भारत की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का मानद उपाधि प्रदान किए जाने के अवसर पर संबोधन
नित्रा : 10.04.2025
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मैं ऐतिहासिक शहर नित्रा में आकर और कॉन्स्टेंटाइन द फिलॉसफर यूनिवर्सिटी से यह प्रतिष्ठित मानद डॉक्टरेट उपाधि प्राप्त करके बहुत सम्मानित और गर्व महसूस कर रही हूँ। मैं इस सम्मान के लिए रेक्टर और विश्वविद्यालय के प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती हूँ और इसे मैं भारत के 1.4 बिलियन लोगों की ओर से स्वीकार करती हूँ। यह एक ऐसा सम्मान है जो उस देश और उसकी सभ्यता को दिया जा रहा है जो अनादि काल से शांति और शिक्षा का पक्षधर रहा है।
दार्शनिक संत कॉन्स्टेंटाइन सिरिल के नाम पर स्थापित इस संस्थान से यह डिग्री प्राप्त करना विशेष मायने रखता है। भाषा, शिक्षा और दर्शन में उनका योगदान प्रेरणादायी रहा है।
भारत की भाषाई और सांस्कृतिक विविधता के संरक्षण के लिए काम करने, जिसमें संथाली भाषा की संवैधानिक मान्यता और इसकी ओल चिकी लिपि का वर्गीकरण शामिल है, की पहचान बनाने और ज्ञान को बढ़ावा देने में भाषा की क्षमता की मैं, सराहना करती हूँ। भारत में, हम स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी और डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे दूरदर्शी लोगों की विरासत का सम्मान करते हैं, इनका मानना था कि शिक्षा ही एक प्रबुद्ध समाज की नींव है।
दोस्तो,
मेरे अपने जीवन में भी शिक्षा से बहुत परिवर्तन हुए हैं। मैं एक छोटे से कम सुविधा वाले आदिवासी गाँव से हूं और मैं अपने समाज की पहली महिला थी जिसने कॉलेज जाकर शिक्षा प्राप्त की। इस अनुभव से मुझमें सशक्तिकरण के एक साधन के रूप में शिक्षा में एक अटूट विश्वास पैदा हुआ, एक ऐसा विश्वास जिसने शिक्षक से लेकर लोक सेवक और फिर मेरे देश के सर्वोच्च पद तक की मेरी यात्रा का मार्गदर्शन किया है।
एक शिक्षक के रूप में, मैंने मानव विकास, सामाजिक उत्थान और आर्थिक विकास पर शिक्षा के गहन प्रभाव को देखा है। शिक्षा से सामाजिक असमानताएं मिटती हैं, यह सुनिश्चित करती है कि विकास का लाभ हाशिए पर पड़े लोगों तक भी पहुँचना चाहिए। शिक्षा व्यक्तिगत सशक्तिकरण का साधन तो है ही, यह राष्ट्रीय विकास का भी साधन है।
इस बात को मानते हुए भारत ने शिक्षा को अपनी राष्ट्रीय विकास कार्यनीति के केंद्र में रखा है। भारत की आधी आबादी 25 वर्ष से कम आयु की है, इसलिए भारत कल की ज्ञान अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए अपने युवाओं में निवेश कर रहा है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति इस जनसांख्यिकीय लाभ का उपयोग करने, नवाचार, अनुसंधान और वैश्विक सहयोग की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई एक दूरदर्शी पहल है।
दोस्तो,
हाल के वर्षों में भारत ने शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। हमारी साक्षरता दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, और भारत अब 58,000 से अधिक संस्थानों और 43 मिलियन से अधिक छात्रों की दुनिया की सबसे बड़ी उच्च शिक्षा प्रणालियों में है। पिछले एक दशक में ही हमने 400 नए विश्वविद्यालय, 5300 नए कॉलेज और सैकड़ों राष्ट्रीय महत्व के संस्थान, और चिकित्सा और तकनीकी संस्थान स्थापित किए हैं, और यह सुनिश्चित किया है कि शिक्षा का लाभ ग्रामीण क्षेत्रों सहित देश के हर कोने तक पहुँचे।
दोस्तो,
भारत की तीव्र आर्थिक प्रगति नवाचार, डिजिटल परिवर्तन और समावेशिता के भाव से प्रेरित है। भारत आज दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है, जो जल्दी ही तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। इस वृद्धि का एक महत्वपूर्ण कारक प्रौद्योगिकी-संचालित और महिला-नेतृत्व वाले विकास पर दोहरा ध्यान दिया जाना है।
डिजिटल क्रांति से लाखों लोगों के जीवन में परिवर्तन हुआ है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, जहाँ महिलाएँ भारत की प्रगति में प्रमुख योगदानकर्ता रही हैं। हमारे आईटी क्षेत्र में 4.4 मिलियन पेशेवरों में से 36 प्रतिशत आईटी पेशेवर महिलाएँ हैं, और प्रौद्योगिकी के माध्यम से वित्तीय समावेशन करके अनगिनत लोगों के जीवन को बेहतर बनाया है। हालाँकि, भारत में आधुनिकता और तकनीकी को अपनाया गया है, फिर भी हमारा विकास हमारी प्राचीन दार्शनिक परंपराओं के ज्ञान से प्ररित है।
जिस तरह सेंट कॉन्स्टेंटाइन सिरिल के काम ने स्लाव भाषाई और सांस्कृतिक पहचान की नींव रखी, उसी तरह भारतीय दार्शनिक परंपराओं ने लंबे समय से हमारे समाज के बौद्धिक और आध्यात्मिक ताने-बाने को स्वरूप दिया है। भारतीय शास्त्रीय दर्शन में वास्तविकता की समृद्ध और विविध खोज है, जिसमें आत्मनिरीक्षण और नैतिक आचरण पर जोर दिया जाता है। भारतीय शास्त्रीय दर्शन कई दृष्टिकोणों और आत्मज्ञान और आंतरिक अनुभव के महत्व पर प्रकाश डालता है। ये हमारे लिए केवल अकादमिक विषय नहीं हैं – इनसे एक जीवंत विरासत का निर्माण होता है जो हमारे जीवन के तरीके के बारे में बताते हैं।
मुंडक उपनिषद का गूढ़ सिद्धांत, ‘सत्यमेव जयते’ - "सत्य की सदा जीत होती है" - केवल एक दार्शनिक आदर्श नहीं है, वरन् यह भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य है और यह हमारे आधिकारिक प्रतीक में भी छपा है। इसी प्रकार महा उपनिषद से वसुधैव कुटुम्बकम् - "विश्व एक परिवार है" की प्राचीन भारतीय अवधारणा सामूहिक जिम्मेदारी और साझा नियति में हमारे विश्वास के बारे में बताती है। इससे ही भारत की संधारणीय जीवन के प्रति प्रतिबद्धता बनी है और यही वैश्विक समुदाय के साथ हमारे जुड़ाव का मार्गदर्शक सिद्धांत है।
मुझे यह देखकर प्रसन्नता हो रही है कि उपनिषदों का यह शाश्वत ज्ञान स्लोवाकिया में भी उसी प्रकार गूंजता है जैसा भारत में। पिछले साल नवंबर में, हम सब भारतीयों ने प्रधानमंत्री मोदी के मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के माध्यम से उपनिषदों के स्लोवाक भाषा में पहली बार अनुवाद के बारे में जाना, यह एक बहुत ही सराहनीय कार्य था।
मित्रो,
भारत और स्लोवाकिया की शिक्षा के क्षेत्र में भी एक मजबूत और बड़ी साझेदारी है, जो निरंतर बढ़ रही है। वर्तमान में लगभग 600 भारतीय छात्र स्लोवाकिया में पढ़ाई कर रहे हैं। शिक्षा, अनुसंधान और प्रौद्योगिकी में सहयोग बढ़ाने की अपार संभावनाएँ हैं। उत्तम शैक्षणिक और तकनीकी आदान-प्रदान को बढ़ावा देकर, हम नवाचार, साझा प्रगति और आपसी समझ के नए रास्ते खोल सकते हैं।
अंत में, मैं एक बार फिर इस सम्मान के लिए कॉन्स्टेंटाइन विश्वविद्यालय के प्रति अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त करती हूँ। मैं रेक्टर, संकाय सदस्यों, शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों को उनके शैक्षणिक करियर में सफलता प्राप्त करने के लिए शुभकामनाएँ देती हूँ। ऐसे ही भारत और स्लोवाकिया के बीच संबंध लगातार गहरे हों, और शिक्षा आशा, प्रगति और वैश्विक सद्भाव का आधार बने।
धन्यवाद।