भारत की राष्ट्रपति भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली के हीरक जयंती के समापन समारोह में शामिल हुई
राष्ट्रपति भवन : 03.09.2022
राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने कहा कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान हमारे राष्ट्र के गौरव रहे हैं। वे आज (3 सितंबर, 2022) नई दिल्ली स्थित आईआईटी दिल्ली की हीरक जयंती के समापन समारोह में सभा को संबोधित कर रही थीं।
राष्ट्रपति ने कहा कि आईआईटी ने दुनिया के सामने शिक्षा और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की क्षमता को साबित किया है। कई मायनों में आईआईटी की गाथा आजाद भारत की गाथा है। आईआईटी ने आज वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति को बेहतर करने में बहुत योगदान दिया है। आईआईटी के प्राध्यापकों एवं पूर्व विद्यार्थियों ने दुनिया को हमारी बौद्धिक क्षमता से परिचित कराया है। आईआईटी दिल्ली और अन्य आईआईटी से पढ़कर निकली कई प्रतिभाएं आज दुनिया भर में चल रही व्यापक डिजिटल क्रांति की अगुवाई कर रही हैं। इसके अलावा, आईआईटी का प्रभाव विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र से आगे जा चुका है। आईआईटी से निकले लोगजीवन के हर क्षेत्र - शिक्षा, उद्योग, उद्यमशीलता, नागरिक समाज, एक्टिविज्म, पत्रकारिता, साहित्य एवं राजनीति - में अग्रणी हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि मूल आईआईटी में से एक के रूप में, आईआईटी दिल्ली इस क्लब में हाल ही शामिल हुए कुछ नए सदस्यों - आईआईटी रोपड़ और आईआईटी जम्मू - के लिए एक मार्गदर्शक की भूमिका निभा रही है। उन्होंने कहा कि आईआईटी दिल्ली ने इस प्रकार दुनिया भर में उत्कृष्टता के केन्द्र के रूप में आईआईटी की छवि को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
राष्ट्रपति ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि आईआईटी दिल्ली ने हमेशा स्वयं को एक बड़े समुदाय के हिस्से के रूप में देखा है और वह समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को लेकर अतिरिक्त रूप से सजग रही है। उन्होंने कहा कि इसके सामाजिक सरोकार का ताजा उदाहरण महामारी के शुरुआती दौर में देखने को मिला। वायरस को नियंत्रित करने की चुनौती को देखते हुए, आईआईटी दिल्ली ने महत्वपूर्ण अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं की शुरुआत की। इसने अन्य चीजों के अलावा रैपिड एंटीजन टेस्ट किट, पीपीई, एंटीमाइक्रोबियल फैब्रिक, उच्च दक्षता वाले फेस मास्क और कम लागत वाले वेंटिलेटर को डिजाइन एवं विकसित किया। कोरोना वायरस के विरुद्ध भारत की लड़ाई में आईआईटी दिल्ली के योगदानों ने इस बात का एक बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत किया है कि कैसे इंजीनियरिंग व प्रौद्योगिकी संस्थान भी सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट में अपनी भूमिका निभा सकते हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि 2047 में जब हम अपनी आजादी की शताब्दी मनाएंगे,तब तक चौथी औद्योगिक क्रांति के कारण हमारे आसपास की दुनिया में काफी बदलाव आ चुका होगा। जिस तरह हम 25 साल पहले, आज की सम-सामयिक दुनिया के बारे में कल्पना करने की स्थिति में नहीं थे, उसी तरह आज हम इस बात की कल्पना नहीं कर सकते कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ऑटोमेशन किस प्रकार हमारे जीवन को बदलने जा रहे हैं। अपनी विशाल जनसंख्या के साथ हमें भविष्य की ताकतों से निपटने के लिए दूरदर्शितापूर्ण रणनीतियों की जरूरत है, जहां व्यवधान ही एक नई वास्तविकता बनेंगे। रोजगार का स्वरूप पूरी तरह से बदल जाएगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि अगर हम भविष्य की अनिश्चितताओं से स्वयं को बचाने के लिए आवश्यक कदम उठाते हैं, तो हम व्यापक जनसांख्यिकीय लाभांश हासिल कर सकेंगे। हमें अपने संस्थानों को भविष्य के अनुकूल बनाने की जरूरत है। इसके लिए हमें शिक्षण एवं अधिगम संबंधी एक नए ढांचेऔर भविष्योन्मुखी शिक्षाशास्त्र एवं शिक्षा-सामग्री की आवश्यकता होगी। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि अपनी प्रसिद्ध आईआईटी संस्थानों के जरिएहम इस चुनौती का सामना करने के लिए आवश्यक ज्ञान और सही कौशल से अपनी युवा पीढ़ी को लैस करने में सक्षम होंगे।
जलवायु परिवर्तन की गंभीर चुनौती की वास्तविकता की ओर इशारा करते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि एक विशाल आधारिक जनसंख्या वाले विकासशील देश के रूप में, अपने आर्थिक विकास के लिए हमारी ऊर्जा संबंधी जरूरतें बहुत अधिक हैं। इसलिए हमें जीवाश्म ईंधन से हटकर नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़ने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अब जबकि दुनिया पूरी तत्परता से पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के लिए प्रौद्योगिकीय उपायों की तलाश कर रही है, उन्हें पूरा विश्वास है कि आने वाले वर्षों में भारत के युवा इंजीनियर और वैज्ञानिक मानव जाति को इस दिशा में सफलता दिलाने में मदद करेंगे।