भारत चीन संबंधः ‘जनता की भागीदारी में आठ कदम’ र्शीषक पर पेकिंग विश्वविद्यालय, चीन में भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
बीजिंग, चीन : 26.05.2016
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1.मैं आपके स्वागत भरे शब्दों के लिए आपको धन्यवाद देता हूं। उच्च शिक्षा के इस सुविख्यात संस्थान में आने पर मुझे बड़ी प्रसन्नता है। पेकिंग विश्वविद्यालय अपने विद्वानों के पांडित्य और उत्साहपूर्ण नेतृत्व के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है। मैं इसके प्रबंधन और संकाय के सदस्यों से मिलने और आपको,जो चीन के भावी नेता हैं,और ऊर्जा और आत्मविश्वास विखेरती आपकी खुली मुस्कान स्थान को देखने के इस अवसर का बहुत सम्मान करता हूं।
2.इस विश्वविद्यालय ने अपने गौरवपूर्ण इतिहास के दौरान,अंतरराष्ट्रीय विद्वानों का स्वागत किया और पड़ोस और उससे परे संस्थानों के साथ संबंधों को मजबूत किया। भारत और चीन के विचारकों के बीच समृद्ध शैक्षिक आदान-प्रदान में इसका योगदान गौरतलब है। इस कीमती विनिमय का एक उच्च बिंदु‘एशियन ट्राइबल’के विषय पर चीन में कवि साहित्यकार रबीन्द्र नाथ ठाकुर और उसके बुद्धिजीवियों के बीच संवाद था। इस विश्वविद्यालय ने भारत और चीन दोनों के विद्वान-भिक्षुओं के बीच बहुत ही परिणामी संवाद की इस परंपरा को बनाए रखा है और सच्चे ज्ञान और विचारों के आदान-प्रदान के द्वारा परस्पर समझ को मजबूत किया है। पेकिंग विश्वविद्यालय के दो आदरणीय समकालीन विद्वानों जी जियानलिन और जिन के झु ध्यान में आते हैं,जिन्होंने पेकिंग विश्वविद्यालय में भारतीय अध्ययन विभाग की स्थापना की।
3.भारत और चीन पहली शताब्दी से गहन बुद्धिजीवी और सांस्कृतिक संपर्कों की देन एक महान साम्राज्य के उत्तराधिकारी हैं। हम कुमारजीव के केंद्रीय योगदान अथवा चीन के ज्वानजेंगेंड फा जियांग के रिकार्ड और अनुभवों के बगैर समान्य इतिहास की कल्पना नहीं कर सकते। इसलिए निश्चय ही वह समय जिसकी हमारे पास अधिक सूचना नहीं है,शायद यह वही समय था जब सीधा संपर्क कम था। तथापि यह बड़े संतोष का विषय है कि जब हम इन नायकों की उत्कृष्ट विरासतों को अपनी श्रद्धांजलि देते हैं,तो हम बड़े जोर-शोर से लोगों से लोगों के संबंध के अत्यधिक संतोषजनक पहलू को पुनर्बहाल करने और पुनर्निमित संपर्क बनाने में लग जाते हैं। हैं।
4.पिछली शताब्दी के आरंभिक वर्षों में जब भारत और चीन विदेशी प्रभुत्व से आजाद होने और विश्व व्यवस्था में अपना आधिकारिक स्थान पाने के लिए समान रूप से संघर्ष कर रहे थे तो हमे एक दूसरे से मजबूती और प्रेरणा मिली। भारतीय अपने स्वतंत्रता आंदोलन में चीनी नेताओं द्वारा दी गई एकता और समर्थन को सप्रेम याद करते हैं। इसी प्रकार चीन के लोग चीन में एक साम्राज्यवादी विरोधी संघर्ष को दबाने के लिए ब्रिटिश भारत सैन्य टुकडि़यों को भेजने के बाद1925में चीन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के आंदोलन को सराहनापूर्वक याद करते हैं। डॉ. कोटनिस के नेतृत्व में1938 में मेडिकल मिशन हमारे लोगों के बीच मित्रता और मानवता के वास्तविक बंधन का एक और उदाहरण है। उनके कठिन परिस्थितियों में उनके योगदान को आज तक याद किया जाता है और भारत और चीन में समारोह आयोजित किया जाता है।
5.हमारी दो सभ्यताओं के कीर्तिमान विगत के प्रति सचेत होते हुए,स्वतंत्र भारत चीन के प्रति मित्रता के लिए कटिबद्ध है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने28 दिसंबर, 1945को शांति निकेतन में चीन-भारत सांस्कृतिक सोसाइटी को संबोधित करते हुए भारत-चीन मित्रता के दृष्टिकोण के बारे में स्पष्ट वक्तव्य दिया था। उनके शब्दों में‘‘एक सशक्त और एकजुट चीन और एक सशक्त और एकजुट भारत को एक दूसरे के निकट आना चाहिए। उनके मेलजोल और मैत्री से ना केवल परस्पर लाभ होगा बल्कि बड़े पैमाने पर विश्व को भी फायदा होगा।’’
6.पिछले सात दशकों में,हमारे द्विपक्षीय संबंध कठिन और चुनौतिपूर्ण रहे हैं। परंतु चीन के लोगों के साथ अपनी मैत्री को सुरक्षित करने की भारत के लोगों का इरादा प्रत्यक्षतः स्थायी है। दिसंबर1949में चीन के पीपुल्स गणराज्य की भारत में पहली पहचान अप्रैल, 1950में हमारे राजनयिक संबंधों की स्थापना और चीन के पीपल्स गणराज्य के प्रवेश हेतु60वें और 70वें दशक में संयुक्त राष्ट्र में भारत का स्थायी लोक समर्थन और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की बहाली में इसकी झलक पायी गयी। इस अवधि के दौरान हमारे संबंधों में महत्वपूर्ण विस्तार और विभिन्नता रही। हमारा साझा सभ्यतागत विगत और हमारी सामान्य एशियायी पहचान इस आकांक्षा के मूल में है। आज भारत और चीन अपने-अपने विकासात्मक लक्ष्यों की ओर बढ़ रहे हैं। हम दोनों ही मैत्री में रहना चाहते हैं और एशियायी शताब्दी के साझे सपने को साकार करना चाहते हैं। हम दोनों देशों ने इस बुद्धिजीवी और न्यायिक दृष्टिकोण से पर्याप्त राजनीतिक और आर्थिक लाभ उठाया है।
7.जैसा कि मैंने आज सुबह संबोधन में कहा था कि मैं भारत और चीन दोनों के उत्कृष्ट दूर-द्रष्टाओं के प्रति आभार और श्रद्धा प्रकट करता हूं जिन्होंने हमारे लोगों के बीच परस्पर समझ को बढ़ाने और हमारी दोनों प्राचीन सभ्यताओं के बीच निकट शैक्षिक संपर्कों की गुणवत्ता को बढ़ाने की जिम्मेदारी ली।
8.वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता के दौर में हमारे दोनों देशों स्वयं पर विश्व आबादी का40 प्रतिशत का दबाव होने के बावजूद एकता और प्रगति को कायम रखा है। विश्व आर्थिक व्यवस्था में हमारे संयुक्त योगदान और क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता को कम करके नहीं आंका जा सकता। भारत और चीन अग्रणी वैश्विक शक्तियों की श्रेणियों से जुड़कर चलने के लिए समान रूप से तैयार हैं।
9.उभरती हुई आर्थिक शक्तियों के रूप में यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम क्षेत्रीय और वैश्विक समृद्धि बनाए रखने की ओर ध्यान केंद्रित करें। हम दोनों एक ऐसे अवसर की दहलीज पर खड़े हैं जहां से हम मिलकर पुनर्रूत्थान,एक सकारात्मक ऊर्जा और एक ‘एशियन सेंचुरी’का सृजन कर सकते हैं। यह कार्य आसान नहीं है। हमें संकल्प और धैर्य से बाधाओं को परे करना होगा। हमें इस सपने को साकार करने के लिए दृढ़ संकल्प होना होगा। हम मिलकर इसे पूरा कर सकते हैं। यदि हम एक स्थायी मैत्री में बंध जाएं तो इसे चरितार्थ कर सकते हैं। हम इसे कैसे पूरा कर सकते हैं। मैं इसे साझा करना चाहूंगा।
10.मैं इस बात पर जोर देना चाहूंगा कि हमारे दोनों देशों के बीच एक निकट विकासात्मक साझेदारी के लिए राजनीतिक समझ होना महत्वपूर्ण है। संवर्धित राजनीतिक संवाद के जरिये इसकी पूर्ति की जा सकती है। भारत में चीन के साथ हमारी साझेदारी को मजबूत करने के लिए एक द्विदलीय प्रतिबद्धता है। हमारे देश के नेताओं के बीच बारंबार संपर्क इस बात का प्रमाण है। हमने साझे आधार को व्यापक बनाया है और अपनी विसंगतियों को दूर करना सीखा है। सीमागत प्रश्न सहित ऐसी चुनौतियां हैं जिनका अब भी व्यापक रूप से समाधान किया जाना है जबकि समय-समय पर कुछेक विषयों पर पड़ोसी के विचारों में अंतर होना स्वाभाविक है। मैं इसे राजनीतिक कुशाग्रता की परीक्षा समझता हूं जब हम दोनों पक्षों से,हमारी सभ्यतागत समझ के प्रति आकर्षित होने और इन विसंगतियों का समाधान करने के लिए कहा जाता है। हम दोनों पक्षों को यह सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कार्य करना चाहिए कि हम अपनी आगामी पीढ़ी के कंधों पर अपनी अनसुलझी समस्याओं और विषमताओं का भार न डालें। मुझे विश्वास है कि यह सुनिश्चित करके यह विषय और अधिक नहीं बढ़ेंगे और परस्पर हितों के प्रति संवेदनशील रहते हुए हम विषमताओं को न्यूनतम और समभिरूपताओं को अधिकतम कर सकते हैं।
11.इसीलिए मैं खुश हूं कि हम साझे हितों के प्रत्येक क्षेत्र में तेजी से विविधता ला रहे हैं। चीन हमारा सबसे बड़ा साझेदार व्यापारी है। हमारे विकासात्मक अनुभव यकीनन एक दूसरे के लिए प्रासंगिक है। अवसंरचना,गतिशीलता, ऊर्जा,कौशल विकास, स्वास्थ्य देखभाल,शिक्षा और शहरीकरण में हमारी अपनी उपलब्धियां,आदान-प्रदान और सहयोग के लिए एक उर्वरक आधार प्रदान करती है। हमारी रक्षा और सुरक्षात्मक आदान-प्रदान में अब वार्षिक सैन्य अभ्यास भी शामिल है। भारत में चीन का बहुत बड़ा निवेश है और इसी तरह भारत का चीन में भी। सरकार से सरकार प्रणाली में चीन के राष्ट्रीय सुधार और विकास आयोग और भारत के नीति आयोग के बीच उच्च स्तरीय संवाद शामिल हैं। हमारी दोनों सरकारें इस प्रक्रिया और हमारे संबंधों के लिए स्थायी फ्रेमवर्क निर्मित करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि यदि दोनों देश21वीं सदी में एक महत्वपूर्ण और रचनात्मक भूमिका निभाते हैं तो भारत और चीन अपने द्विपक्षीय साझेदारी को संवर्धित करेंगे। जबकि भारत और चीन वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए सहयोग के दौर को समझते हैं और जैसा कि वे साझे हितों के निर्माण के लाभ को जानते हैं, हम हमारे परस्पर साझे लाभ की क्षमता का दोहन करेंगे। हम दोनों देशों के लोगों की एक साथ उपलब्धि की कोई सीमा नहीं है। मुझे विश्वास है कि हमारे संबंधों के गुणात्मक बदलाव से लोगों को उनका प्रमुख स्थान हासिल होगा इसलिए मैं प्रस्ताव करता हूं कि हमारे दोनों पक्ष हमारे दोनों देशों के बीच एक वृहतस्तीय संपर्क स्थापित करने के लिए जन आधारित साझेदारी बनाए रखने पर केंद्रित हों।
12.एक जन आधारित साझेदारी निर्मित करने के लिए हममें परस्पर सम्मान पर निर्दिष्ट परस्पर विश्वास होना चाहिए और हमें अपने-अपने राजनीतिक और सामजिक दायित्वों का बेहतर मूल्यांकन करना चाहिए। यह सभी स्तरों पर निकट संपर्कों द्वारा हासिल किया जा सकता है। जैसा कि आप जानते हैं भारत ने एक धर्मनिरपेक्ष संसदीय लोकतंत्र का चयन किया है। हमारी सहभागी शासन प्रणाली सहिष्णुता,समग्रता और आम सहमति के सिद्धांतों पर आधारित है। आतंकवाद के कुकृत्यों द्वारा हमारी शांति भंग करने के प्रयास ने हमारे विश्वास को टस से मस नहीं किया है। हमारा समाज लचीला है और जनहित को मुक्त मीडिया,जो कि एक स्वतंत्र गैर व्यवस्था और एक जीवंत नागरिक समाज है,के द्वारा संरक्षित किया जाता है।
13.मैं भारत-चीन संबंधों के भविष्य में भारी जोखिम के साथ दोनों पक्षों के चुनाव क्षेत्रों को बनाए रखने की आवश्यकता पर बल देना चाहूंगा। विश्व आबादी के एक तिहाई से ज्यादा होने के बावजूद दोनों पक्षों के लोक प्रतिनिधियों के बीच संपर्क बहुत सीमित हैं। सरकारी और अर्द्धसरकारी स्तरों पर हमारे लोगों के लोकप्रतिनिधयों के बीच और अधिक नियमित संपर्क होना समय की मांग है। हमें इन संपर्कों को राजधानियों से प्रांतों और स्थायी निकायों तक बढ़ाना चाहिए। इस संबंध में पिछले वर्ष प्रधानमंत्री मोदी की चीन की यात्रा के दौरान भारत-चीन राजकीय/प्रांतीय नेता फोरम को स्थापित कर एक अच्छी शुरुआत की गई थी। इस बात से हमें प्रोत्साहन मिला है कि अब प्रांतों से राज्य संपर्क बढ़ रहें हैं और दोनों पक्ष स्थानीय निकायों के बीच आदान-प्रदान बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं।
14.दूसरा, भारत और चीन युवा समाज हैं। हमारे युवा समान आकांक्षाओं और दृष्कोणों को शेयर करते हैं। उनके वार्षिक विनिमय सफल रहे हैं। परंतु दोनों पक्षों को और अधिक शैक्षिक अवसर,युवा समारोह खेलों के आदान-प्रदान,युवा उन्मुखी पर्यटन और सामाजिक मीडिया संबंधों आदि को शामिल करके अपनी क्षमता में तालमेल बैठाने की आवश्यकता है।
15.तीसरा, एक डिजीटल युग के नागरिक के रूप में, हम दृश्य-चित्र की शक्ति को पहचानते हैं। सकारात्मक दृष्टिकोण के सर्जन के लिए यह संयुक्त फिल्म निर्माण के लिए एक उपयोगी माध्यम है। हम दोनों देशों में हमारी फिल्मों और कार्यक्रमों के नियमित स्क्रीनिंग और टेलीविजन पर प्रसारण के द्वारा हमारी पहलों को अपनी पहुंच बढ़ाने में उद्यम करना चाहिए।
16.चौथा, हमें अपने बौद्धिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का पुनः लाभ उठाना चाहिए। भारत में योग और चीन में ताई ची और परंपरागत औषधियां हमारी सांस्कृतिक विरासत का भाग हैं। हमारे वार्षिक भारत-चीन थिंक-टैंक फोरम और हाई लेवल मीडिया फोरम अच्छी पहल है। उच्च शिक्षा संस्थानों के बीच बड़े आदान-प्रदान, अधिकाधिक सांस्कृतिक पर्व और संयुक्त अनुसंधान और छात्रवृत्ति कार्यक्रम इस धारणा को दूर करने में मदद कर सकते हैं कि शिक्षा,विज्ञान और तकनीकी में प्रगति के लिए हमें पश्चिम की ओर देखने की आवश्यकता है न कि एक दूसरे को।
17.पांचवां,यात्रा एक बहुत ही महत्वपूर्ण बाध्यकारी कारक हो सकता है। यह स्पष्ट है कि आगामी दशक में,भारतीय और चीनी पर्यटकों की वैश्विक रूप से सबसे बड़ी मात्रा होगी। पर्यटन के रूप में भारत की अपार क्षमता को बेहतर ढंग से प्रस्तुत किया जाना चाहिए। मैं पिछले वर्ष चीन में विजिट इंडिया और इस वर्ष भारत में विजिट चीन आयोजित करने के लिए दोनों देशों की सराहना करता हूं। हम कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए एक दूसरा मार्ग खोलने के लिए आपकी सरकार के निर्णय का स्वागत करते हैं। भारतीय,चीन में उनके तीर्थ स्थानों की यात्रा के और अधिक अवसर लेना चाहेंगे और बदले में भारत में बौद्ध यात्री केंद्रों में और अधिक चीनी लोगों का स्वागत करेंगे।
18.छठा, हमारे दोनों समाजों में हितों की श्रृंखला को पूरा करते हुए,जिसमें शहरीकरण की चुनौतियां,पर्यावरणीय हृस,कौशल विकास की तत्काल आवश्यकता और डिजिटल अंतर शामिल है। सिविल समाज निरंतर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। सतत समाधान और साझे अनुभवों को लेकर, दोनों पक्षों के सिविल समाज,उन मानदंडों का सम्मान करते हुए जिनमें उन्हें अपने-अपने देशों में कार्य करना है,सहयोग कर सकते हैं।
19.सांतवां,हमारा उन वैश्विक और विकासात्मक मामलों के प्रति साझा दृष्टिकोण है जो जी-20,ब्रिक्स, ईएएस,एआईआईबी, एसीओ और संयुक्त राष्ट्र सहित बहुपक्षीय मंचों में हमारे व्यापक सहयोग को सुकर बनाते हैं। हम हमारे लिए निर्धारित साझे भविष्य के लिए दोनों देशों की आकांक्षाओं के प्रति जन-जागरुकता बढ़ाकर ऐसे प्लेटाफॉर्म को उपयोग में ला सकते हैं। चूंकि हमारे देशों के लोग और विश्व हमारी सरकारों को वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर कार्य करते हुए देख रहे हैं,वे भी हमारे साझे लक्ष्यों की उपलब्धियों में हमें समर्थन और योगदान देंगे।
20. अंतिम,हमारी संपूरकताओं के प्रवर्तन में व्यापार और वाणिज्य अत्यंत शक्तिशाली एजेंट हो सकते हैं। हमें प्रसन्नता है कि पिछले दशक में हमारे द्विपक्षीय व्यापार और निवेश संबंधों में पर्याप्त वृद्धि हुई है,परंतु अभी एक विशाल प्रयुक्त क्षमता है,जिसका दोहन किया जाना है। हम ‘मेक इन इंडिया’पहल और स्टार्ट अप इंडिया में अपने साथ चीनी कंपनियों को आमंत्रित करते हैं। आइए हम मिलकर व्यवसाय के नए मॉडल की खोज करें।
21. देवियो और सज्जनो,मुझे विश्वास है कि जन आधारित दृष्टिकोण की स्थापना में इन आठ स्तंभों को लगाकर हम सफलतापूर्वक हमारे लोगों के परस्पर लाभ के लिए सहयोग को संवर्धित और मजबूत कर सकते हैं।
22. 1942 में,गांधी जी ने कहा था, ‘मैं उस दिन की उम्मीद करता हूं जब एक मुक्त भारत और एक मुक्त चीन अपनी भलाई और एशिया और विश्व की भलाई के लिए मैत्री और भाईचारे में एक साथ सहयोग करेंगे।’मैं भारत और चीन के लोगों से आग्रह करता हूं कि वे मौजूदा चुनौतियों के बावजूद अपने उद्देश्य के लिए अथक संघर्ष करें। मुझे विश्वास है कि हम इस सुनहरे सपने को साकार करने में मिलकर कार्य कर सकते हैं।
23. महामहिम राष्ट्रपति जी,मैं आज के स्वागत के लिए आपको धन्यवाद देता हूं।
p class="last-word"> धन्यवाद।