बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के चतुर्थ दीक्षांत समारोह में भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

लखनऊ : 10.05.2013

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मुझे बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के चतुर्थ दीक्षांत समारोह में आज यहां उपस्थित होकर अत्यंत प्रसन्नता हो रही है जिसकी आधारशिला 1989 में हमारे युवा प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री राजीव गांधी ने रखी थी। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित यह 1996 में एक केंद्रीय विश्वविद्यालय बन गया। इस विश्वविद्यालय का नामकरण भारत की एक सबसे असाधारण विभूति और भारत के प्रमुख निर्माता के नाम पर किया गया है जो एक महान दूरद्रष्टा, एक प्रेरक नेता, एक मौलिक चिंतक और प्रकाण्ड विद्वान थे। मैं इस अवसर पर भारत की इस महान विभूति, बाबा साहेब अंबेडकर को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं।

डॉ. अंबेडकर, स्वतंत्रता, समानता, भाईचारे और न्याय के लोकतांत्रिक सिद्धांतों के समर्थक थे। वह शैक्षिक और सामाजिक दोनों तरह से भारत और इसके समाज की प्रगति के प्रति दृढ़ता से प्रतिबद्ध थे। मुझे बताया गया है कि उनके द्वारा पोषित आदर्शों से प्रेरित होकर, यह विश्वविद्यालय, शैक्षिक और सामाजिक उद्देश्यों, दोनों में नवान्वेषी प्रयासों के लिए कार्यरत है। यह सूचना विज्ञान और प्रौद्योगिकी, प्रबंधन अध्ययनों, गृह विज्ञान और अंबेडकर अध्ययनों सहित इसके अकादमिक कार्यक्रमों में प्रतिबिंबित हो रहा है।

शिक्षा राष्ट्रीय प्रगति, मानव सशक्तीकरण और सामाजिक परिवर्तन का एक महत्त्चपूर्ण तत्त्व है। महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराध की बढ़ती घटनाओं के समाधान के लिए प्रभावी उपायों की आवश्यकता है ताकि उनकी सुरक्षा और हिफाजत सुनिश्चित हो सके। इसके लिए हमारे समाज के नैतिक पतन को रोकने की भी जरूरत है। हमें तत्काल मूल्यों के ऐसे हृस के समाधान ढूंढने चाहिए। युवाओं की मानसिकता तैयार करने में सक्षम हमारे विश्वविद्यालयों को नैतिक मूल्यों को पुन: निर्धारित करने की प्रक्रिया आरंभ करनी चाहिए। उच्च शिक्षा के इन मंदिरों को समसामायिक नैतिक चुनौतियों को पूरा करने में मार्गदर्शक के रूप में कार्य करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी के लिए सद्भावना, मातृभूमि से प्रेम, महिलाओं के प्रति सम्मान, जीवन में सत्य और ईमानदारी, आचरण में अनुशासन और संयम, तथा कार्यों में दायित्व की भावना के हमारे सभ्यतागत मूल्य हमारे युवक और युवतियों के मन में गहराई तक बस जाएं।

प्यारे विद्यार्थियो, हम जनसांख्यिकीय क्रांति के मुहाने पर हैं, क्योंकि 2021 तक कामकाजी आबादी के अनुपात के 64 प्रतिशत से ज्यादा होने की उम्मीद है। 2011 और 2016 के बीच, कामकाजी आयु समूह बढ़कर 63.5 मिलियन व्यक्ति हो जाएगा। यदि हम अपने युवाओं को स्वस्थ, शिक्षित और कुशल बना सके तो आबादी का यह स्वरूप लाभकारी हो सकता है। हमारी शिक्षा प्रणाली को इस जनसंख्या के विस्तार को एक विशाल राष्ट्रीय परिसंपत्ति में बदलने में सहायक की भूमिका निभानी चाहिए।

हमने उच्च शिक्षा सेक्टर में उल्लेखनीय प्रगति की है। आज देश में 650 से अधिक उपाधि प्रदान करने वाले संस्थान और 33000 से अधिक कॉलेज हैं। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना अवधि के दौरान, 21 केंद्रीय विश्वविद्यालयों सहित 65 नए केंद्रीय संस्थान स्थापित किए गए। एक राज्य को छोड़कर, देश के प्रत्येक राज्य में कम से कम एक विश्वविद्यालय है।

इसके बावजूद हम मात्रा और गुणवत्ता की चुनौती का सामना करते रहे हैं। भारत में गुणवत्ता पूर्ण अकादमिक संस्थानों की संख्या कम है जिसके कारण बहुत से मेधावी विद्यार्थी उच्च शिक्षा के लिए विदेश चले जाते हैं। अमरीका और यू.के. सहित विदेश में 2 लाख से ज्यादा भारतीय विद्यार्थी अध्ययन कर रहे हैं। यदि हम अपने विद्यार्थियों को अपने देश में शिक्षा प्रदान करने में सफल नहीं हो सके तो यह हमारी असफलता होगी।

हमारे उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रदान की जाने शिक्षा की गुणवत्ता में अभी काफी सुधार की गुंजायश है। शिक्षा प्रदान करने के तरीकों में बदलाव की जरूरत है और इसका समय आ चुका है। हमारे विश्वविद्यालयों को अंतरराष्ट्रीय स्तर की शिक्षा प्रदान करनी चाहिए। प्रत्येक विश्वविद्यालय को एक विभाग की पहचान करनी चाहिए जिसे उत्कृष्टता केंद्र के रूप में विकसित किया जा सके। मैं केंद्रीय विश्वविद्यालयों से आग्रह करता हूं कि वे इस परिवर्तन के में अग्रणी बनें।

उच्च शिक्षा क्षेत्र में नवान्वेषी बदलाव लाने की आवश्यकता के विचार से, इस वर्ष फरवरी में राष्ट्रपति भवन में कुलपतियों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया। सम्मेलन में शिक्षा प्रणाली में आवश्यक बदलाव लाने हेतु तात्कालिक, अल्पकालिक और मध्यवर्ती उपायों के बारे में निकले निष्कर्षों पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा कार्य किया जा रहा है। मुझे उम्मीद है कि अगले सम्मेलन के आयोजन तक, हम पर्याप्त प्रगति कर चुके होंगे।

मित्रो, उच्च शिक्षा तक पहुंच को बढ़ाना समावेशिता की दिशा में एक जरूरी कदम है। इसे छात्रवृत्ति, विद्यार्थी ऋण और अन्य विद्यार्थी सहायक उपायों के जरिए आर्थिक रूप से कमजोर प्रतिभावान विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध कराया जाना चाहिए। हमारे देश में बहुत से स्थान, उच्च शिक्षा संस्थानों से वंचित हैं। हमारे प्रयासों का लक्ष्य शिक्षा प्रदान करने का नवान्वेषी तकनीकों के प्रयोग से अपने देशवासियों को उच्च शिक्षा सुलभ करवाने का होना चाहिए। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के माध्यम से राष्ट्रीय शिक्षा मिशन द्वारा उपलब्ध सुविधाओं को वृहत स्तर पर प्रयोग करना चाहिए। प्रौद्योगिकी के द्वारा सहयोगात्मक सूचना आदान-प्रदान संभव है। शहरी केंद्र से दूर स्थित संस्थाओं में अध्ययनरत विद्यार्थियों को महत्त्वपूर्ण व्याख्यानों को प्रसारित करना आसान होगा।

ज्ञान का आदान-प्रदान और परामर्श एक ऐसी इमारत है जिस पर अंतर विधात्मक, अंतर संस्थागत अकादमिक सहयोग निर्मित किया जा सकता है। एक विश्वसनीय इलेक्ट्रानिक मंच इसमें एक महत्त्वपूर्ण सहायक हो सकता है। राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क में उच्च गति के ब्रॉड बैंड नेटवर्क के जरिए 1500 ज्ञान सर्जक संस्थानों को जोड़ने का प्रस्ताव है। मुझे यह उल्लेख करते हुए खुशी हो रही है कि दो तिहाई संस्थान इस नेटवर्क में शामिल हो चुके हैं। मुझे विश्वास है कि शेष शोध संस्थान भी तेजी से इसमें जुड़ेंगे।

संकाय हमारी शिक्षा प्रणाली का एक अहम हिस्सा है। यह चिंता का विषय है कि विश्वविद्यालयों में काफी समय से अधिकांश संकाय पद रिक्त पड़े हुए हैं। अकेले केंद्रीय विश्वविद्यालयों में लगभग 38 प्रतिशत रिक्तियां है। शिक्षकों की मौजूदा कमी गुणवत्ता बढ़ाने के हमारे प्रयासों को विफल कर सकती है। इसलिए रिक्तियां भरने हेतु तुरंत कदम उठाए जाने चाहिए।

हमारे शिक्षकों को नवीनतम सूचना और ज्ञान से युक्त होना चाहिए। समसामयिक शिक्षण में उनकी प्रासंगिकता कायम रखने के लिए अकादमिक स्टाफ कॉलेजों द्वारा संचालित पुनश्चर्या पाठ्यक्रमों की निरंतर समीक्षा आवश्यक है।

शिक्षकों द्वारा अलग परिप्रेक्ष्य से विचार करने के लिए विद्यार्थियों को प्रेरित करना चाहिए। ऐसे शिक्षक सर्वांगीण शिक्षण और नवीन विचारशीलता प्रोत्साहित कर सकते हैं। हमारे विश्वविद्यालयों को ऐसे प्रेरक शिक्षकों की पहचान करके कनिष्ठ शिक्षकों और विद्यार्थियों को परामर्श देने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए।

मित्रो, प्राकृतिक संसाधनों पर बढ़ते दबाव से ग्रसित दुनिया में, नवान्वेषण भावी विकास की कुंजी होगा। चीन और अमरीका नवान्वेषण में अग्रणी हैं जहां प्रत्येक देश द्वारा 2011 में 5 लाख से ज्यादा पेटेंट आवेदन किए गए। मात्र 42000 पेटेंट आवेदनों के साथ भारत इन अग्रणियों से पीछे है।

हमारे अकादमियों और उद्योग को अभी नवान्वेषण कार्य में भरपूर योगदान देना है। एक अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार, केवल 3 भारतीय कंपनियां विश्व की 100 सबसे नवान्वेषी कंपनियों में से है। हमारे शिक्षण संस्थानों में अनुसंधान को बहुत कम प्राथमिकता दी जाती है। 2011-12 में स्नातक और उससे ऊपर के स्तर पर प्रविष्ट 260 लाख विद्यार्थियों में से केवल 0.4 प्रतिशत पीएचडी विद्यार्थी थे।

विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति, 2013 में भारत के भावी विकास में तेजी लाने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी नीत नवान्वेषण की परिकल्पना की गई है। हमारी हैसियत को एक ज्ञानसंपन्न अर्थव्यवस्था के रूप में सुदृढ़ करने के लिए इस नीति का प्रयोग करने का दायित्व हमारी उच्च शिक्षण संस्थाओं पर है।

यह नवान्वेषण का दशक है। नवान्वेषण तभी सार्थक हो सकता है जब हम इसके फायदों को सामाजिक आर्थिक व्यवस्था के निचले पायदान तक पहुंचाएं। इस वर्ष आयोजित केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के सम्मेलन में, शिक्षक और विद्यार्थी समुदायों तथा जमीनी स्तर के नवान्वेषकों के बीच संवाद को सुगम बनाने के लिए केंद्रीय विश्वविद्यालयों में नवान्वेषक क्लब स्थापित करने की सिफारिश की गई। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि इस विश्वविद्यालय ने ऐसा एक क्लब स्थापित किया है। मैं इस कदम को उठाने के लिए, राष्ट्रीय नवाचार फाउंडेशन सहित सभी शामिल लोगों को बधाई देता हूं। मुझे विश्वास है कि यह पहल शीघ्र ही सभी 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों तक पहुंच जाएगी।

ऐसे बहुत से जमीनी स्तर के नवान्वेषक हैं, जो प्रौद्योगिक और वाणिज्यिक सहयोग की कमी के कारण, उत्पाद को विपणन योग्य नहीं बना पाते। विश्वविद्यालयों और उद्योग द्वारा जमीनी स्तर के नवान्वेषकों के परामर्शन से प्रौद्योगिकी के फायदों को लोगों के निकट ले जाने में मदद मिलेगी। मुझे उम्मीद है कि आज नवान्वेषण प्रर्दशनी में प्रदर्शित कुछ नए रोमांचकारी नवान्वेषण देखने को मिलेंगे।

हमें अनुसांधन के लिए अनुकूल अकादमिक वातावरण बनाना होगा। हमें अनुसंधान फैलोशिप की संख्या बढ़ानी चाहिए, अंतर विधात्मक और अंतर विश्वविद्यालय अनुसंधान साझीदारियों में सहयोग करना चाहिए तथा उद्योग विकास पार्क स्थापित करने चाहिए। अकादमिक और अनुसंधान पदों पर प्रतिभाओं की कमी चिंता का एक विषय है। हमारी व्यवस्था में विदेश में कार्यरत भारतीय अनुसंधानकर्ताओं को वापस बुलाने और अल्पकालिक प्रस्तावों पर कार्य हेतु उन्हें लुभाने का पर्याप्त लचीलापन होना चाहिए।

मित्रो, शिक्षा को समष्टि स्तर पर राष्ट्र निर्माण तथा व्यष्टि स्तर पर चरित्र निर्माण का माध्यम बनाना चाहिए। स्वामी विवेकानंद का विचार था, ‘‘जो शिक्षा जीवन संघर्ष के लिए तैयार करने में जनसामान्य की मदद नहीं करती है, जो चरित्र की शक्ति, परोपकार की भावना और सिंह जैसा साहस पैदा नहीं करती है तो इसका क्या लाभ है?’’

मुझे उम्मीद है कि आपने जो शिक्षा पाई है उससे आप आत्मचिंतन करने के और बाहरी दुनिया के साथ आपके संबंध सुगम बनाने में सफल होंगे। युवा विद्यार्थियों, जब आप इस महान संस्थान के परिसर को छोड़कर जाएंगे, तो आपके वरिष्ठों और शिक्षकों की सलाह आपको उपलब्ध नहीं होगी, परंतु आपको निराश नहीं होना है, आपको अकेलापन महसूस करने की आवश्यकता नहीं है, आपको डरना नहीं है क्योंकि आपको प्रदत्त ज्ञान, कौशल और आत्मविश्वास ने आपको जीवन की चुनौतियों का सामना करने में समक्ष बना दिया है। इसलिए आगे बढ़ो :- भविष्य आपका है, यह दुनिया आपकी है। आपकी इस भावी प्रगति में, जीवन और जीविकोपार्जन के लिए मेरी शुभकामनाएं।

धन्यवाद। 
जय हिन्द!

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