म उद्योग की सहायता के लिए, पुरस्कारों के द्वारा सर्वोत्तम प्रतिभा को सम्मानित करने,भारत और विदेशों में फिल्म समारोहों में कुछ बेहतरीन फिल्मों को प्रदर्शित करने तथा कुशल मानव संसाधन तैयार करने में योगदान देने जैसे कई कदम उठाए हैं।

भारतीय सिनेमा की सौ वर्ष की यात्रा में कहानी कहने की शैली और वितरण की तकनीक में बदलाव आए हैं । कहानी कहने की नई शैली की शुरुआत और भारत के सभी हिस्सों तक सिनेमा को पहुंचाने के लिए अपनाए गए विभिन्न फार्मेटों के कारण इस बात की भी जरूरत महसूस की जा रही है कि भावी पीढ़ियों के लाभ के लिए हमें अपनी सिनेमाई विरासत की हिफाज़त करनी चाहिए। भारत सरकार द्वारा,फिल्म उद्योग के पूर्ण समर्थन से,अपनी फिल्मी विरासत की पुनः स्थापना,संरक्षा और उसके डिजिटाइजेशन के प्रयास किए जा रहे हैं।

भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान,पुणे और सत्यजीत रे फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान,कोलकाता ऐसे दो प्रमुख संस्थान हैं जो फिल्म और टेलीविजन के क्षेत्र में शिक्षा प्रदान कर रे हैं। इन संस्थानों ने फिल्म उद्योग को सबसे बेहतरीन प्रतिभाएँ प्रदान की हैं। भारतीय फिल्म उद्योग के बहुत से प्रख्यात सदस्य इसी संस्थान से हैं। संभवतः, अब समय आ गया है कि उन्हें सशक्त करते हुये "राष्ट्रीय महत्व" के संस्थान बनाने की दिशा में जरूरी कदम उठाए जाएँ।

मित्रो, सिनेमा संप्रेषण का एक लोकप्रिय और शक्तिशाली माध्यम है। देश में सिनेमा देखने वालों की बहुत बड़ी संख्या है। इसलिए यह जरूरी है कि इस माध्यम में मनोरंजन तथा सामाजिक उत्तरदायित्व के बीच संतुलन बनाकर रखा जाए। महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों की,हाल ही की घटनाओं ने देश की अंतरात्मा को झिंझोड़ दिया है। हमें हाल ही में, देश के कुछ हिस्सों में दु:खद सांप्रदायिक दंगों को भी देखना पड़ा है। हमें अपने मूल्यों के क्षरण को रोकने के उपाय तलाशने होंगे। मैं इस बात पर ज़ोर देना चाहूँगा कि सिनेमा राष्ट्र की नैतिकता की दिशा के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है और उसे निभाना भी चाहिए। फिल्म उद्योग से जुडे प्रत्येक व्यक्ति का यह दायित्व है कि वह एक सहनशील तथा सौहार्दपूर्ण भारत के निर्माण के लिए हमारे सकारात्मक सामाजिक मूल्यों के चित्रण के लिए सिनेमा के मजबूत माध्यम का प्रयोग करे। मैं,मनोरंजन उद्योग आह्वान करता हूँ कि वे इस जिम्मेदारी के प्रति जागरूक तथा सचेत रहें और ऐसा सिनेमा निर्मित करने के लिए हर-एक प्रयास करें जो सामाजिक बदलाव और नैतिक उत्थान में योगदान दे।

इन्हीं शब्दों के साथ,इस विशेष अवसर पर आपके बीच आने का अवसर प्रदान करने के लिए मैं आयोजकों के प्रति आभार व्यक्त करता हूं

धन्यवाद,

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